क्‍या है सावरकर के अंग्रेजी हुकूमत से माफी मांगने का सच? विक्रम संपथ ने सावरकर की बायोग्राफी में किया खुलासा

विक्रम संपथ ने अपनी किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम द फॉरगॉटन पास्‍ट' में सावरकर के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है.

क्‍या है सावरकर के अंग्रेजी हुकूमत से माफी मांगने का सच? विक्रम संपथ ने सावरकर की बायोग्राफी में किया खुलासा

लेखक विक्रम संपथ (Vikram Sampath)

नई दिल्ली:

अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता में वीर सावरकर (Veer Savarkar) का खास योगदान था. लेकिन वीर सावरकर को लेकर देश के लोग दो वर्गों में विभाजित हैं. एक वर्ग वो है जिनके लिए सावरकर हीरो हैं और दूसरा वर्ग वो जिनके लिए वह एक विलेन हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक हित के लिए पार्टियों ने सावरकर के नाम का जमकर इस्तेमाल किया. सावरकर को लेकर लोगों के बीच कई तरह की बातें हैं... इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ (Vikram Sampath) ने सावरकर की बायोग्राफी लिखी है. उन्होंने अपनी किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' (Savarkar Echoes from a Forgotten Past) में सावरकर के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया. सावरकर के जीवन को उन्होंने दो पार्ट में प्रस्तुत किया है. यह किताब पहला पार्ट है जिसमें 1883–1924 तक के उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया है. वहीं दूसरे पार्ट में रीडर्स को 1926-1966 तक के सफर की जानकारी मिलेगी. विक्रम ने NDTVKhabar से खास बातचीत में सावरकर के जीवन से जुड़ी कई बातें बताईं. साथ ही उन्होंने दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में सावरकर की मूर्ति को लेकर हुए बवाल और अन्य कई मुद्दों पर भी खुलकर बात की. 

1. आपको ऐसा क्यों लगा कि सावरकर की बायोग्राफी लिखने की जरूरत है?
जवाब: 
सावरकर को गुजरे हुए इतने साल हो गए. 1966 में इनका निधन हुआ था. आज भी चुनाव प्रचार के दौरान हमेशा उनका नाम लिया जाता है. राहुल गांधी उनका मजाक उड़ाते हैं, सावरकर के पोते उन पर मानहानि का मुकदमा चलाते हैं. वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी सेल्युलर जेल में जाकर उनको श्रद्धांजलि देते हैं. राजस्थान सरकार कहती है कि क्या पाठ्यपुस्तकों में इनके नाम से 'वीर' शब्द हटा दिया जाए? पार्टियों के बीच उनका इस्तेमाल फुटबॉल की तरह होता है. एक इतिहासकार होने के नाते मैंने देखा कि अगर युवाओं को इनके बारे में जानना है तो वो  इसके लिए क्या करें. तो मैंने सोचा कि मुझे उन पर जीवनी लिखनी चाहिए जो इनके जीवन का एक समग्र चित्र प्रस्तुत करे और जो शोध पर आधारित हो. मैं पिछले तीन सालों से इस पर काम कर रहा था. मैं लंदन गया और वहां जाकर ब्रिटिश और यूरोप आर्काइव्‍स में मौजूद सामग्री पढ़ी. फिर उसके आधार पर मैंने किताब पर काम शुरू किया.

2. सावरकर पर पहले भी कई बायोग्राफी आई हैं आपकी इस किताब में क्या अलग और खास है?
जवाब: 
मैंने बहुत सारे ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स को सोर्स किया. नेहरू स्‍मारक की लाइब्रेरी में सावरकर पर 40 हजार प्राइवेट पेपर्स हैं. लाइब्रेरी के लोग बताते हैं कि बहुत कम लोगों ने उनका इस्तेमाल किया. सावरकर को भुला दिया गया है. उनको सिर्फ राजनीतिक फायदे और नुकसान के लिए याद किया जाता है. तो मुझे लगा कि जो डॉक्यमेंट्स मौजूद हैं, जिन पर प्रकाश नहीं डाला गया है उस चीज को एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए. इस किताब में उनके बचपन से लेकर काला पानी की सजा तक की कहानी है.

3. क्या सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी?
जवाब: 
सावरकर को लेकर ये बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जाता है कि उन्होंने मर्सी पिटीशन फाइल कर माफी मांगी थी. ये कोई मर्सी पिटीशन नहीं थी ये सिर्फ एक पिटीशन थी. जिस तरह हर राजबंदी को एक वकील करके अपना केस फाइल करनी की छूट होती है उसी तरह सारे राजबंदियों को पिटीशन देने की छूट दी गई थी. वे एक वकील थे उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं. उनको 50 साल का आजीवन कारावास सुना दिया गया था तब वो 28 साल के थे. अगर ये जिंदा वहां से लौटते तो 78 साल के हो जाते. इसके बाद क्या होता उनका? न तो वो परिवार को आगे बढ़ा पाते और न ही देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दे पाते. उनकी मंशा थी कि किसी तरह जेल से छूटकर देश के लिए कुछ किया जाए. 1920 में उनके छोटे भाई नारायण ने महात्मा गांधी से बात की थी और कहा था कि आप पैरवी कीजिए कि कैसे भी ये छूट जाएं. गांधी जी ने खुद कहा था कि आप बोलो सावरकर को कि वो एक पिटीशन भेजें अंग्रेज सरकार को और मैं उसकी सिफारिश करूंगा. गांधी ने लिखा था कि सावरकर मेरे साथ ही शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे तो इनको आप रिहा कर दीजिए. ऐसे में पिटीशन की एक लाइन लेकर उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है.

