खास बातें
- लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने के लिए कम से कम दो−तिहाई बहुमत चाहिए जो बीजेपी और लेफ्ट की नाराजगी से मुश्किल लग रहा है।
New Delhi: लोकपाल बिल को लेकर सरकार और टीम अन्ना के बीच टकराव का एक और दौर तय हो गया है। सरकार ने लोकपाल बिल के नए ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है जिसमें सीबीआई को लोकपाल के दायरे से पूरी तरह बाहर रखा गया है लेकिन कुछ एहतियातों के साथ प्रधानमंत्री के पद को इसके अधीन लाया गया है। लोकपाल को जांच नहीं सिर्फ प्रॉसीक्यूशन का अधिकार होगा। अगर लोकपाल को लगता है कि ग्रुप (सी) या ग्रुप (डी) के किसी कर्मचारी ने कोई गड़बड़ी की है तो लोकपाल इसकी जांच के लिए सीवीसी से कह सकता है और सीवीसी इस बारे में कार्रवाई से लोकपाल को अवगत करवाएंगे। सीवीसी के पास मामला विभागीय जांच के बाद जाएगा और आरोपी कर्मचारी को खुद पेश होकर अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। लोकपाल को फिलहाल संवैधानिक दर्जा नहीं दिया गया है। लोकपाल फिलहाल एक वैधानिक संस्था होगी और इसे संवैधानिक दर्जा देने के लिए बाद में एक अलग बिल लाया जाएगा। दरअसल, लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने के लिए कम से कम दो−तिहाई बहुमत चाहिए जो सरकार के लिए मुश्किल लग रहा है क्योंकि सीबीआई को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने से बीजेपी और लेफ्ट नाखुश है और अगर सरकार को विपक्ष का साथ चाहिए तो उसे बातचीत करके बिल में सुधार करना होगा इसलिए सरकार ने लोकपाल को अभी वैधानिक रखने का ही फैसला किया है क्योंकि ये बिल संसद में साधारण बहुमत से पास हो जाएगा। प्रधानमंत्री को कुछ सेफगार्ड्स के साथ लोकपाल के दायरे में लाया गया है। इनमें अंतरराष्ट्रीय संबंध सरकारी व्यवस्था परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष आंतरिक और बाहरी सुरक्षा जैसे विषयों को जांच के दायरे से बाहर रखा गया है। प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी भी शिकायत पर जांच का फैसला पूरी पीठ करेगी और जिसमें कम से कम तीन चौथाई सदस्यों की सहमति जरूरी होगी। साथ ही शिकायत की जांच बंद कमरे में होगी और अगर कोई शिकायत खारिज की जाती है तो उसके रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे।