ग्राउंड रिपोर्ट : उत्तराखंड सरकार ने हाईवे घोटाले का खुलासा करने वाले अधिकारी का तबादला किया

एनएचएआई और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इस बात से नाराज़ हैं कि उत्तराखंड सरकार ने अथॉरिटी के अधिकारियों को इस मामले की जांच में क्यों घसीटा.

ग्राउंड रिपोर्ट : उत्तराखंड सरकार ने हाईवे घोटाले का खुलासा करने वाले अधिकारी का तबादला किया

नितिन गडकरी की चिट्ठी ने कांग्रेस को हमले का मौका दे दिया है (फाइल फोटो)

खास बातें

  • गडकरी और NHAI के चेयरमैन उत्तराखंड सरकार को चिट्ठी लिख चुके हैं
  • 'अगर एनएचएआई के अधिकारी पाक-साफ हैं तो वो जांच से डर क्यों रहे हैं'
  • 'भ्रष्‍टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत ही काम होगा'
नई दिल्‍ली:

उत्तराखंड में हाईवे घोटाले को खोलने वाले 2002 बैच के सेंथिल पांडियन को कुमाऊं कमिश्नर के पद से हटा दिया गया है. पांडियन ने इस पद पर रहते ही वह रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें 300 करोड़ के घोटाले का पता चला और राज्य के कई अधिकारियों को सस्पेंड किया गया. जब पांडियन को हटाये जाने की ख़बर आई तो एनडीटीवी इंडिया की टीम उस रास्ते पर ही थी जहां ज़मीन अधिग्रहण में घपले की बात उजागर हुई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगीना से काशीपुर के रास्ते में हमारी मुलाकात शमशाद अली से होती है जो बताते हैं कि एनएच–74 का काम कुछ दिन पहले तक ठीक ठाक चल रहा था लेकिन अब तकरीबन ठप्प हो गया है.

यहां एक डिपो में रेत और बजरी के साथ हमें मशीनें खड़ी दिखाई देती हैं. नगीना से काशीपुर के बीच 43 किलोमीटर की सड़क NH-74 के चौड़ीकरण का हिस्सा है. NH-74 के चौड़ीकरण में ही जिस घोटाले की बात सामने आयी है वह 300 करोड़ से अधिक का है.

नेशनल हाइवे अथॉरिटी यानी एनएचएआई और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इस बात से नाराज़ हैं कि उत्तराखंड सरकार ने अथॉरिटी के अधिकारियों को इस मामले की जांच में क्यों घसीटा.

गडकरी और अथॉरिटी के चेयरमैन वाई एस मलिक ने उत्तराखंड सरकार को लिखी इन चिट्ठियों में चेतावनी दी है कि एनएचएआई के अधिकारी ऐसे हाल में काम नहीं कर सकते हैं और उन्हें राज्य में आगे किसी भी प्रोजेक्ट पर काम करने से पहले विचार करना होगा. उत्तराखंड में सरकार बनने के बाद बीजेपी के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस घोटाले की जांच की सीबीआई जांच के आदेश देकर नैतिक रूप से कांग्रेस पर बढ़त बनाने की कोशिश की थी लेकिन नितिन गडकरी की चिट्ठी ने अब उसी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को हमले का मौका दे दिया है जिसके राज में ये घोटाला हुआ.

प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट कहते हैं, “अगर एनएचएआई के अधिकारी पाक-साफ हैं तो वो जांच से डर क्यों रहे हैं... अगर वो डर रहे हैं और खुद को इससे अलग रखना चाहते हैं तो सीधी-सीधी बात है कि उनकी घोटाले में संलिप्तता है. केंद्रीय मंत्री का हस्तक्षेप इसमें अधिकारियों से आगे जाकर कुछ और बड़े लोगों के शामिल होने का इशारा करता है.”

