यह ख़बर 11 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

जजों की नियुक्ति से जुड़ी कोलेजियम व्यवस्था को खत्म करने के लिए लोकसभा में विधेयक पेश

नई दिल्ली:

न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति संबंधी कोलेजियम व्यवस्था को खत्म करने की इच्छुक केंद्र सरकार ने आज लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए छह सदस्यीय ईकाई के गठन का प्रावधान है।

संविधान संशोधन विधेयक के अलावा विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक और संबंधित विधेयक 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014' भी पेश किया।

संविधान (121वां संशोधन) विधेयक 2014 जहां प्रस्तावित आयोग और इसकी पूरी संरचना को संविधान में निहित करता है। वहीं दूसरा विधेयक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित ईकाई द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया तय करता है। इसमें जजों के तबादले तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में भी प्रावधान किए गए हैं।

प्रस्ताव के अनुसार, भारत के प्रधान न्यायाधीश एनजेएसी के प्रमुख होंगे। प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा किया जाएगा। दो जानी मानी हस्तियां तथा विधि मंत्री प्रस्तावित ईकाई के अन्य सदस्य होंगे।

न्यायपालिका की आशंकाओं को दूर करने के लिए आयोग की संरचना को संवैधानिक दर्जा दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में कोई भी सरकार किसी साधारण विधेयक के द्वारा इसकी संरचना को कमजोर नहीं कर सके।

संविधान संशोधन विधेयक को जहां दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है वहीं साधारण विधेयक के लिए सामान्य बहुमत जरूरी होता है।

ईकाई में शामिल की जाने वाली दो जानी मानी हस्तियों का चुनाव भारत के प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता या निचले सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के कोलेजियम द्वारा किया जाएगा। सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता का प्रावधान इसलिए किया गया है, क्योंकि लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद कांग्रेस को मिलने को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

इसमें एक प्रख्यात हस्ती को अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक या महिला वर्ग से ताल्लुक रखने वाले वर्ग से नामित किया जाएगा। दो प्रख्यात हस्तियों का कार्यकाल तीन साल के लिए होगा और उसमें यह भी प्रावधान होगा कि उन्हें फिर से नामित नहीं किया जा सकता।

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विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अगर एनजेएसी के दो सदस्य सहमत नहीं होते हैं तो नियुक्ति नहीं होगी। इसमें यह भी व्यवस्था है कि राष्ट्रपति पैनल की सिफारिशों को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है। लेकिन अगर पैनल सर्वसम्मति से सिफारिशों को दोहराता है तो राष्ट्रपति को नियुक्ति करनी होगी। इसमें कहा गया है कि एनजेएसी उच्च न्यायालयों के जजों की नियुक्ति या तबादले से पूर्व लिखित में संबंधित राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के विचार जानेगा।