6me3kqn8सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट (Savarkar Echoes from a Forgotten Past)

4. सावरकर को अंग्रेजों से पेंशन क्यों मिलती थी?
जवाब: 
जेल से रिहा होने के बाद सावरकर को रत्नागिरी में ही रहने को कहा गया था. अंग्रेज उन पर नजर रखते थे. उनकी सारी डिग्रीयां और संपत्ति जब्त कर ली गई थी. ऐसे राज बंदियों को जिन्हें कंडीशनल रिलीज मिलती थी उन सभी को पेंशन दी जाती थी. उस समय अंग्रेजों का ये था कि हम आपको काम करने की छूट नहीं देंगे, आपकी देखभाल हम करेंगे.

5. राहुल गांधी ने चुनाव के समय सावरकर को डरपोक बोला था, क्या सावरकर डरपोक थे?
जवाब: 
मुझे लगता है कि राहुल गांधी को अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कही बात को ही पढ़ लेना चाहिए. इंदिरा गांधी ने उन्हें क्रांतिकारी कहा था. जब राहुल गांधी की दादी खुद ये कह रहीं थीं तो क्या वह एक गद्दार, कायर और डरपोक इंसान की तारीफ कर रहीं थीं? राहुल को पीएम मोदी या बीजेपी पर निशाना साधना है तो डायरेक्टली करें वो लेकिन इसके लिए इतिहास के कैरेक्टर्स का सहारा लेना बहुत ही गलत बात है. 

6. क्या भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की आड़ में सावरकर की मूर्ति लगाना सही है?
जवाब: 
बहुत कम लोगों को ये बात पता है कि भगत सिंह वीर सावरकर से बहुत प्रेरित थे. एक दुर्गा दास खन्ना नाम के कांग्रेसी थे. अपनी जवानी में वो क्रांतिकारी थे और भगत सिंह से जुड़े थे. भगत सिंह की दुर्गादास पर नजर पड़ी और उन्होंने एचएसआरए में उनकी भर्ती के लिए एक इंटरव्यू लिया. भगत सिंह ने उनसे पूछा कि आपने सावरकर की लिखी हुईं किताबें पढ़ी हैं या नहीं? उस समय यह एक क्राइटेरिया था कि अगर क्रांतिकारी बनना है तो सावरकर की किताब आपने पढ़ी हों. ये कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है. इस इंटरव्यू के माध्यम से मैं ये कहना चाहूंगा कि जिन्हें शक है वे नेहरू मैमोरियल में जाकर दुर्गादास का इंटरव्यू पढ़ सकते हैं.

7. 49 हस्तियों ने पीएम को मॉब लिचिंग पर कानून बनाने के लिए पत्र लिखा था. 49 के जवाब में जिन 69 हस्तियों ने पीएम को लेटर भेजा उसमें आपके साइन भी थे इसके पीछे क्या वजह रही?
जवाब: 
ये लोग जो हैं बहुत बड़े कलाकार हैं मैं इन पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं. लेकिन बहुत सारे ये जो पत्र होते हैं ये राजनीति से प्रेरित होते हैं. उनके पत्र में भी वही है, एक समुदाय विशेष पर अत्याचार हो रहा है. दूसरी तरफ क्या हो रहा है आप उसकी बात करते ही नहीं हैं. बहुत सी गौरक्षक संस्थाएं हैं जो एनजीओ के रूप में रजिस्टर्ड हैं उनके लोग जब गायों की तस्करी को रोकने की कोशिश करते हैं तो वहां गुंडे उनको खत्म कर देते हैं. बहुत से केस ऐसे भी हैं जहां गौरक्षक कानून का पालन करके तस्करी को रोकते हैं उन पर भी अत्याचार होता है, उनकी जानें भी जाती हैं. ये भी लिंचिंग हैं. ये 49 लोग एक पहलू पर ही नजर डाल रहे हैं. यह एक राजनीतिक स्टैंड है और वो आपको लेने का पूरा हक है. ऐसे में अगर आप एक राजनीतिक पक्ष लेते हैं तो दूसरे को आपके विरोध में खड़े होने का पूरा हक है.

8. क्या यह किताब हिंदी और अन्य भाषाओं में आएगी?
जवाब: 
पैंग्विन का हिंदी विंग इसी साल इस किताब को हिंदी में ला सकता है. इसके अलावा मराठी, बंगला और तेलुगु में भी ये किताब आएगी. इसका अगला पार्ट अगले साल आएगा.

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