2019 में ऑनलाइन होगी सत्ता की लड़ाई, 'वॉर-रूम' में व्हॉट्सऐप निभाएगा अहम भूमिका

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में जब अगले साल आम चुनाव 2019 के दौरान वोट डाले जाएंगे, यह किसी चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका की भी सबसे बड़ी परीक्षा होगी.

2019 में ऑनलाइन होगी सत्ता की लड़ाई, 'वॉर-रूम' में व्हॉट्सऐप निभाएगा अहम भूमिका

कांग्रेस का सोशल मीडिया रूम

नई दिल्ली:

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में जब अगले साल आम चुनाव 2019 के दौरान वोट डाले जाएंगे, यह किसी चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका की भी सबसे बड़ी परीक्षा होगी. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के बीच 2019 के लोकसभा चुनाव में होने वाली चुनावी जंग में विजेता का फैसला करने में फेसबुक, ट्विटर और व्हॉट्सऐप की भूमिका भी बेहद अहम होगी.

फेसबुक, व्हॉट्सऐप, गूगल और ट्विटर से भारत में चुनावी सफलता

हिन्दुस्तान में इस वक्त लगभग 90 करोड़ वैध मतदाता है, और लगभग 50 करोड़ लोगों की पहुंच इंटरनेट तक है. देश में 30 करोड़ फेसबुक यूज़र हैं, और 20 करोड़ लोग फेसबुक की व्हॉट्सऐप मैसेजिंग सर्विस का इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी अन्य लोकतंत्र के मुकाबले कहीं ज़्यादा हैं. इसके अलावा भारत में ट्विटर यूज़र भी लाखों में हैं.

सोशल मीडिया तथा भारतीय राजनीति विषय पर शोध कर चुकीं ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न स्थित डीकिन यूनिवर्सिटी में कम्युनिकेशन्स की प्रोफेसर उषा एम. रोडरीगुएज़ का कहना है, "आगामी चुनाव में सोशल मीडिया तथा डेटा विश्लेषण मुख्य भूमिका में रहेंगे... इनका इस्तेमाल अभूतपूर्व होगा, क्योंकि अब दोनों पार्टियां सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं..."

इसी के साथ भड़काऊ ख़बरों और वीडियो के प्रयोग से हिंसा फैल जाने की आशंका के चलते सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल की गुंजाइश भी बहुत ज़्यादा है. डेटा पोर्टल IndiaSpend के मुताबिक, सोशल मीडिया पर फैलाई गई फेक न्यूज़ और झूठे संदेशों की वजह से पिछले साल से अब तक 30 से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं, जिनमें से अधिकतर बच्चा चोरी करने वाले गिरोहों के बारे में फैलाई गई अफवाहें थीं.

इसी तरह अतीत में राजनैतिक मतभेद भी कम खतरनाक नहीं रहे हैं. वॉशिंगटन स्थित कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर रिसर्च फेलो मिलन वैष्णव ने आम चुनाव 2019 के लिए होने वाले प्रचार अभियान के बारे में कहा, "सोशल मीडिया पर होने वाले संवाद, जो पहले से कड़वे हैं, अब और भद्दे हो जाएंगे..."

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दोनों प्रमुख पार्टियां एक दूसरे पर फेक न्यूज़ फैलाने का आरोप लगाती हैं, जबकि खुद ऐसा करने का खंडन करती हैं. बहरहाल, दोनों पार्टियों के बीच लकीर खिंच चुकी है. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों को लेकर हमले बोले हैं, औऱ दूसरी ओर, BJP कांग्रेस पर जनता से कट जाने का आरोप लगाती रही है.

इसी महीने कांग्रेस ने BJP का गढ़ माने जाते रहे तीन राज्यों - मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान - में चुनावी जीत हासिल की है, जिससे अब आम चुनाव 2019 की लड़ाई कहीं ज़्यादा कड़ी लगने लगी है. कांग्रेस की इस जीत के पीछे नए सिरे से बनाई गई उसकी सोशल मीडिया रणनीति का अहम योगदान रहा.

वॉर-रूम

वर्ष 2014 में हुए पिछले आम चुनाव के दौरान कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुचलकर रख दिया था. इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया 'हथियारों' का योगदान बेहद अहम था, जिनमें उनके निजी एकाउंट से किए गए ढेरों ट्वीट, फेसबुक पर BJP के अभियान और गांवों-कस्बों में प्रधानमंत्री की होलोग्राफिक तस्वीरें शामिल थीं.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर बाद में, वर्ष 2015 में एकाउंट बनाया, लेकिन अब विपक्षी दल तेज़ी से बराबरी पर आ रहा है, और लड़ाई का मैदान पहले से ज़्यादा व्यापक होता जा रहा है.

