यह ख़बर 29 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग पूर्व जांच पर रोक

खास बातें

  • शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति दिनाकरन की याचिका पर फैसला सुनाया जिसमें उन्होंने तीन सदस्यीय समिति द्वारा पक्षपातपूर्ण जांच की आशंका जताई थी।
New Delhi:

उच्चतम न्यायालय ने सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ न्यायिक दुराचरण और भ्रष्टाचार के आरोपों में पड़ताल के लिए राज्यसभा द्वारा नियुक्त समिति की तरफ से महाभियोग पूर्व जांच पर रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति दिनाकरन की याचिका पर यह फैसला सुनाया जिसमें उन्होंने तीन सदस्यीय न्यायिक समिति द्वारा पक्षपातपूर्ण जांच की आशंका जताई थी। समिति में शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति आफताब आलम, कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और वरिष्ठ वकील पीपी राव शामिल हैं। 61 वर्षीय दिनाकरन की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र सरण ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एचएस बेदी और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ के समक्ष कहा कि राव उन वकीलों के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे जिन्होंने दिनाकरन की उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति के विरोध में 2009 में भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन से मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि जांच समिति में राव के शामिल होने से पक्षपात होने की आशंका है। पीठ ने दलीलों को सुनने के बाद समिति की कार्यवाही पर रोक लगा दी और समिति को, इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति आफताब आलम को और वकील राव को नोटिस जारी किये। न्यायमूर्ति दिनाकरन ने शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी याचिका में कहा, यदि पक्षपात होने की काफी संभावना है तो यह प्राकृतिक न्याय और आम समझ के मुताबिक होगा संभवत: पक्षपात करने वाले न्यायाधीश को अयोग्य करार देना चाहिए। मूल सिद्धांत इस नियम में निहित है कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। अपनी याचिका खारिज करने के समिति के फैसले को चुनौती देते हुए न्यायाधीश ने कहा था कि यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। उन्होंने मांग की थी कि शीर्ष अदालत को राव के मुद्दे पर समिति के आदेश को रद्द कर देना चाहिए। समिति ने 24 अप्रैल को राव के खिलाफ दिनाकरन की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि कार्यवाही की शुरुआत में आपत्ति जताई जानी चाहिए थी। इस आवेदन पर विचार विमर्श होते वक्त राव ने बैठक में भाग नहीं लिया था। न्यायमूर्ति दिनाकरन नौ मई 2012 को सेवानिवृत्त होंगे और उनके खिलाफ आरोप उस वक्त लगाये गए जब वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। बाद में उन्हें सिक्किम उच्च न्यायालय में भेज दिया गया। राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी द्वारा बनाई गयी समिति ने दिनाकरन से उनके खिलाफ लगे 16 आरोपों में जवाब देने को कहा था।


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