गर्मी से बेहाल स्क्रीनिंग सेंटरों पर लंबी कतारों में खड़े प्रवासी मजदूर बोले- 'ऐसे तो हम भूखे मर जाएंगे...'

राजधानी में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच रहा है लेकिन अपनी नौकरी और पैसों से हाथ धो बैठे सैकड़ों मजूदर घंटों तक लाइनों में लगकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन आखिर में उनको बस यही जवाब मिल रहा है कि श्रमिक ट्रेनें नहीं चलेंगी.

गर्मी से बेहाल स्क्रीनिंग सेंटरों पर लंबी कतारों में खड़े प्रवासी मजदूर बोले- 'ऐसे तो हम भूखे मर जाएंगे...'

घंटों लाइन में लगे मजदूरों को अंत में जवाब मिल रहा है कि ट्रेनें नहीं चलेंगी.

खास बातें

  • Covid-19 स्क्रीनिंग के लिए तपती गर्मी प्रवासी मजदूरों की लंबी कतारें
  • ट्रेनों में बैठने के लिए सर्टिफिकेट जरूरी
  • लेकिन श्रमिक ट्रेनों का कुछ अता-पता नहीं
नई दिल्ली:

दिल्ली में तपती गर्मी के बीच कोरोनावायरस की टेस्टिंग के लिए बने स्क्रीनिंग सेंटरों पर सैकड़ों मजदूर लंबी कतारों में बस इस उम्मीद में लगे हुए हैं कि उनकी टेस्टिंग जल्द से जल्द खत्म हो और उन्हें अपने घर जाने के लिए स्पेशल श्रमिक ट्रेनों में टिकट मिल पाए. राजधानी में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच रहा है लेकिन अपनी नौकरी और पैसों से हाथ धो बैठे सैकड़ों की संख्या में पुरुष, गर्भवती महिलाएं और बच्चे घंटों तक लाइनों में लगकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन आखिर में उनको बस यही जवाब मिल रहा है कि श्रमिक ट्रेनें नहीं चलेंगी.

दिल्ली के पश्चिमी विनोद नगर में 24 घंटों से ट्रेन के लिए इंतजार कर रहे मजदूरों से कह दिया गया कि अगले तीन दिनों के लिए बिहार जाने के लिए कोई श्रमिक ट्रेन नहीं चलेगी. 29 साल की करिश्मा देवी, जो कि आठ महीनों की गर्भवती महिला हैं, ने NDTV को बताया कि वो बिहार के सहरसा जाना चाहती हैं. उनके मकान मालिक ने किराया न चुका पाने पर उन्हें और उनके पति जो कि AC टेक्निशियन हैं, को मकान से निकाल दिया था. उन्होंने कहा, 'ऐसे तो हम मर जाएंगे.....भूख से. मैं यहां पर कल सुबह (मंगलवार)' 11 बजे से हूं. हमें पानी तक नहीं दिया गया है और पुलिस हमें धमकी दे रही है.

बिहार के मधुबनी जाने की इच्छा रखने वाले अशोक ने बताया, 'मैं भी कल सुबह 11 बजे से यहां हूं. रात में हमें मैसेज मिला था एक ट्रेन यहां से सुबह में निकलेगी. लेकिन हमने वो मैसेज देर से देखा, जब हम यहां पहुंचे, तो हमें बताया गया कि ट्रेन जा चुकी है. तबसे हम रातभर यहीं रुके हुए हैं. हमें बस पानी और बिस्किट दिया गया है.'

25 साल के शाक़िब, जिन्हें सहरसा जाना है, ने NDTV को बताया, 'मैं यहां पर कल शाल चार बजे से हूं. तबसे बस पानी और बिस्किट मिला है. हम यहां रातभर रुके रहे. हमें एक मैसेज मिला था कि एक ट्रेन जाएगी, तो हम आए लेकिन अब हमें बता दिया गया है कि अगले तीन दिनों तक यहां से कोई ट्रेन बिहार नहीं जाएगी.'

इस अव्यवस्था और सरकारी लापरवाही के चलते एक प्रवासी मजदूर ने अपना गुस्सा बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर निकाला. उसने कहा, 'मैं यहां रात भर इंतजार करता रहा. घरपर मेरी मां चल बसी हैं. मैं नीतीश कुमार और बिहार सरकार से पूछना चाहता हूं कि आपने बिहारियों के लिए क्या किया है?'

पिछले हफ्ते नीतीश कुमार ने घर आने की जद्दोज़हद में लगे मजूदरों से कहा था कि वो घबराएं नहीं और अपनी सरकार पर भरोसा करें. प्रशासन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि सरकार मजदूरों को घर लाने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है.

बता दें कि रेलवे के नियमों के मुताबिक, श्रमिक ट्रेनों के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके मजदूरों को ट्रेनों की तारीख और समय को लेकर एक मैसेज भेजा जाता है. जिस दिन ट्रेन निकलने वाली होती है, उस दिन सुबह में उन्हें स्क्रीनिंग सेंटर पहुंचना होता है और अगर वो थर्मल स्क्रीनिंग में पास हो जाते हैं तो उन्हें सफर के पहले एक सर्टिफिकेट दिया जाता है.

हालांकि, केंद्र और राज्यों के बीच इन श्रमिक ट्रेनों को लेकर तकरार चल रही है. केंद्र सरकार का आरोप है कि राज्य सरकारें जानबूझकर इसमें बाधा डाल रही हैं. इनकी तकरार में मजदूर पिस रहे हैं.

इसी क्रम में, महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल के बीच ट्रेनों के जानकारी को लेकर चल रही खींचातानी के बीच मंगलवार को हजारों प्रवासी मजदूर मुंबई रेलवे स्टेशन के बाहर इकट्ठा हो गए थे.

वीडियो: रेलवे को लेकर केंद्र, राज्य विवाद में पिसते मजदूर
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