सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने के लिए लाए गए दूसरे अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। यह अध्यादेश भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए जारी किया गया है, जिसे न्यायालय में चुनौती दी गई है।
केंद्र सरकार को यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने जारी किया।
इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने न्यायालय को बताया कि सरकार के इस कदम से संविधान का मजाक बनकर रह गया है, क्योंकि यह अध्यादेश ऐसे समय में लाया गया, जब संसद का सत्र जारी था।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को दिल्ली ग्रामीण समाज ने चुनौती दी है, जिसने पहले अध्यादेश को भी न्यायालय में चुनौती दी थी।
न्यायालय ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि सरकार ने दिल्ली ग्रामीण समाज की तरफ से पहले अध्यादेश को लेकर दी गई चुनौती पर भी अब तक कोई जवाब नहीं दिया है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि दूसरा अध्यादेश सीधे रूप से संविधान के अनुच्छेद 123 के प्रावधानों का उल्लंघन है और संवैधानिक मानदंडो के प्रति अपमान जताता है।
दूसरे अध्यादेश को 'अवज्ञापूर्ण कृत्य' करार देते हुए याचिकाकार्ता ने कहा कि केंद्र सरकार ऐसे समय में दूसरा अध्यादेश फिर लेकर आई है, जब पहले अध्यादेश पर मामला न्यायालय में लंबित है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुर्नस्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (संशोधन) अध्यादेश, 2015 को चुनौती देने वाली याचिका पर 13 अप्रैल को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
याचिका में कहा गया है कि सरकार 'अध्यादेश राज' के तहत देश चलाना चाहती है। सरकार का कदम संविधान के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
इसमें कहा गया है कि सरकार का सफलतापूर्वक अध्यादेश लाना ससंद की विधायी प्रक्रिया की उपेक्षा करना है, जो न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के साथ धोखा भी है।
याचिका के मुताबिक, पहला भूमि अध्यादेश तथा फिर दूसरा अध्यादेश लाना संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत सत्ता का सीधे तौर पर दुरुपयोग करना है।