Kisan Rally Violence: कांग्रेस ने केंद्र पर साधा निशाना, 'हिंसा के लिए सीधे तौर पर अमित शाह जिम्‍मेदार, उन्‍हें बर्खास्‍त करें PM'

सुरजेवाला ने कहा कि 'भीड़' को लालक़िले में घुसने दिया गया और पुलिस कुर्सी पर बैठी रही. इसमें मोदी-शाह के 'चेले' दीप संधू की उपस्थिति चौंकाने वाली है.

Kisan Rally Violence: कांग्रेस ने केंद्र पर साधा निशाना, 'हिंसा के लिए सीधे तौर पर अमित शाह जिम्‍मेदार, उन्‍हें बर्खास्‍त करें PM'

रणदीप सुरजेवाला ने कहा, किसान आंदोलन को अब सरकार 'छलपूर्वक' हटा रही है

नई दिल्‍ली:

Kisan Rally Violence: गणतंत्र दिवस पर किसान संगठनों की ओर से आयोजित ट्रैक्‍टर रैली (Tractor Rally) के दौरान हिंसा मामले में कांग्रेस पार्टी (Congress) ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व वाली केंद्र सरकार (Central Government) और इसके गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) पर तीखा हमला बोला है. कांग्रेस प्रवक्‍ता रणदीप सुरजेवाला (Randeep Surjewala) ने बुधवार को कहा कि दिल्ली में हिंसा के लिए सीधे सीधे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ज़िम्मेदार हैं और पीएम मोदी को उन्‍हें बर्खास्‍त करना चाहिए. सुरजेवाला ने कहा कि 'भीड़' को लालक़िले में घुसने दिया गया और पुलिस कुर्सी पर बैठी रही. इसमें मोदी-शाह के 'चेले' दीप संधू की उपस्थिति चौंकाने वाली है. कांग्रेस प्रवक्‍ता ने कहा, 'किसान आंदोलन को सरकार बलपूर्वक नहीं हटा पायी तो इसे छलपूर्वक हटाने में लगी है. मोदी और शाह सरकार की नीति है-पहले प्रताड़ित करो, फिर मीटिंग-दर-मीटिंग थकाओ, फिर फूट डालो, फिर बदनाम करो और भगाओ.

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सुरजेवाला ने सवाल किया, 40-50 ट्रैक्टर और हुड़दंगी लाल क़िले में कैसे घुस सकते हैं? दीप संधू इन्‍हें कैसे लीड कर रहा था. उन्‍होंने कहा कि हिंसा-हुड़दंग को रोक नहीं पाने की ज़िम्मेदारी किसानों की नहीं बल्कि सरकार की है. उन्‍होंने कहा कि लाल किला (Red Fort) हमारी आजादी का प्रतीक है. किसानों और गरीबों के लिए सर्वमान्य है तो 500-700 हिंसक तत्व जबरदस्ती लाल किले में कैसे घुस सकते हैं? जो दीप सिद्धू, प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचवाकर साझा करता है, उसे और उसके समर्थकों को लाल किले तक जाने की अनुमति किसने दी? क्या यह साफ नहीं दिखा कि पुलिस बैठकर तमाशा देख रही थी और टीवी कैमरों का मुंह लाल किले की प्राचीर की तरफ था?

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कांग्रेस प्रवक्‍ता के अनुसार, किसानों के मुताबिक मंगलवार तक 178 से अधिक किसान इस आंदोलन के दौरान दम तोड़ गए. ऐसे में सवाल यह उठता है कि किसानों को हिंसा ही करनी होती तो वो 63 दिन से हाड़ कंपकपाती सर्दी में दिल्ली की सीमाओं पर लाखों की संख्या में क्यों बैठते? उन्‍होंने कहा कि आज़ादी के 73 सालों में यह पहला मौका है, जब कोई सरकार लाल किले जैसी राष्ट्रीय धरोहर की सुरक्षा करने में बुरी तरह नाकाम रही. किसानों के नाम पर साज़िश के तहत चंद उपद्रवियों को लाल किले में घुसने दिया गया और दिल्ली पुलिस कुर्सियों पर बैठी आराम फरमाती रही.

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