फर्जीवाड़ा : पाक अधिकृत कश्मीर के चार प्लाट भारतीय सेना के पास! दे रहे थे किराया, एफआईआर दर्ज

फर्जीवाड़ा : पाक अधिकृत कश्मीर के चार प्लाट भारतीय सेना के पास! दे रहे थे किराया, एफआईआर दर्ज

भारतीय सेना में भ्रष्टाचार के मामले पिछले कुछ सालों में बाहर आए हैं.

नई दिल्ली:

कश्मीर के लिए भारतीय सेना और भारत के आम नागरिकों ने आजादी के बाद से लेकर अब तक काफी कीमत चुकाई है. कश्मीर को भारत अपना अभिन्न घोषित कर चुका है और इस के लिए पाकिस्तान से दो बार लड़ाई भी कर चुका है जिसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है. लेकिन हैरानी करने वाली बात यह सामने आई है कि भारतीय सेना पीओके में कश्मीर में जमीन का किराया देती है. मामले के प्रकाश में आने के बाद सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. मामले दर्ज एफआईआर के मुताबिक सीबीआई इस बात की जांच कर रही है कि पिछले 16 वर्षों से सेना ने पीओके में चार जमीन के हिस्सों का किराया दे रही थी. इस मामले का खुलासा 2000 में हुआ था. इस मामले को एसडीएम एस्टेट ऑफिसर, पटवारी, नौशेरा ने पकड़ा था. अब सीबीआइ अधिकारी यह पता लगाने में लग गए हैं कि आखिरकार इन प्लाटों के लिए दिया जाने वाला किराया किसकी जेब में जाता था और इन जमीनों को किराये पर किसके कहने पर लिया गया था.

सीबीआई द्वारा दर्ज एफआइआर के अनुसार खसरा नंबर- 3,000, 3,035, 3,041, 3,045 की 122 कनाल और 18 मारला जमीन का इस्तेमाल भारतीय सेना कर रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि इस खसरा नंबर की जमीन पाक अधिकृत कश्मीर में चली गई है. आश्चर्य की बात यह है कि पिछले 16 वर्षों से इस जमीन का किराया सरकारी खजाने से दिया जा रहा था.

सूत्रों कहना है कि इस मामले में भारतीय सेना के अधिकारी और डिफेंस एस्टेट विभाग के अधिकारियों की मिली भगत है. बताया जाता है कि डिफेंस एस्टेट विभाग के कुछ अधिकारियों ने आपराधिक साजिश के तहत इस जमीन को भारत में दिखाकर उसे सेना के उपयोग में दिखा दिया और इसके लिए किराया भी दिया जाने लगा. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि किराया किसी एक व्यक्ति को दिया जाता था या कई लोगों में बांटा जाता था. सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हो सकता है कि इस घोटाले में सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हों.

अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक सरकारी खजाने को छह लाख रुपये का नुकसान पहुंचा. एफआइआर में यह भी कहा गया है कि सेना ने नागरिकों से यह जमीन अधिग्रहीत की थी. बोर्ड ने जमीन की जांच करने के बाद किराए के लिए मंजूरी प्रदान की थी. लेकिन अधिकारियों के बोर्ड ने एक दूसरे के साठगांठ कर जांच में गलत जानकारी दी थी.


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