भूमि अधिग्रहण मामलों की जल्द सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन की मांग

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कई याचिकाएं लंबित हैं जिन पर सुनवाई होनी है, चीफ जस्टिस ने कहा कि वे इस मामले में देखेंगे

भूमि अधिग्रहण मामलों की जल्द सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन की मांग

सुप्रीम कोर्ट.

नई दिल्ली:

देश में भूमि अधिग्रहण में सही मुआवजे के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन की मांग की है. SG तुषार मेहता ने कहा कि कई याचिकाएं लंबित हैं जिन पर सुनवाई होनी है. चीफ जस्टिस ने कहा कि वे इस मामले में देखेंगे.

भूमि अधिग्रहण में सही मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में उभरे न्यायिक मतभेद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ को सुनवाई  भेजी गई थी. पीठ ने कहा था कि उम्मीद है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की बेंच फिलहाल ऐसे मामलों में कोई अंतिम आदेश जारी नहीं करेंगी. संविधान पीठ 2014 और 2018 के दो अलग-अलग फैसलों पर विचार करेगा कि कौन सा फैसला ठीक है. वहीं वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि आठ फरवरी 2018 के आदेश के बाद करीब 150 मामलों का फैसला इसी आधार पर हो चुका है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की बेंच द्वारा तीन जजों की बेंच के ही आदेश को ओवररूल करने पर चिंता जताई थी, तो दो अलग-अलग बेंचों ने चीफ जस्टिस से बड़ी बेंच के गठन का आग्रह किया था. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने देश के सभी हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि फिलहाल वे जमीन अधिग्रहण मामले में उचित मुआवजे को लेकर कोई भी फैसला न सुनाएं. सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच के सामने लगे मामलों की सुनवाई भी टाली गई.  

भूमि अधिग्रहण के मुआवजे पर SC की संविधान पीठ करेगी फैसला, तब तक सभी मामलों पर रोक

जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कूरियन जोसफ और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि वो आठ फरवरी के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एके गोयल और जस्टिस एमएम शांतनागौदर की बेंच के फैसले से सहमत नहीं हैं. जस्टिस कूरियन जोसफ ने कहा कि बेंच जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के फैसले की योग्यता पर नहीं जा रहे, हमारी चिंता न्यायिक अनुशासन को लेकर है. जब एक बार तीन जजों की बेंच ने कोई फैसला दिया तो उसे सही करने के लिए चीफ जस्टिस से बड़ी बेंच बनाने का आग्रह किया जा सकता है.  

सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण मामला उचित पीठ के गठन के लिए प्रधान न्यायाधीश के पास भेजा

कोर्ट ने कहा कि इस महान संस्था ( सुप्रीम कोर्ट) के सिद्धांत से अलग नहीं जा सकते. अगर कोई फैसला गलत है तो उसे ठीक करने के लिए बड़ी बेंच बनाई जाती है और इस अभ्यास का वर्षों से पालन किया जाता है. अगर सुप्रीम कोर्ट एक है तो इसे एक बनाया भी जाना चाहिए और इसके लिए सचेत न्यायिक अनुशासन की आवश्यकता है. हमारी चिंता यह है कि इस न्यायिक अनुशासन का पालन नहीं किया गया (न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा बेंच ने). जस्टिस लोकुर ने भी चिंता का समर्थन किया और कहा अगर पुराने फैसले को सही किया जाना था तो बड़ी बेंच ही इसके लिए सही तरीका है.

VIDEO : जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ समाधि पर बैठे किसान

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

दरअसल 8 फरवरी 2018  को इंदौर विकास प्राधिकरण मामले में जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने जमीन अधिग्रहण के मामले में आदेश दिया था कि 2013  के भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 31 (1) के तहत अगर एक बार मुआवजे की राशि का बिना शर्त भुगतान किया गया है और जमीन मालिक ने इसे अस्वीकार कर दिया गया है तो भी उसे भुगतान माना जाएगा. बेंच ने जमीन पर इंदौर विकास प्राधिकरण की भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को बरकरार रखा था. इस फैसले ने पहले के तीन जजों के फैसले को पलट दिया. हालांकि इससे पहले 2014 में तीन जजों की एक अन्य बेंच ने  पुणे नगर निगम द्वारा भूमि अधिग्रहण को इस आधार पर अलग रखा था क्योंकि जमीन के मालिकों ने मुआवजा नहीं लिया था.