Flashback 2019: बनते-बिगड़ते सियासी समीकरणों का साल, सत्ता के लिए मची रही उथल-पुथल

खास बात जो सामने आई : राजनीति में कोई चिर दुश्मन नहीं होता, समय के मुताबिक जरूरत पड़ने पर शत्रु को भी मित्र बना लिया जाता है

Flashback 2019: बनते-बिगड़ते सियासी समीकरणों का साल, सत्ता के लिए मची रही उथल-पुथल

महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी शिवसेना ने सरकार एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर बनाई.

खास बातें

  • महाराष्ट्र में साल 2019 का सबसे अधिक चौंकाने वाला राजनीतिक घटनाक्रम
  • बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी चंद दिन ही चल सकीं साथ
  • बीजेपी को लोकसभा में अपार कामयाबी, राज्यों के चुनाव में मिला सबक
नई दिल्ली:

देश में साल 2019 भारी राजनीतिक उथल-पुथल और बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरणों के लिए याद किया जाएगा. इस साल मई में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने लोकसभा चुनाव में अपार सफलता हासिल की. इसके बाद राजनीतिक समीकरण ऐसे बदले कि पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता खोने वाली बीजेपी को इस साल महाराष्ट्र और झारखंड जैसे प्रमुख राज्यों में भी असफलता का सामना करना पड़ा. सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद कर्नाटक की सत्ता से दूर रही बीजेपी इस साल जोड़तोड़ करके अपनी सरकार बनाने में सफल हो गई. हरियाणा में बीजेपी को सत्ता में वापसी के लिए जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का सहारा लेना पड़ा. उधर महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए महत्वाकांक्षी शिवसेना के साथ बीजेपी के समीकरण ऐसे बिगड़े कि वह जीता हुआ दांव हार गई. देश के सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी को कहीं विपक्ष ने ताकत दिखाई तो कहीं उसके सहयोगियों ने ही उसे सबक सिखा दिया.         

राजनीति में कोई चिर दुश्मन नहीं होता. समय के मुताबिक जरूरत पड़ने पर शत्रु को भी मित्र बना लिया जाता है. यह बात इस साल प्रमुखता से सामने आई. उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव में करारी पराजय झेलने के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) ने साल 2019 में हाथ मिला लिया. बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलश यादव ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा. सपा और बसपा ने करीब बराबर सीटों पर प्रत्याशी उतारे. सपा ने 37 सीटों पर और बसपा ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा. यहां तक कि मायावती ने मुलायम सिंह यादव के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया, लेकिन लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को नाकामयाबी ही मिली. सपा-बसपा का 12 जनवरी 2019 को बना गठबंधन 23 जून 2019 को खत्म हो गया. जैसी कि शुरू से ही आशंका थी, दोनों चिर प्रतिद्वंदी पार्टियां अधिक दिन साथ नहीं चल सकीं.      

महाराष्ट्र में शिवसेना का बीजेपी से नाता तोड़ना और एनसीपी व कांग्रेस से गठबंधन करके सरकार बनाना साल 2019 का सबसे अधिक चौंकाने वाला राजनीतिक घटनाक्रम है. बीजेपी को कतई गुमान नहीं था कि शिवसेना इस तरह अचानक उसका साथ छोड़ देगी. बीजेपी ने अजित पवार के जरिए एनसीपी के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की जिसमें वह बुरी तरह नाकामयाब रही. बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन ने चुनाव में क्रमश: 105 और 56 सीटें जीतीं. जबकि शिवसेना ने 54 सीटें जीतने वाली एनसीपी और 44 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार का गठन किया.   

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महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बावजूद बीजेपी और शिवसेना में ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की साझेदारी पर बात नहीं बनी. परिणाम स्वरूप बीजेपी-शिवसेना सरकार नहीं बन सकी. शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से 25 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया और शिवसेना की हमेशा से प्रतिद्वंदी रहीं पार्टियां कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन कर लिया. इस तरह उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री का पद हासिल करने की महत्वाकांक्षा पूरी करने में कामयाब हो गए. उनके पुत्र आदित्य ठाकरे ने चुनाव में जीत हासिल की. ऐसा पहली बार हुआ जब ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ा और पहली बार ही इस परिवार का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बना.    

लंबे अरसे तक कांग्रेस के नेता और मुख्यमंत्री रहे नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार ने महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन में सबसे अहम भूमिका निभाई. उन्होंने शिवसेना से पुरानी वैचारिक रूप से असमानता के बावजूद उससे हाथ मिलाया और कांग्रेस को भी साथ ले आए. बीजेपी ने अजित पवार को साधकर सरकार भी बना ली लेकिन शरद पवार ने एनसीपी को तोड़ने की कोशिश नाकामयाब कर दी. वे महाराष्ट्र की राजनीति के सही मायने में 'चाणक्य' बनकर सामने आए.       

