चंदा पाने में शिवसेना ने सभी क्षेत्रीय दलों को पीछे छोड़ा, 'आप' 6 करोड़ के दान के साथ दूसरे स्थान पर

चंदा पाने में शिवसेना ने सभी क्षेत्रीय दलों को पीछे छोड़ा, 'आप' 6 करोड़ के दान के साथ दूसरे स्थान पर

चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को नकद में मिलने वाले चंदे को कर छूट के दायरे से बाहर कर दिया था

खास बातें

  • 20 हज़ार रु. से अधिक के चंदे का ब्यौरा चुनाव आयोग देना होता है
  • क्षेत्रीय दलों में चंदा पाने वाली पार्टियों में शिवसेना सबसे आगे है
  • आम आदमी पार्टी को बीते साल 6.605 करोड़ रुपये दान में मिले
नई दिल्ली:

सभी राजनीतिक दलों को 20 हज़ार रुपये से अधिक के चंदे का ब्यौरा हर साल चुनाव आयोग को देना होता है. नेशनल इलेक्शन वॉच तथा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा पेश एक रिपोर्ट में राजनीतिक क्षेत्रीय दलों को मिले चंदे का ब्यौरा जारी किया  है.

इस ब्यौरे में 16 राजनीतिक दलों का साल 2015-16 का हिसाब-किताब पेश किया गया है. इन 16 दलों में शीर्ष स्थान पर शिवसेना है. शिवसेना को बीते आर्थिक साल में 143 दानदाताओं से 86.84 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. खास बात यह है कि इस 86 करोड़ रुपये के दान में से 85 करोड़ रुपये अकेले वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड से ही मिला है. यानी कुल दान का 98 फीसदी एक ही कंपनी से मिला है.

आम आदमी पार्टी (आप) इस मामले में दूसरे स्थान पर है. 'आप' को 1187 दानदाताओं से 6.605 करोड़ रुपये दान में मिले हैं.

इलेक्शन वॉच के मुताबिक, क्षेत्रीय दलों में शिवसेना, आप,  ऑल इंडिया अन्ना द्रविड मुन्नेत्र कजहगम (एआईएडीएमके ), ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), बीजू जनता दल (बीजेडी), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), जनता दल (एस), जनता दल (यू), झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), लोक जनशक्ति पार्टी (एलजीपी), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस),  राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), तेलगु देसम पार्टी (टीडीपी) आदि पार्टी शामिल हैं.

एआईडीएमके, बीजेडी, जेएमएम, एनपीएफ और आरएलडी ने चुनाव आयोग को दिए रिकॉर्ड में स्वीकार किया है कि उन्हें बीते वित्त वर्ष के दौरान 20 हज़ार रुपये से अधिक का कोई चंदा नहीं मिला है. जबकि बीजेडी, जेएमएम, एनपीएफ और आरएलडी ने 2014-15 के दौरान 25.56 करोड़ रुपये का दान घोषित किया था.

बता दें कि 2014 में चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को नकद में मिलने वाले चंदे को कर छूट के दायरे से बाहर कर दिया था.


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