काउंटरप्वाइंट रिसर्च के अनुसार, भारत में इस वक्त 45 करोड़ से ज़्यादा स्मार्टफोन यूज़र हैं, जबकि पिछले चुनाव के समय 2014 में इनकी तादाद 15.5 करोड़ ही थी. भारत में अब स्मार्टफोन यूज़रों की तादाद अमेरिका की पूरी आबादी से भी कहीं ज़्यादा है.

समाचार एजेंसी रॉयटर ने हाल ही में विजित राज्य राजस्थान में कांग्रेस के ऑनलाइन ऑपरेशनों के एक हब का दौरा किया, जो राजधानी जयपुर में एक तीन-बेडरूम के अपार्टमेंट में बनाया गया था. उसके भीतर पार्टी कार्यकर्ता कई टीवी स्क्रीनों की मदद से समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पोस्टों पर नज़र रखे हुए थे. ऑडियो, वीडियो और ग्राफिक विशेषज्ञों की तीन-सदस्यीय टीम कैम्पेन मैटीरियल तैयार कर रही थी, जिसे वेबसाइटों पर पोस्ट किया जा रहा था, और अन्य वॉलंटियर व्हॉट्सऐप के ज़रिये पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश भेज रहे थे.

खुद का सोशल मीडिया मार्केटिंग बिज़नेस चलाने वाले और कांग्रेस के जयपुर वाले वॉर-रूम को संचालित करने वाले 45-वर्षीय मनीष सूद कहते हैं, "तब हम बच्चे थे, लेकिन अब हम उन्हें पीछे छोड़ देंगे..."

वैसे तो अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऑनलाइन मुकाबला आसान नहीं है. फेसबुक पर उनके फॉलोअरों का तादाद चार करोड़ 30 लाख है, और ट्विटर पर साढ़े चार करोड़. दुनियाभर में सबसे ज़्यादा फॉलो किए जाने वाले राजनेताओं में शुमार होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ट्विटर पर फॉलोअर 81 लाख हैं, और फेसबुक पर महज़ 22 लाख.

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BJP के जयपुर स्थित सोशल मीडिया सेंटर पर आने देने का अनुरोध ठुकरा दिया गया, लेकिन पार्टी की राजस्थान आईटी इकाई के एक सदस्य मयंक जैन ने बताया कि वह इसी तरह के (कांग्रेस जैसे) ऑपरेशन जयपुर के दो फ्लैटों से संचालित करते हैं.

अपने फोन में BJP के दर्जनों व्हॉट्सऐप ग्रुप दिखाते हुए मयंक जैन ने एक इंटरव्यू में कहा, "कांग्रेस अब सोशल मीडिया को कुछ-कुछ समझती है, लेकिन उनके पास वॉलंटियरों की वैसी तादाद नहीं है..." मयंक के फोन में मौजूद व्हॉट्सऐप ग्रुपों में से एक था - 'BJP राजस्थान वॉरियर्स'

व्हॉट्सऐप का उत्थान

वर्ष 2014 में माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक को राजनेताओं, विशेषकर BJP के राजनेताओं ने अपनाया था, लेकिन अब व्हॉट्सऐप पसंदीदा सोशल मीडिया टूल बन चुका है. जयपुर और निकटवर्ती कस्बे टोंक में, जहां चुनाव के दौरान जनता के समझ भाषण देने और पोस्टरों के ज़रिये प्रचार करने के परम्परागत तरीके धड़ल्ले से अपनाए जाते रहे हैं, कांग्रेस और BJP के कार्यकर्ताओं ने दर्जनों व्हॉट्सऐप ग्रुप दिखाए, जिनके वे सदस्य हैं, और जिनका उन्होंने प्रचार के लिए इस्तेमाल किया.

कांग्रेस का कहना है कि उसके वॉलंटियरों ने राजस्थान में 90,000 व्हॉट्सऐप ग्रुप चलाए, जबकि BJP ने बताया कि वह 15,000 व्हॉट्सऐप ग्रुपों को सीधे संचालित करती है, लेकिन उसके कार्यकर्ता लगभग एक लाख अन्य व्हॉट्सऐप ग्रुपों के ज़रिये उसका प्रचार करते हैं.

