यह ख़बर 22 मार्च, 2013 को प्रकाशित हुई थी

दिल्ली गैंगरेप मामले की सुनवाई कवर करने की मीडिया को इजाजत

खास बातें

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल 16 दिसंबर को हुए सामूहिक बलात्कार मामले की रोजाना सुनवाई कवर करने की आज मीडिया को मंजूरी दे दी। अभी तक इस मामले की सुनवाई बंद कमरे में की जा रही थी।
नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल 16 दिसंबर को हुए सामूहिक बलात्कार मामले की रोजाना सुनवाई कवर करने की आज मीडिया को मंजूरी दे दी। अभी तक इस मामले की सुनवाई बंद कमरे में की जा रही थी।

त्वरित अदालत की अध्यक्षता कर रहे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 22 जनवरी को मीडिया को सुनवाई की कवरेज़ करने से रोकने का आदेश दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने दरकिनार कर दिया।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने कहा, अदालत मान्यता प्राप्त प्रत्येक राष्ट्रीय दैनिक समाचारपत्र के एक प्रतिनिधि पत्रकार को मामले की सुनवाई के दौरान मौजूद रहने की अनुमति देगी। हाईकोर्ट से मान्यता प्राप्त पत्रकारों के एक समूह की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायाधीश ने कहा, पीटीआई और यूएनआई तथा अन्य राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों के रिपोर्टर अपनी खबर को अन्य समाचारपत्रों के प्रतिनिधियों और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सदस्यों से साझा करेंगे।
 
हालांकि अदालत ने मीडिया को पीड़िता और परिवार के किसी भी सदस्य का नाम उजागर नहीं करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा, खबर में पीड़िता या उसके परिवार के किसी सदस्य या शिकायतकर्ता या कार्यवाही में शामिल गवाहों के नाम उजागर नहीं किए जाएंगे। अदालत ने कहा, सत्र न्यायालय कार्यवाही के जिस हिस्से को खबर में शामिल न करने का निर्देश दे, उस हिस्से को खबर में शामिल नहीं किया जाएगा। हाईकोर्ट ने उम्मीद जताई कि मीडिया अपनी रिपोर्टिंग को केवल समाचार तक ही सीमित रखेगा और सत्र न्यायालय के कार्यक्षेत्र में किसी प्रकार का दखल नहीं देगा। अदालत ने कहा, यह उम्मीद की जाती है कि रिपोर्टिंग केवल समाचारों तक ही सीमित रहेगी। मीडिया अदालत के कार्यक्षेत्र में दखल नहीं देगा। यह बहुत पतली लेकिन स्पष्ट एवं सुनिश्चित रेखा है, जिसका यदि सम्मान किया गया तो यह संस्थागत अखंडता के लिए शुभ संकेत होंगे। 23 वर्षीय एक लड़की का गत 16 दिसंबर को दक्षिण दिल्ली की एक चलती बस में सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसका 29 दिसंबर को सिंगापुर में निधन हो गया था।

हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा 5 जनवरी को जारी परामर्श को भी दरकिनार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि निचली अदालत ने पहले ही आरोप पत्र का संज्ञान ले लिया है इसलिए मामले की कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं की जा सकती।

दिल्ली पुलिस ने पत्रकारों की याचिका का विरोध करते हुए हाईकोर्ट से कहा था कि बलात्कार के प्रत्येक मामले की जांच और सुनवाई कैमरे के सामने होनी चाहिए। दिल्ली पुलिस ने दलील दी थी ‘‘ मीडिया का खबर देने का अधिकार निरंकुश नहीं है। मीडिया इस मामले में एक वादी होने का दावा नहीं कर सकता और कानूनी प्रावधान केवल आरोपी या पीड़िता पर ही लागू होंगे क्योंकि वे मामले के आवश्यक पक्ष हैं।

पत्रकारों ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि सभी मामलों को कवर करना मीडिया का कर्तव्य है। यह लोकतांत्रिक प्रणाली का हिस्सा है और स्वतंत्र समाज में मीडिया को सुनवाई कवर करने से रोकना सही नहीं है। पत्रकारों ने मामले की सार्वजनिक सुनवाई की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि सामूहिक बलात्कार मामले की रिपोर्टिंग ने समाज की मदद की है और इस मामले की अच्छी कवरेजज मिलने से देश की दो बड़ी अदालतों ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था।

पत्रकारों के वकील ने कुछ दस्तावेज़ों और पीड़िता के मित्र एवं हादसे के एकमात्र गवाह के टेलीविज़न पर दिए साक्षात्कार का जिक्र करते हुए कहा कि हालांकि पीड़िता के परिजनों ने उसका नाम एवं अन्य जानकारी का खुलासा किया था, लेकिन मीडिया ने पीड़िता का नाम उजागर नहीं किया।

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एक मजिस्ट्रेटी अदालत ने 7 जनवरी को मामले की बंद कमरे में सुनवाई का आदेश दिया था, जिसे त्वरित अदालत ने भी बरकरार रखा था।