CAB के खिलाफ कांग्रेस नेता जयराम रमेश पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, कहा- ये संविधान का उल्लंघन है

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अब कांग्रेस नेता जयराम रमेश भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं.

CAB के खिलाफ कांग्रेस नेता जयराम रमेश पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, कहा- ये संविधान का उल्लंघन है

कांग्रेस नेता जयराम रमेश (फाइल फोटो)

नई दिल्ली :

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अब कांग्रेस नेता जयराम रमेश भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करता है. भेदभाव के रूप में यह मुस्लिम प्रवासियों को बाहर निकालता है और केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनियों को नागरिकता देता है. साथ ही संविधान की मूल संरचना और मुसलमानों के खिलाफ स्पष्ट रूप से भेदभाव करने का इरादा है. उन्होंने कहा कि ये संविधान में निहित समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध आप्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता देने का इरादा रखता है. प्रत्येक नागरिक समानता के संरक्षण का हकदार है .

जयराम रमेश ने कहा कि यदि कोई विधेयक किसी विशेष श्रेणी के लोगों को निकालता है तो उसे राज्य द्वारा वाजिब ठहराया जाना चाहिए. नागरिकता केवल धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर हो सकती है. प्रश्न है  कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकता योग्यता की कसौटी कैसे हो सकती है. ये कानून समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए इससे पहले आज ही तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) भी 'कैब' के खिलाफ शीर्ष अदालत पहुंची थीं. शुक्रवार को उन्होंने चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े से केस की जल्द सुनवाई की मांग की. मुख्य न्यायाधीश ने उनसे कहा कि आज (शुक्रवार) सुनवाई नहीं होगी, आप रजिस्ट्रार के पास जाएं.

बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill या CAB) राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दस्तखत के बाद कानून बन चुका है. इस कानून के खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों में काफी प्रदर्शन हो रहा है. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि इसे तत्काल रद्द किया जाए. नागरिकता संशोधन कानून का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पीस पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. याचिका में कानून को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द करने की मांग की गई है. पार्टी का कहना है कि यह कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है. यह संविधान की मूल संरचना / प्रस्तावना के खिलाफ है. धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती.

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अगर इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों - जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक वर्ग के उत्पीड़ित लोगों को नागरिकता देना है तो अन्य पड़ोसी देशों यानी चीन, भूटान और श्रीलंका में रहने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों पर विचार क्यों नहीं किया गया, जिन्हें उनके देशों में भी सताया जा रहा है. उत्पीड़न केवल धर्म के आधार पर नहीं किया जाता, बल्कि यह अन्य कारणों जैसे राजनीतिक, भाषा या लिंग के आधार पर भी होता है. तो फिर क्यों इस कानून में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है.