यह ख़बर 04 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

महंगाई पर अपने फैसले से पीछे हट रही सरकार

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने महंगाई पर जो सबसे पहली बैठक 17 जून को की, उसमें एक बड़ा फैसला यह था कि वह राज्यों से फल और सब्जी को एपीएमसी के दायरे से बाहर करने के लिए कहेगी। एपीएमसी यानि कि राज्यों में बनी मंडी समिति जिसके अंतर्गत मंडियां आती हैं। दावा था कि इससे किसान अपनी उपज सीधे मंडी में बिना आढ़ती की मदद लिए या आढ़ती को सौदे में शामिल किए अपनी उपज खुद बेच सकेगा, जिससे फल−सब्जी की चेन में बीचौलिये कम होंगे और महंगाई कम होगी।

19 जून को दिल्ली के उपराज्यपाल ने इससे जुड़ा एक नोटिफेकेशन भी जारी कर दिया, जिसके बाद से दिल्ली की मंडियों के आढ़तियों में हड़कंप मच गया सवाल उठने लगे कि अगर फल−सब्जी एपीएमसी के दायरे से बाहर चले गए तो क्या होगा और कैसे सालों से मंडी में कारोबार कर रहे आढ़ती आगे अपना काम कर पाएंगे। लेकिन करीब डेढ़ महीने की कोशिशों के बाद अब आढ़ती आश्वस्त हो गए हैं कि चिंता की कोई बात नहीं कुछ नहीं होने वाला। पिछले हफ्ते दिल्ली के फल−सब्जी आढ़ती और दिल्ली के विकास आयुक्त पुनीत कुमार गोयल के साथ हुई बैठक में आढ़तियों को ये आश्वासन दिया गया कि घबराने की ज़रूरत नहीं हैं। जो जैसा चल रहा था सब वैसा ही चलेगा ।

एपीएमसी आज़ादपुर के सदस्य महिंदर ने कहा कि 'हमारी खुलकर डेवलपमेंट कमिश्नर से बात हुई है, उन्होंने हमारी बात बहुत अच्छी तरह सुनी और पूरा आश्वासन दिया हम इसको डि−लिस्ट नहीं करेंगे और इसको ऐसे ही रखेंगे।' एपीएमसी आज़ादपुर के ही सदस्य सुरेंद्र बुद्धिराजा ने कहा कि उन्होंने ये आश्वासन दिया है कि मंडी जैसे है वैसे ही रहेगी और उपराज्यपाल ने भी यही वादा किया है कि मंडी ऐसे ही रहेगी कोई अंटर नहीं पड़ेगा। लेकिन हां वह ये बात ज़रूर कह रहे हैं कि नई और प्राइवेट मंडियां आएंगी तो हमको इस पर कोई ऐताराज नहीं हैं।

असल में दिल्ली के विकास आयुक्त पुनीत कुमार गोयल ही दिल्ली एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन भी है, जिसके अंतर्गत दिल्ली की सभी मंडिया आती हैं। और दिल्ली में फिलहाल कोई सरकार तो है नहीं ऐसे में इतने ऊंचे पद पर बैठे अधिकारी से आश्वासन के बाद कारोबारियों का आश्वस्त होना लाज़मी है।

कारोबारियों को संबोधन में पुनीत कुमार गोयल ने कहा, 'आप ये सोचें कि सरकार कोई कानून पास कर देगी और ये आज़ादपुर मंडी खत्म हो जाएगी या यहां के ट्रेडर्स हैं, वह खत्म हो जाएंगे ये नहीं हो सकता ये असंभव है। आइडिया यह है कि और मंडियां लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। हालांकि कर्नाटक में उसको ट्राई किया गया, लेकिन वहीं बहुत सारी मंडियां नहीं आ पाई केवल एक या दो मंडी ही आईं।'

गोयल की बात से ये साफ़ लग रहा है कि अब सरकार का इरादा मौजूदा मंडियों को छेड़ने का नहीं बल्कि नई मंडिया लगाने है और जो गोयल के शब्दों में ही पहले ही फ्लॉप आइडिया हो चुका है। इसके कई मतलब निकलते हैं पर सबसे अहम ये है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए फल सब्जी की डिलिस्टिंग का प्लान मौजूदा मंडियों पर लागू नहीं होगा या सरकार व्यापारियों के दबाव में पीछे हट रही है। सरकार के पास अभी कोई रोडमैप नहीं है। लोगों को नई मंडियां खुलने का इंतज़ार करना होगा।

नई मंडियां कहां बनेगी और कौन बनाएगा?

दिल्ली एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के सदस्य और आज़ादपुर मंडी के सबसे बड़े कारोबारियों में से एक रजिंदर शर्मा का कहना है कि सरकार जो कर रही है वो एफडीआई और बड़े−बड़े होलसेलर के इस कारोबार में घुसने की शुरुआत है।

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जाने कब नई मंडियां बनेगी, कौन बनाएगा, कौन चलाएगा और फल सब्जियों की चेन से मिडलमेन कब कम होगा और कब आम लोगों को राहत मिलेगी? ये किसी रामराज के इंतजार की कल्पना है या फिर पंचवर्षीय योजना का हिस्सा, जो भी है, जब भी इस योजना पर अमल होगा तो मैं रिपोर्ट ज़रूर करूंगा?