खंड खंड बुंदेलखंड : किसानों को मुआवजा तो मिला नहीं, अब मॉनसून भी रुलाएगा

खंड खंड बुंदेलखंड : किसानों को मुआवजा तो मिला नहीं, अब मॉनसून भी रुलाएगा

नई दिल्‍ली:

सरकार का कहना है कि इस साल बरसात अच्छी नहीं होगी। मौसम विभाग ने इस आशंका पर मुहर लगा दी है। दिल्ली से कई सौ किलोमीटर दूर बुंदेलखंड के किसानों के लिये यह सबसे बुरी ख़बर है। यहां पिछले 15 साल से मॉनसून ख़राब रहा है जिससे ख़रीफ की फ़सल प्रभावित होती रही है। लेकिन पिछले तीन साल से तो बेमौसमी बरसात ने रबी की फसल को भी चौपट कर रखा है।

बुंदेलखंड के परेशान किसान इस बार शायद सबसे खस्ताहाल में हैं। शिवगढ़ गांव के किसान कहते हैं, ‘अभी बेमौसम बारिश से जो फसल चौपट हुई उसका कोई मुआवज़ा नहीं मिला है। अब बरसात न हो तो हम अगली फसल भी नहीं बो सकते। पिछले तीन साल से हम लगातार दो-दो फसल गंवा रहे हैं।’

बुंदेलखंड के सात ज़िले यूपी में और छह ज़िले मध्यप्रदेश में पड़ते हैं। किसानों का हाल सब जगह ख़राब है लेकिन सबसे बुरे हाल बांदा, महोबा, जालौन और हमीरपुर में हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि जालौन ज़िले में ही करीब साढ़े तीन सौ किसानों की मौत फसल बरबाद होने के सदमे से हुई या फिर उन्होंने आत्महत्या कर ली।

झांसी के ज़िलाधिकारी अनुराग यादव कहते हैं कि फसल बरबाद होने के नाम पर जितना मुआवज़ा बांटा जाना है उसका एक तिहाई पैसा ही अब तक मंज़ूर हो पाया है। ऐसे में सबको मुआवाज़ा नहीं मिल पा रहा लेकिन सरकार कोशिश कर रही है।

झांसी के गांवों में घूमने पर पता चला कि लोगों को मुआवज़ा देने के लिये लेखपाल घूस मांग रहे हैं। 45 साल के धर्मलाल राजपूत की मौत इसी साल अप्रैल में बीमारी से हो गई। उनके पास इलाज के लिये पैसा नहीं था। उनका बेटा अनिल आज मुआवज़े के लिये धक्के खा रहा है। वह पिछली 25 अप्रैल से लेखपाल को ढूंढ रहा है लेकिन लेखपाल फसल बरबादी के सर्वे के गांव में आता ही नहीं। गांव के कई दूसरे लोगों ने भी यही शिकायत की। कई लोगों ने आरोप लगाया कि मुआवज़े के लिये किसानों से घूस मांगी जा रही है।

परेशानी सिर्फ इतनी नहीं है। हर जगह पानी की समस्या है। पचास पचास फुट गहरे कुएं हैं जो सूखे पड़े हैं। खेती के लिये पूरी तरह से मॉनसून पर निर्भर हैं लेकिन पीने के लिये पानी कहां से लायें। रामगढ़ में 16 साल की कविता एक बाल्टी में रस्सी बांधकर उसे बार बार कुएं में फेंकती है। तली से थोड़ा बहुत पानी आता है लेकिन वह पीने लायक नहीं। ‘मैं इस पानी से बर्तन साफ करती हूं। पीने का पानी खरीदना पड़ता है या फिर मीलों दूर से लाना पड़ता है। पानी न मिलने से इन गांवों में कोई अपनी बेटी की शादी भी नहीं करना चाहता और यहां की लड़कियां जल्द से जल्द शादी कर ऐसी जगह जाना चाहती हैं जहां पानी आता हो।’

बुंदेलखंड के ललितपुर ज़िले का सेरवास गांव आदिवासियों और दलितों का गांव है। यहां बरसात ने न केवल खेतों में फसल तबाह की बल्कि लोगों के घरों को भी नष्ट कर दिया। 65 साल के गवासी और उनकी 35 साल की बहू मीरा के लिये ज़िंदगी दूभर हो गई है। पिछले तीन साल से लगातार हर फसल चौपट हो रही है। इस बार गेहूं बरबाद हुआ लेकिन इतना भी नहीं बचा कि घर में खाने के लिये इस्तेमाल किया जा सके।

महत्वपूर्ण है कि बुंदेलखंड सारे नेताओं की पसंदीदा राजनीतिक सैरगाह रहा है। कभी राहुल गांधी यहां आते हैं और दलितों के साथ रात बिताते हैं। ‘धरतीपुत्र’ कहे जाने वाले मुलायम सिंह की यहां सरकार है। मायावती इसे नया राज्य बनाने की बात करती हैं। नरेंद्र मोदी कहते हैं कि उनके पास बुंदेलखंड की भलाई के लिये ब्लू प्रिंट है। उमा भारती यहां की सांसद हैं लेकिन लोगों की शिकायत है कि वो यहां आती ही नहीं। ‘जब से यहां चुनाव जीती हैं उमा जी किसानों की बीच नहीं आईं। उनके प्रतिनिधि भी हमसे नहीं मिलते।’ एक किसान हमें बताते हैं।
 
सेरवास गांव में लोग बताते हैं कि किसानों में गुरबत के ये हाल है कि यहां शादियां होनी भी मुश्किल हो गई हैं। तभी एक दूल्हा साइकिल पर आता दिखाई देता है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मानवेंद्र बताते हैं कि यहां दूल्हे को बैलगाड़ी पर लाया जाता है लेकिन इस बार कई लोगों को अपने बैल तक बेचने पड़ गये।

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सेरवास से कुछ ही दूर बुधावनी गांव में लोग महुआ से कमाई करते थे। लेकिन इस बार बरसात की वजह से महुआ भी बरबाद हो गया और गेहूं की फसल भी। लोग घरों को छोड़कर जा रहे हैं। झांसी स्टेशन पर बुंदेलखंड से मज़दूरी के लिये आगरा, लखनऊ और दिल्ली जाने वालों की कोई कमी नहीं है। स्टेशन पर बच्चों समेत बैठा एक किसान कहता है, ‘जब घर और खेत दोनों बरबाद हो गया तो मज़दूरी के लिये बाहर तो जाना ही पड़ेगा’।