कोरोना वायरस किडनी पर डाल रहा घातक असर, बड़ी संख्या में मरीजों को डायलसिस जरूरी

Coronavirus: मुंबई के केईएम अस्पताल में किडनी समस्या वाले 116 कोविड रोगियों में से 51 की मौत, कोविड के कारण एक्यूट किडनी की समस्या

कोरोना वायरस किडनी पर डाल रहा घातक असर, बड़ी संख्या में मरीजों को डायलसिस जरूरी

प्रतीकात्मक फोटो.

मुंबई:

Mumbai Coronavirus: समय के साथ कोरोना का संकट तो बरकरार है ही साथ ही धीरे-धीरे ये भी साफ़ हो रहा है कि इसका असर शरीर के बाक़ी अंगों पर भी बेहद गहरा पड़ता है. मुंबई के अस्पतालों में ऐसे कई मरीज़ देखे जा रहे हैं जिन्हें कोविड से संक्रमण के बाद स्थायी रूप से किडनी डायलसिस की आवश्यकता पड़ रही है. बीएमसी के केईएम अस्पताल में किडनी की समस्या वाले 116 कोविड रोगियों में से 51 की मौत हो चुकी है. फेफड़ों के अलावा कोरोना किडनी को भी काफ़ी कमज़ोर बनाता है.

बीएमसी के केईएम अस्पताल में मार्च-अगस्त के बीच ऐसे 116 कोविड रोगी भर्ती हुए जिन्हें एक्यूट किडनी इंजरी यानी किडनी में खून का प्रवाह सही तरीके से नहीं होने की शिकायत थी. इनमें से 51 यानी 43% मरीज़ों की मौत हो गई. बाकी 65 मरीजों में से करीब 67-70% यानी 44 मरीज़ों को स्थायी रूप से डायलसिस की आवश्यकता है. किडनी डायलेसिस कराने की आवश्यकता तब पड़ती है, जब मरीज़ों की किडनी पूरी तरह से खराब हो जाती हैं. इन मरीज़ों की उम्र 50 साल से अधिक है.

 केईएम अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ तुकाराम जमाले ने बताया कि ‘'आम तौर पर जब किसी इन्फ़ेक्शन में किडनी फ़ेलियर होता है, या डायलसिस की ज़रूरत पड़ती है तो किडनी रिकवर होने की उम्मीद बहुत ज़्यादा रहती है. तीन दिन से तीन हफ़्ते तक में ये रिकवर हो सकता है. लेकिन कोविड पेशेंट में जो एक्यूट किडनी इंजरी या फ़ेल्युअर दिख रहा है ये जल्दी रिकवर नहीं हो रहे है. 70% लोग एक्यूट किडनी फ़ेल्युअर की वजह से डायलसिस पर हैं. तो कोविड लॉन्ग टर्म क्रोनिक डायलसिस का कारण बनता दिख रहा है. इन लोगों को भविष्य में ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ सकती है.''

मुंबई के कोविड केयर जंबो फ़ैसिलिटी बीकेसी के डीन डॉ राजेश डेरे बताते हैं कि यहां भी कई कोविड मरीज़ों में ‘एक्यूट किडनी' की समस्या देखी जा रही है. डॉ राजेश डेरे ने कहा कि ‘'नेफ्रोलॉजी विभाग का सर्वे बताता है कि काफ़ी लोगों में एक्यूट किडनी डिज़ीज़ दिख रही है. अब तक जो हमारे पास डेटा है उसमें से 2.4% मरीज़ों को पर्मानेंट डायलसिस की ज़रूरत पड़ी. इनकी उम्र 40 से ज़्यादा है और कोमोर्बिड हैं. उनको परमानेंट डायलसिस पर डाला है.''

फ़ोर्टिस अस्पताल में ऐसे क़रीब 10% मरीज़ हैं जिन्हें कोविड के कारण अब पर्मानेंट डायलसिस की ज़रूरत पड़ रही है. फोर्टिस के डायरेक्टर नेफ्रोलॉजी डॉ अतुल इंग्ले ने कहा कि ‘'हमने ढाई हज़ार कोविड मरीज़ देखे, 200 लोगों का किडनी इन्वॉल्वमेंट था. इनमें से 20 को क्रोनिक किडनी डीसीज थी, बिना डायसिस के सरवाइव कर रहे थे लेकिन अब ये सभी 20 मरीज़ डायलसिस पर हैं.''

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ऐसी समस्या ज़्यादातर बुज़ुर्ग और पहले से कमज़ोर मरीज़ों में दिख रही है. मुंबई में बुजुर्गों की मृत्यु दर है 85%. कुल 10,555 मौतों में 9,030 मौतें 50 साल के ऊपर के मरीज़ों की हुई हैं. इसलिए इन्हें कोविड से बचाना सबसे अहम है.