यह ख़बर 24 जून, 2012 को प्रकाशित हुई थी

रेड्डी के अलावा कभी सर्वसम्मति से नहीं हुआ राष्ट्रपति चुनाव

खास बातें

  • देश में राष्ट्रपति के चौथे चुनाव के समय 1967 में सबसे अधिक 17 उम्मीदवार मैदान में थे जबकि राष्ट्रपति के पांचवे चुनाव के वक्त 15 प्रत्याशी मैदान में थे।
नई दिल्ली:

वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुनने के लिए भले ही संप्रग और राजग के अलावा दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेता सर्वसम्मति या आम सहमति से चुनाव की दलीलें दे रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि नीलम संजीव रेड्डी के अलावा आज तक इस सर्वोच्च पद के लिए किसी प्रत्याशी के नाम पर आम सहमति नहीं बन सकी।

देश में राष्ट्रपति के चौथे चुनाव के समय 1967 में सबसे अधिक 17 उम्मीदवार मैदान में थे जबकि राष्ट्रपति के पांचवे चुनाव के वक्त 15 प्रत्याशी मैदान में थे। देश के 13वें राष्ट्रपति का चुनाव भी इससे इतर नहीं है। उम्मीद है कि इस बार संप्रग के प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी का मुकाबला बीजद और अन्नाद्रमुक के साथ ही भाजपा समर्थित सिर्फ पीए संगमा से ही होगा।

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया में समय के साथ बदलाव होने के कारण अब राष्ट्रपति भवन जाने का सपना पालने वाले उम्मीदवारों की संख्या निश्चित ही कम हो गई है। राष्ट्रपति पद के चुनाव को अधिक गंभीर और महत्वपूर्ण बनाने के इरादे से पहली बार 1969 में गुप्त मतदान की व्यवस्था लागू की गई। यही नहीं, मतदान पत्रों के क्रमांक डालने का सिलसिला भी इसी चुनाव से शुरू हुआ था। देश की राजनीति में 1969 के राष्ट्रपति का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को इन्दिरा गांधी के प्रत्याशी वी वी गिरि ने बुरी तरह पराजित कर दिया था।

यह दीगर बात है कि 1977 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में नीलम संजीत रेड्डी निर्विरोध चुने गए थे। नीलम संजीव रेड्डी का निर्विरोध चुना जाना देश की राजनीति की एक ऐसी अविस्मरणीय घटना थी जिसकी आज के राजनीतिक परिदृश्य में कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

देश के प्रथम नागरिक के पद पर निर्वाचन की प्रक्रिया में शुरू से ही नागरिकों ने गहरी दिलचस्पी ली है। यही वजह है कि राष्ट्रपति पद के लिए 1952 में संपन्न प्रथम चुनाव में डा राजेन्द्र प्रसाद के अलावा चार अन्य प्रत्याशियों ने भी हिस्सा लिया।

राष्ट्रपति पद के लिए 1957 में संपन्न दूसरे चुनाव में भी डा राजेन्द्र प्रसाद का मुकाबला दो अन्य उम्मीदवारों से हुआ था। द्वितीय राष्ट्रपति डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के चुनाव के समय 1962 में भी दो अन्य उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। देश के तृतीय राष्ट्रपति डा जाकिर हुसैन के निर्वाचन के समय 1967 में 16 अन्य प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे जबकि 1969 में वी वी गिरि के चुनाव के समय राष्ट्रपति पद के दावेदार प्रत्याशियों की संख्या 15 थी।

इस चुनाव में हालांकि नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार थे लेकिन श्रीमती इन्दिरा गांधी ने वी वी गिरि को चुनाव मैदान में उतारा था। चुनाव के दौरान संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में एक प्रत्याशी के बारे में अपमानजनक बातों के साथ एक गुमनाम पर्चा बंटा था। बाद में इसी पर्चे को आधार बनाकर वी वी गिरि के चुनाव को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। यह दीगर बात है कि उच्चतम न्यायालय ने 14 सितंबर, 1970 को यह चुनाव याचिका खारिज कर दी थी।

राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या और चुनाव की वैधानिकता को अदालत में चुनौती दिये जाने जैसे तथ्यों के मद्देनजर सरकार ने निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर मार्च 1974 में राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति कानून, 1952 में संसद से संशोधन कराया। इन संशोधनों के बाद राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए नामांकन पत्र के साथ प्रस्तावक के रूप में कम से कम दस और अनुमोदक के रूप में भी इतने ही निर्वाचकों के हस्ताक्षर अनिवार्य किये गए। इसके अलावा पहली बार चुनाव में जमानत राशि के रूप में 2500 रूपए जमा कराने का प्रावधान किया गया।

यही नहीं, राष्ट्रपति के चुनाव को अदालत में चुनौती देने के संबंध में व्यवस्था की गई कि सिर्फ पराजित उम्मीदवार या कम से कम 20 निर्वाचकों के संयुक्त हस्ताक्षर से ही उच्चतम न्यायलय में चुनाव याचिका दायर की जा सकेगी।

इस प्रावधान के बाद चुनाव मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों की संख्या में कमी आयी। अगस्त 1974 में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में फखरुद्दीन अली अहमद का मुकाबला एकमात्र प्रत्याशी त्रिदिव चौधरी से हुआ जबकि 1977 में नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए निर्विरोध चुन लिए गए थे।

नीलम संजीव रेड्डी के बाद 1982 में कांग्रेस के ज्ञानी जैल सिंह का मुकाबला सेवानिवृत्त न्यायाधीश एच आर खन्ना से हुआ था। वर्ष 1987 में राष्ट्रपति के चुनाव में उस समय रोचक मोड़ ले लिया जब कांग्रेस के आर वेंकटरमण और विपक्ष के न्यायमूर्ति वी कृष्णा अय्यर के अलावा एक निर्दलीय मिथिलेश कुमार का नामांकन पत्र भी सही पाया गया।

निर्दलीय मिथिलेश कुमार की स्थिति इतनी विचित्र थी कि चुनाव के दौरान एक बार वह मोती बाग में एक पेड़ के नीचे सो गए तो उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा घेरा डालना पड़ा। मिथिलेश कुमार को सुरक्षा कारणों से नयी दिल्ली इलाके में एक विशाल बंगला आवंटित किया गया था। इस बंगले में मिथिलेश कुमार के सोने के लिए एक बड़ी और मोटी दरी मुहैया करायी गयी थी। इस चुनाव में हालांकि वेंकटरमण को भारी मतों से विजयी हुए थे लेकिन मिथिलेश कुमार भी 2223 मत प्राप्त करने में सफल रहे थे।

वेंकटरमण के सेवानिवृत्त होने पर हुए चुनाव में कांग्रेस के डॉ शंकर दयाल शर्मा के सामने विपक्ष के जीजी स्वेल, प्रख्यात वकील राम जेठमलानी और धरती पकड़ काका जोगिन्दर सिंह चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में जेठमलानी को 2704 और धरती पकड़ को 1135 मत मिले थे।

इस स्थिति के बाद यह मांग जोर पकड़ने लगी कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव को अधिक गंभीर बनाया जाए और इसमें नामांकन पत्रों पर प्रस्तावों और अनुमोदकों की संख्या बढ़ाने के साथ ही जमानत राशि में भी वृद्धि की जाए।

इसके बाद एक बार फिर अगस्त 1997 में सरकार ने अध्यादेश के जरिए राष्ट्रपति और उपराष्टूपति कानून में संशोधन किया। इस संशोधन के बाद राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्येक नामांकन के साथ प्रस्ताव और अनुमोदक के रूप में कम से कम 50-50 निर्वाचकों के हस्ताक्षर अनिवार्य करने के साथ ही जमानत राशि बढ़ाकर 15 हजार रूपए कर दी गयी।

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डा शंकर दयाल शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के बाद से राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या में कमी आयी और इन चुनाव में दो प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला हुआ। जुलाई 1997 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी के आर नारायणन का मुकाबला पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी एन शेषण से हुआ जबकि 2002 में डा एपीजे अब्दुल कलाम के चुनाव के समय वाम मोर्चा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल को मैदान मे उतारा था। देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को भी 2007 में चुनाव का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में उनका मुकाबला भाजपा के वरिष्ठ नेता भैरों सिंह शेखावत से हुआ था।