झारखंड के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का साथ छोड़ दिया. इससे बीजेपी को कई फायदा तो नहीं मिला, बल्कि उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और कांग्रेस के गठबंधन को 47 सीटें मिलीं. जेएमएम के हेमंत सोरेन के सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया. दूसरी तरफ रघुबर दास के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली बीजेपी 25 सीटों पर ही सिमटकर रह गई. इस हार को बीजेपी के अति आत्मविश्वास की पराजय कहना उचित होगा.  

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महाराष्ट्र और झारखंड के राजनीतिक घटनाक्रम ने बीजेपी को सबक सिखाया कि यदि सहयोगी दलों की अहमियत नहीं समझी गई तो वे घातक भी हो सकते हैं. बीजेपी के अन्य सहयोगी दलों को महाराष्ट्र और झारखंड के परिणामों के बाद बीजेपी पर हावी होने का मौका मिल गया है.

महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी के एनडीए में सहयोगी दलों ने उसका साथ छोड़ा, तो हरियाणा में बीजेपी जिस जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के खिलाफ चुनाव मैदान में थी, उसी से हाथ मिलाकर सत्ता में लौटी. हरियाणा में 47 सीटों वाली बीजेपी इस साल के चुनाव में 37 सीटों पर आ गई. जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में 17 सीटों वाली कांग्रेस ने 31 सीटें हासिल कर लीं. आखिरकार बहुमत से दूर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी का सहारा लेना पड़ा.   
 
कर्नाटक में साल 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता से दूर रह गई थी. येदियुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर सके थे. कांग्रेस-जेडीएस ने सरकार बना ली थी. लेकिन साल 2019 में बाजी तब पलट गई जब 15 विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया गया. इससे अल्पमत में आई जेडीएस-कांग्रेस सरकार गिर गई और बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिल गया. बाद में हुए उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर लड़े अयोग्य ठहराए गए विधायकों में से अधिकांश जीत गए और इस तरह कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने मजबूत स्थिति हासिल कर ली.

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देश की राजनीति में यह साल लोकसभा चुनावों में बीजेपी की दोबारा शानदार विजय के लिए याद किया जाएगा. आम  तौर पर चुनावी दल सत्ता में रहने के बाद अगली बार अक्सर कम सीटों से जीतते हैं या हार भी जाते हैं. लेकिन बीजेपी ने अबकी बार 300 के पार के अपने नारे को सच साबित किया और 23 मई 2019 को घोषित परिणामों में उसे 303 सीटें मिलीं. सहयोगी दलों के साथ एनडीए 356 सीटों तक पहुंच गई. इससे पहले के 2014 के चुनाव में बीजेपी को 282 सीटें हासिल हो सकी थीं. पूर्ण बहुमत वाली मजबूत सरकार बनने से बीजेपी लगातार बड़े फैसले ले सकी. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाना, नागरिकता संशोधन कानून लाना, तीन तलाक कानून लाना, इनमें से प्रमुख फैसले हैं.   

आंध्रप्रदेश के चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को अभूतपूर्व सफलता हासिल हुई. उसने कुल 175 में से 151 सीटों पर फतह हासिल कर ली और उनके प्रतिद्वंद्वी चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलगू देशम पार्टी 23 सीटें ही हासिल कर सकी. बीजेपी का यहां खाता भी नहीं खुल सका. आंध्रप्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस ने दमदार मौजूदगी दर्ज कराई. दस साल पहले कांग्रेस से अलग हुए जगनमोहन रेड्डी सीएम की कुर्सी पर पहुंच गए. सन 2009 में जगनमोहन के पिता और तत्कालीन सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी का असामयिक निधन हो गया था. तब कांग्रेस ने जगनमोहन को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया था. इस पर जगनमोहन ने अपनी अलग पार्टी वाईएसआर कांग्रेस बनाई थी. अब दस साल बाद जगनमोहन आंध्रप्रदेश की सत्ता के नायक बनकर उभरे. 

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सिक्किम के विधानसभा चुनाव में तमांग के सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने 17 सीटें जीतीं. सन 1994 से 2019 तक मुख्यमंत्री रहे पवन चामलिंग को पराजय का सामना करना पड़ा. अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी ने 41 सीटें जीतकर सरकार बनाई और पेमा खांडू दुबारा मुख्यमंत्री बन गए. यहां जेडीयू 15 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसने सात सीटें जीतकर सबको चौंका दिया. ओडिशा में बीजू जनता दल 146 में से 112 सीटें जीतकर फिर से सत्ता पर काबिज हुई. पिछले 22 सालों से ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक पांचवी बार मुख्यमंत्री बने.

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