नोटबंदी पर गुस्साए किसान - 'हमारे गांव आकर देखिए, फिर आप जानेंगे हमारी तकलीफ'

नोटबंदी पर गुस्साए किसान - 'हमारे गांव आकर देखिए, फिर आप जानेंगे हमारी तकलीफ'

खास बातें

  • 500-1000 रुपये के नोट बंद होने से किसानों को हो रही है भारी परेशानी
  • किसानों को फसलें बोने और खाद के लिए चाहिए नकदी
  • कई-कई दिन तक लाइन में खड़े रहने पर भी किसानों को नहीं मिल रही नकदी
महोबा (उत्तर प्रदेश):

मध्य उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में एक बैंक के बाहर लगी लोगों की लाइन सुबह 9 बजे ही बेहद लंबी हो चुकी होती है, और तब तक बिहारी दास थककर चूर हो चुका है, क्योंकि वह लगातार चौथे दिन 10 किलोमीटर पैदल चलकर बैंक तक आया है... 65-वर्षीय किसान बिहारी दास ने अपना दर्द बांटते हुए कहा, "यह बेहद परेशान करने वाला है... मैं रोज़-रोज़ ऐसा नहीं कर सकता, लेकिन करना पड़ेगा..." सबसे ज़्यादा तकलीफदेह यह है कि अब तक हर रोज़ इस यात्रा का परिणाम निराश करने वाला ही रहा है, और बिहारी दास की बारी आने से पहले ही नकदी खत्म हो जाती है...

इस वक्त उसकी सबसे बड़ी ज़रूरत 10,000 रुपये हैं, जो उसे उन फसलों के लिए खाद खरीदने की खातिर चाहिए, जो अभी उसने गांव में बोई है... इस साल छोटे-छोटे खेतों से भरे बुंदेलखंड के ज़्यादातर हिस्से में कई सालों में पहली बार मॉनसून अच्छा रहा, और आमतौर पर सूखे से त्रस्त रहने वाले इलाके में कुछ राहत मिलती देख बिहारी दास ने भी तुरंत बुआई करने का विचार बना लिया...

...और फिर सरकार ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला कर लिया... इसके बाद अचानक हुई नकदी की किल्लत का नतीजा यह रहा कि किसान बीज और खाद खरीदने के लिए परेशानियां झेल रहे हैं... कुछ किसान खेतों की जुताई कर उसे बुआई के लिए तैयार कर चुके हैं, और अब ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते...

सुबह 10 बजे बिहारी दास के साथ बैंक के बाहर लगभग 400 लोग लाइन में हैं, जिनमें से ज़्यादातर आसपास के गांवों से आए गरीब किसान ही हैं... गुरुवार को सरकार ने कहा था कि किसान अपनी फसलों के लिए अपने किसान क्रेडिट कार्डों के ज़रिये एक सप्ताह में 25,000 रुपये तक निकाल सकते हैं...

अब हालांकि बैंक मैनेजर पहुंच चुके हैं, लेकिन ब्रांच अब तक खोली नहीं गई है... गुस्सा बढ़ रहा है... इसी बीच, दिलशाद खान नामक किसान ने कहा, "आपको लगता है, मैं झूठ बोल रहा हूं...? हम सब झूठ बोल रहे हैं...? आप क्या समझते हैं, हमें पैसे की ज़रूरत नहीं है...? हमारे गांव आइए, और देखिए, हम पर क्या बीत रही है..."

...और सिर्फ 40 मिनट बाद किसानों का डर सच साबित हो जाता है... उन्हें बताया जाता है कि नकदी खत्म हो चुकी है...

बैंक के मुख्य कैशियर विक्रांत दुबे बताते हैं कि वह और नकदी मंगाने की कोशिश कर रहे हैं... वह कहते हैं, "मैं रोज़ाना 13 घंटे काम कर रहा हूं... मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं, लेकिन नकदी की कमी का हम क्या कर सकते हैं...?" अन्य बैंक अधिकारियों ने भी बताया कि बैंक में आखिरी बार नकदी दो दिन पहले पहुंची थी - नए नोटों की सूरत में 15 लाख रुपये - जो गुरुवार को ही खत्म हो गए...

बिहारी दास अब भी लाइन में खड़ा है...


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