अहनशीलता पर पूर्व प्रधानमंत्री सिंह बोले - विरोध की आवाज़ को दबाना अर्थव्यवस्था के लिए खतरा

अहनशीलता पर पूर्व प्रधानमंत्री सिंह बोले - विरोध की आवाज़ को दबाना अर्थव्यवस्था के लिए खतरा

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (फाइल फोटो)

देश में असहनशीलता के मुद्दे को लेकर साहित्यकारों और फिल्मकारों द्वारा अवार्ड वापसी का सिलसिला जारी है, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी चिंता जताते हुए कहा है कि विरोध की आवाज़ को दबाना देश के आर्थिक विकास के लिए बड़ा खतरा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की 125 जयंती पर आयोजित एक सम्मेलन में बात करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन करने वाली हालिया घटनाएं बहुत दुखद है और इससे पूरा देश चिंतित है।

डॉ सिंह ने कहा कि कोई भी धर्म किसी भी सार्वजनिक नीति का आधार नहीं बन सकता। धर्म एक निजी मामला है जिसमें राज्य के साथ साथ किसी का भी दखल सही नहीं है। धर्मनिरपेक्षता तो आस्था का ही हिस्सा है, ये नागरिकों की मूलभूत आज़ादी की रक्षा करता है।

गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री के ये तीखे बयान उस वक्त आए हैं जब देश में 'बढ़ती असहिष्णुता' को लेकर बड़े पैमाने पर अलग अलग क्षेत्रों की हस्तियों द्वारा विरोध दर्ज किया जा रहा है। तर्कवादी कलबुर्गी की हत्या और गोमांस की अफवाह पर दादरी में हुई हत्या के बाद देश में धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने में सरकार की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।

हत्या को जायज़ नहीं ठहरा सकते

इस मामले पर अपनी राय रखते हुए डॉ सिंह ने कहा कि कुछ हिंसक कट्टरपंथी समुदायों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाम कसने की कोशिश ने हाल ही में कुछ दुखद घटनाओं को अंजाम दिया है। किसी भी विचारक पर हुए हमले या हत्या को किसी भी आधार पर जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है।

कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का उदाहरण देते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि नवीनीकरण, उद्यमिता और प्रतिस्पर्धा के लिए किसी भी समाज का उनमुक्त और उदार होना जरूरी है जहां सभी अपनी योजनाओं पर बिना किसी रोक टोक के काम कर सकें। असहमति या बोलने की आज़ादी को दबाने से देश के आर्थिक विकास पर  बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। आज़ादी के बगैर मुक्त बाज़ार का कोई मतलब नहीं है।

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इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च के ज़रिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले पर चिंता जताई थी।