कोरोनावायरस के खिलाफ जंग : इन दो 'योद्धाओं' के जज़्बे को भोपाल ज़रूर याद रखेगा

कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग जज्बे, धैर्य और कर्तव्य की अग्निपरीक्षा ले रही है. इम्तिहान की इस घड़ी में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका त्याग और बलिदान हमेशा याद किया जाएगा.

कोरोनावायरस के खिलाफ जंग : इन दो 'योद्धाओं' के जज़्बे को भोपाल ज़रूर याद रखेगा

कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में दोनों ने नौकरी को अपना फर्ज समझा

भोपाल:

कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग जज्बे, धैर्य और कर्तव्य की अग्निपरीक्षा ले रही है. इम्तिहान की इस घड़ी में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका त्याग और बलिदान हमेशा याद किया जाएगा.  भोपाल में पुलिस कंट्रोल रूम में ड्यूटी निभा रहे निरीक्षक दीपक पाटिल का पैर टूटा है, लेकिन फिर भी वह कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी ड्यूटी से पीछे नहीं  हटे. भोपाल में 500 से ज्यादा कोरोना संक्रमित हैं, जिसमें लगभग 50 पुलिसकर्मी या उनके परिजन हैं. इस कंट्रोल रूम से उन पर ज़िम्मेदारी है कि शहर में जो फोर्स लगी है उनकी जरूरतों को पूर्ति करना, फोर्स का मनोबल बनाए रखना, उनकी तैनाती को देखते रहना. दीपक पाटिल का कहना है, 'पैर फ्रैक्चर होने से परेशानी शारीरिक है लेकिन ड्यूटी ज़रूरी है, हमारे सारे वरिष्ठ काम कर रहे हैं मनोबल बढ़ा रहे हैं... पैर ड्यूटी के बीच में नहीं आएगा यही सोचकर उपस्थिति दी है.'

ऐसी ही एक मिसाल पेश कर रही हैं प्रगति जो 7 महीने की बच्ची के साथ रोज इन बिजली के तारों से उलझती हैं, ट्रांसफर्मर जांचती हैं ताकी कोरोना से जंग के बीच लोगों के घरों में  अंधेरा न हो. प्रगति भोपाल के नयापुरा सब स्टेशन में बतौर टेस्टिंग असिस्टेंट काम करती हैं, इस सब स्टेशन से आसपास के तीन कॉलोनियों को बिजली सप्लाई होती है और प्रगति दिन भर मशीनों में आने वाली रीडिंग्स और फॉल्ट की जानकारी लेती रहती हैं.

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प्रगति ने बताय, 'मेरी बच्ची को ड्यूटी पर लाना पड़ता है, घर में कोई नहीं रहता कोरोना की वजह से कहीं छोड़ नहीं सकती कर्तव्य निभाना है ताकी गर्मी में आम जनता बाहर ना निकले सुरक्षित रहे.' पिछले महीने ही प्रगति की मैटरनिटी लीव खत्म हुई है, फर्ज को देखते हुए वो रोज सुबह 8 से 4 बजे तक ड्यूटी करने के बाद घर जाती हैं. सब-स्टेशन के अंदर काम करते वक्त बिटिया को बिजली उपकरणों से दूर रखकर काम संभालती हैं. वहीं बिजली यार्ड में जाते समय बच्ची को दूसरे कर्मचारी के पास छोड़कर काम पूरा करती हैं. कोरोना से लड़ाई में कुछ योद्धा मोर्चे पर दिखते हैं लेकिन जाने कितने ऐसे हैं जिनकी भूमिका बराबरी की है, जो चुपचाप हर खतरे का सामना कर रहे हैं ताकि आपको तकलीफ ना हो.