चिदंबरम ने अपने पहले ट्वीट में कहा कि "हम हिंदी भाषी लोगों के साथ खुशी मनाते हैं जो कि आज हिंदी दिवस मना रहे हैं. तमिल भाषी लोगों को कानूनी रूप से गर्व है कि तमिल भाषा भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से है."
चिदंबरम के दूसरे ट्वीट में बताया कि राज्य (तमिलनाडु) के केलाडी क्षेत्र में पुरातात्विक खुदाई में 2600 साल पुरानी तमिल सभ्यता के साक्ष्य मिले हैं.
पिछले साल जून में केंद्र के राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मसौदा जारी करने के बाद भाषा को लेकर उपजे विवाद के क्रम में ही चिदंबरम ने ट्वीट किए हैं. इस विवाद में हिंदी को लेकर केंद्र और राज्य के बीच तनातनी देखने को मिली थी.
पिछले साल हिंदी दिवस पर विशेष रूप से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा यह कहे जाने पर कि चूंकि हिंदी भारत में "सबसे अधिक बोली जाने वाली और समझी जाने वाली भाषा है, इसलिए केवल यही राष्ट्र को एकजुट करती है. इस पर तमिलनाडु के नेतृत्व वाले दक्षिणी राज्यों से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी.
इस पर डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने कहा था कि "यह इंडिया है, न कि हिंदिया." उन्होंने इसको लेकर केंद्र को "भाषा युद्ध" की चेतावनी दी थी.
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पिछले महीने डीएमके की सांसद कनिमोझी ने इस मुद्दे को लेकर लगी आग और तेज की. उन्होंने कहा कि ''चेन्नई हवाई अड्डे पर एक सीआईएसएफ अधिकारी से मैंने तमिल या अंग्रेजी में बात करने के लिए कहा क्योंकि मुझे हिंदी नहीं आती." इस पर उनके भारतीय होने पर सवाल खड़ा किया गया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने कहा कि उन्होंने इसी तरह के तानों का अनुभव किया है. उन्होंने ट्वीट किया है कि "यदि केंद्र वास्तव में भारत की आधिकारिक भाषाओं हिंदी और अंग्रेजी दोनों के लिए प्रतिबद्ध है, तो यह जोर देना चाहिए कि सभी केंद्र सरकार के कर्मचारी हिंदी और अंग्रेजी में द्विभाषी हों."
पिछले साल सितंबर में चिदंबरम, जो कि उस समय INX मीडिया मामले में दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद थे, ने कहा था कि अगर तमिल लोग एक स्वर में बात करते हैं, तो उनकी भाषा और संस्कृति को स्वीकार किया जाएगा.
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जुलाई में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) का अंतिम संस्करण जारी हुआ जिसमें कहा गया कि या तो मातृभाषा में से कोई एक या स्थानीय / क्षेत्रीय भाषा सभी स्कूलों में कक्षा 5 तक की शिक्षा का माध्यम होगी.
तमिलनाडु लंबे समय से हिंदी को अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में अधिक प्रमुखता देने का विरोध करता रहा है. इस क्षेत्र में सन 1937 से 1940 के बीच हिंदी के विरोध में प्रदर्शन हुए थे. सन 1965 में यह मुद्दा एक बार फिर भड़क गया और इसके बाद हुई हिंसा में लगभग 70 लोगों की मौत हो गई थी.