लेकिन व्हॉट्सऐप विवादों के घेरे में भी रहा है. भारत में व्हॉट्सऐप पर बच्चा चोरी की ढेरों अफवाहें इस पर फैलने के बाद अक्टूबर में ब्राज़ील में हुए चुनाव के दौरान भी व्हॉट्सऐप पर ढेरों फर्ज़ी और षडयंत्र की ख़बरें फैलती रहीं. दरअसल, व्हॉट्सऐप के 'एंड-टु-एंड एन्क्रिप्शन' की वजह से सैकड़ों की तादाद में यूज़रों द्वारा भेजे जाने वाले टेक्स्ट, फोटो और वीडियो की जांच करना मुमकिन नहीं है, न प्रशासन के लिए, न स्वतंत्र रूप से तथ्यों की जांच करने वालों के लिए, और न ही खुद व्हॉट्सऐप के लिए.

जयपुर में ऑनलाइन सामग्री की निगरानी करने वाली इकाई के प्रभारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नितिन दीप ब्लागन का कहना है, "सोशल मीडिया के फ्रंट पर इस समय हमारे लिए व्हॉट्सऐप सबसे बड़ी चुनौती है..."

व्हॉट्सऐप ने एक ही बार में किसी संदेश को फॉरवर्ड किए जाने की संख्या को 20 तक सीमित कर दिया है, लेकिन खासतौर पर भारत में यह संख्या पांच रखी गई है. कंपनी की योजनाओं के जानकार एक सूत्र ने बताया कि कंपनी ने ब्राज़ील में चुनाव के दौरान 'लाखों' एकाउंट ब्लॉक कर दिए थे, और ऐसा ही भारत में चुनाव से पहले किया जाने की संभावना है.

व्हॉट्सऐप के कम्युनिकेशन्स प्रमुख कार्ल वूग ने समाचार एजेंसी रॉटर को एक बयान में बताया, "हमने राजनैतिक ऑर्गेनाइज़रों से संपर्क कर उन्हें सूचित कर दिया है कि हम ऑटोमेटेड अवांछित संदेश भेजने वाले एकाउंटों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे..." हालांकि कार्ल वूग ने किसी राजनैतिक दल का नाम नहीं लिया.

फेसबुक की प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी 'चुनावों की पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखने के लिए कटिबद्ध' है और 'फर्ज़ी न्यूज़ को छांटने' के प्रयास कर रही है. ट्विटर ने भी कहा कि उसने चुनावी प्रक्रिया की रक्षा के लिए प्रयास किए हैं, और गलत इरादों से की गई पोस्टों की पहचान के लिए भी.

राजस्थान चुनाव के दौरान पुलिस ने 10-सदस्यीय सोशल मीडिया मॉनीटरिंग यूनिट बनाई थी, जो विधानसभा चुनाव से जुड़े ट्वीट और फेसबुक पोस्टों पर नज़र रखे हुए थी. मॉनीटरिंग रूम के भीतर सभी पोस्ट दीवारों पर लगाए गए टीवी स्क्रीनों पर दिखती थीं, और स्वतः ही निष्पक्ष, सकारात्मक और नकारात्मक सेक्शनों में बंट जाती थीं.

नकारात्मक पोस्टों पर खास ध्यान दिया जाता था - उन्हें जांचा जाता था, और ज़रूरत पड़ने पर वरिष्ठ अधिकारियों को उनके बारे में सूचित किया जाता था, ताकि जांच करवाई जा सके, और कार्रवाई की जा सके.

मॉनीटरिंग टीम के सदस्यों के मुताबिक, इस कवायद का एकमात्र मकसद यह सुनिश्चित करना था कि किसी ऑनलाइन पोस्ट की वजह से हिंसा न फैल सके.

समाचार एजेंसी रॉयटर के दौरे के दौरान पुलिस ने जिस एक पोस्ट को वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा था, वह कांग्रेस के एक नेता की रैली का वीडियो था, जिसमें लोग पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाते दिखाई दिए थे. कांग्रेस के पास ही में मौजूद वॉर-रूम ने उस वीडियो को 'डॉक्टर्ड' कहकर खारिज कर दिया था. कुछ ही घंटों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने एक अन्य वीडियो को 'वास्तविक' बताकर पोस्ट किया, जिसमें दिख रहा था कि किसी ने भी रैली के दौरान इस तरह के नारे नहीं लगाए थे.

(इनपुट रॉयटर से)

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