नई दिल्ली: लंबे समय से डीडीसीए को लेकर विवाद खड़े होते रहे हैं। अरुण जेटली का नाम इस बार तूफान से घिरा हुआ है, खासकर इसलिए कि वो लंबे समय से दिल्ली क्रिकेट का चेहरा रहे। आम आदमी पार्टी के आरोपों में घिरे वित्त मंत्री अरुण जेटली 1999 से 2013 तक डीडीसीए यानी दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। उनके कार्यकाल के दौरान डीडीसीए गलत वजहों से सुर्खियों में थी।
साल 2009 के अगस्त में विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने दिल्ली रणजी टीम छोड़ने की धमकी दी थी। उनका आरोप था कि डीडीसीए में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा हो गई है। सहवाग ने चयन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए थे। जेटली तब डीडीसीए के अध्यक्ष थे। उन्होंने सहवाग से मिल कर मामला रफा-दफा किया था।
टीम के चयन में पक्षपात और प्रॉक्सी वोटिंग के जरिए नए सदस्यों को डीडीसीए के प्रशासन से दूर रखने की खबरें हमेशा से आती रही हैं। अरुण जेटली और उपाध्यक्ष सीके खन्ना ने इस पर कुछ कहने से मना कर दिया। सवाल है कि क्या इससे जेटली अनजान थे या अनजान बनते रहे हैं।
डीडीसीए के खिलाफ बिगुल बजाने वालों में पूर्व भारतीय कप्तान बिशन सिंह बेदी और विश्वविजेता टीम के सदस्य और बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद ने 2012 में अरुण जेटली को पत्र लिखकर डीडीसीए में भ्रष्टाचार की शिकायत की थी।
सबसे ज्यादा धांधली की शिकायतें आई फिरोज शाह कोटला स्टेडियम के पुनर्निर्माण पर। मई 2003 में काम शुरू हुआ तो लागत बताई गई 24 करोड़, लेकिन काम खत्म होने तक ये रकम 114 करोड़ तक जा पहुंची। इसी को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने हमले का हथियार बना लिया है।
जेटली ने 2013 मे डीडीसीए का अध्यक्ष पद छोड़ दिया था, फिर 2014 में उन्होंने मुख्य संरक्षक पद भी छोड़ दिया, लेकिन क्या डीडीसीए के कार्यकलापों से उनका अब कोई वास्ता नहीं है? क्रिकेट के मैदान पर राजनीति का खेल खेला जा रहा है। इंतजार कीजिए अब अगले बाउंसर का।