यह ख़बर 08 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

एम्स सीवीओ विवाद में तथ्यों से छेड़छाड़, प्रधानमंत्री से छिपाया सच?

नई दिल्ली:

भ्रष्टाचार के खिलाफ आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा', लेकिन उनके अफसर न केवल उनसे तथ्य छिपा रहे हैं, बल्कि उन्हें गलत जानकारी भी दे रहे हैं। एम्स के मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) संजीव चतुर्वेदी को हटाने के मामले में तो ऐसी ही सच्चाई सामने आ रही है। एनडीटीवी के पास जो दस्तावेज़ हैं, वे साफ बताते हैं कि एम्स के सीवीओ के पद से चतुर्वेदी को हटाने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को जो रिपोर्ट भेजी, वह हकीकत से काफी दूर है।

एनडीटीवी इंडिया के पास स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा की पिछली 23 अगस्त को पीएमओ के बड़े अधिकारियों को लिखी वह चिट्ठी है, जिसमें पीएम और स्वास्थ्य मंत्री की फोन पर हुई बात का ज़िक्र है। स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा ने यह चिट्ठी कैबिनेट सचिव अजित सेठ के साथ-साथ पीएम के प्रिसिंपल सेक्रेटरी नृपेन मिश्रा और एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रटरी पीके मिश्रा को लिखी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन से उस वक्त बात की, जब मीडिया में यह खबर छाई थी कि एम्स में कैसे एक ईमानदार अफसर को राजनीतिक दबाव में हटाया गया है। पीएम और स्वास्थ्य मंत्री की बातचीत के बाद सेक्रेटरी लव वर्मा ने खुद एक रिपोर्ट पीएमओ को भेजी, लेकिन इस रिपोर्ट में न केवल तथ्यों को छिपाया गया, बल्कि गलतबयानी भी की गई।

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हेल्थ सेक्रेटरी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को जो रिपोर्ट भेजी है, उसमें यह नहीं बताया गया कि बीजेपी के बड़े नेता जेपी नड्डा ने बार-बार संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिए चिट्ठी लिखी, जबकि सच यह है कि संजीव चतुर्वेदी की फाइल के पेज 71 पर उन्हें सीवीओ पद से हटाने के प्रस्ताव की शुरुआत ही जेपी नड्डा की चिट्ठी से होती है। सच यह भी है कि चतुर्वेदी को हटाने के प्रस्ताव पर हेल्थ सेक्रेटरी लव वर्मा के भी दस्तखत हैं, जिन्होंने पीएम को यह रिपोर्ट भेजी।

स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन बार-बार कहते रहे हैं कि जेपी नड्डा की चिट्ठियों का एम्स के सीवीओ चतुर्वेदी को हटाए जाने से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन एनडीटीवीख़बर.कॉम पर हमने आपको बताया था कि कैसे बीजेपी नेता जेपी नड्डा ने न केवल चतुर्वेदी को हटाने की मांग की, बल्कि अपनी पसंद का सीवीओ बिठाने को भी कहा। नड्डा ने यह भी मांग की थी कि संजीव चतुर्वेदी ने भ्रष्टाचार के जिन मामलों को उजागर किया है, उन्हें नए सीवीओ से रिव्यू कराया जाए। (देखें संबंधित वीडियो - एम्स में अपनी पसंद का सीवीओ चाहते थे नड्डा)

हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री को भेजी रिपोर्ट में जेपी नड्डा का ज़िक्र तक नहीं किया गया है। जेपी नड्डा बीजेपी के बड़े नेता हैं, और इस वक्त वह बीजेपी महासचिव होने के साथ पार्टी संसदीय बोर्ड के सदस्य भी हैं। प्रधानमंत्री को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जो रिपोर्ट भेजी गई, उसमें और हकीकत में कई विरोधाभास हैं। मिसाल के तौर पर पीएम को यह नहीं बताया गया कि इस साल 23 मई को हेल्थ सेक्रेटरी ने उस फाइल पर खुद दस्तखत किए थे, जिस पर लिखा था कि संजीव चतुर्वेदी की नियुक्ति एम्स के सीवीओ पद पर बिल्कुल संवैधानिक है।

  • यह लिखते वक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने जेपी नड्डा की लिखी चिट्ठियों से उठे सवालों को खारिज कर दिया था।
  • सच तो यह है कि वर्ष 2012 में सरकार ने (उस वक्त स्वास्थ्य सचिव रहे पीके प्रधान ने) संसदीय समिति को इस बात का भरोसा दिया था कि संजीव चतुर्वेदी एम्स के सीवीओ पद पर बने रहेंगे। इसी भरोसे के आधार पर मौजूदा सचिव ने चार महीने पहले इस केस को बंद करने के लिए लिखा था, लेकिन अभी पीएम को भेजी गई रिपोर्ट से ये तथ्य गायब हैं। प्रधानमंत्री को यह नहीं बताया गया कि सीवीओ के पद को बनाने के लिए एम्स की महत्वपूर्ण गवर्निंग बॉडी और इंस्टीट्यूट बॉडी जैसी कमेटियों ने अपनी मुहर लगा दी थी, बल्कि पीएम से यह कहा गया कि इन कमेटियों ने सहमति नहीं दी थी।

एनडीटीवी इंडिया ने जो सवाल भेजे, उनका न हेल्थ सेक्रेटरी की तरफ से, और न प्रधानमंत्री कार्यालय से जवाब आया, लेकिन हेल्थ सेक्रेटरी ने एसएमएस भेजकर यह जरूर कहा कि वह मीडिया ट्रायल के आगे नहीं झुकेंगे। गौरतलब है कि सरकार ने पिछली 14 अगस्त को यह कहते हुए संजीव चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया था कि वह इस पद के लायक नहीं है, क्योंकि सीवीसी ने उन्हें (चतुर्वेदी को) नियुक्त करने की अनुमति नहीं दी है। हालांकि एनडीटीवीख़बर.कॉम ने इस मामले की तहकीकात कर सच उजागर किया था। (देखें संबंधित वीडियो - एम्स के सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को हटाने पर सवाल)

हालांकि एनडीटीवीख़बर.कॉम तथा एनडीटीवी इंडिया पर इस खबर के प्रसारित होने के बाद गुरुवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इस मसले पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों को टाल दिया, और सफाई देने के नाम पर सिर्फ इतना कहा, "पीएमओ ने मंत्रालय से कोई रिपोर्ट नहीं मांगी थी, बल्कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने खुद ही एक विस्तृत नोट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा था..."