उत्तराखंड में NH-74 के लिये भूमि अधिग्रहण और मुआवज़ा बांटे जाने का काम 2011 से 2016 के बीच हुआ. नगीना–काशीपुर, काशीपुर–सितारगंज, सितारगंज-टनकपुर और रुद्रपुर–काठगोदाम, ये वे सड़कें हैं जिनके लिये ज़मीन ली गई. घोटाले की बात इसी साल एक मार्च को सामने आई जब राज्य में विधानसभा चुनाव तो हो चुके थे लेकिन नतीजे नहीं आये थे. कुमाऊं के कमिश्नर सेंथिल पांड्यन की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कुल 300 करोड़ के घोटाले की बात कही. रिपोर्ट में कहा गया है कृषि ज़मीन को व्यवसायिक ज़मीन बताया गया और सरकारी कागज़ों में तारीख का हेर फेर किया गया.

इस अधिग्रहण में एनएचएआई ही मुआवजा देने वाली एजेंसी है. नियमों के मुताबिक तय मुआवजा राज्य के ज़मीन अधिग्रहण अधिकारी और एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर के संयुक्त खाते में आता है जहां से वह भूस्वामियों के अकाउंट में ट्रांसफर होता है.

भूस्वामी और एनएचएआई के अधिकारी दोनों को ये अधिकार है कि वह मुआवज़े की रकम से संतुष्ट न होने पर डीएम से शिकायत कर सकते थे. लेकिन जब मुआवज़ा रेवड़ियों की तरह बांटा जा रहा था तो क्या एनएचएआई के किसी अधिकारी ने ये आवाज़ नहीं उठाई.

हमारी पड़ताल बताती है कि एनएचएआई के कुछ अधिकारियों ने मुआवज़े की रकम संयुक्त खाते में जमा कराते वक्त रिकॉर्ड की गड़बड़ियों का ज़िक्र भूमि अधिग्रहण अधिकारी से किया और सफाई मांगी. 31 मार्च 2015 को एनएचआई के अधिकारी प्रमोद कुमार काशीपुर-सितारगंज मार्ग में तीन गांवों को मुआवज़ा देते हुये भूमि अधिग्रहण अधिकारी को लिखे एक पत्र में सरकारी ज़मीन को निजी भूमि दिखाने का सवाल उठाते हैं.

केंद्र के रवैये से बैकफुट पर आई बीजेपी सरकार लगातार कह रही है कि भ्रष्‍टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत ही काम होगा. वित्तमंत्री प्रकाश पंत कहते हैं, “रेवन्यू से रिलेटेड जो प्रकरण थे जिसमें लैंड यूज़ से संबंधित था और जिसमें भूमि से संबंधित राशि दी गई थी वह कई गुना थी, उसके चलते प्रथम दृष्टया जो दोषी अधिकारी थे उनको दंडित किया गया. उनके खिलाफ मुकदमा कायम किया गया औऱ क्योंकि हाइ प्रोफाइल केस था इसलिये ज़रूरी था कि हम इसे बाहर की एजेंसी से करवायें जिससे निष्पक्षता रह सके. इसलिये सीबीआई के सुपुर्द किया.”

एनडीटीवी इंडिया की पड़ताल में जो तथ्य सामने आये हैं उनमें मुआवज़ा दिये जाने के बाद भी कई जगह भूमि अथॉरिटी के नाम न होने की बातें सामने आई हैं.

सस्पेंड किये गये एक विशेष भू अधिग्रहण अधिकारी डी पी सिंह का नाम कमिश्नर सेंथिल पांड्यन की रिपोर्ट में बार बार आता है. एनडीटीवी इंडिया ने जब सिंह से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस मामले में जो कुछ कहना है वह जांच एजेंसियों के सामने या अदालत में कहेंगे.

लेकिन सिंह के करीबी सूत्र बताते हैं कि उन्होंने प्रमुख सचिव मनीषा पंवार को अपना पक्ष समझाते हुये एक रिपोर्ट सौंपी है. इसमें डीपी सिंह ने कहा है कि उन्होंने कई फर्ज़ी और गलत मुआवज़े के दावों को खारिज भी किया. सूत्रों के मुताबिक सिंह ने जिन दावों को खारिज करने की बात कही उनमें से एक 9 सितंबर 2016 को खारिज किया गया 13.82 करोड़ का दावा है.

असल में इस पूरे मामले में राज्य के बड़े से लेकर स्थानीय स्तर के नेताओं और नौकरशाहों से लेकर बिल्डरों तक की मिली भगत दिखती है. राज्य के कई अधिकारी इस मामले में सस्पेंड हो चुके हैं और एक कर्मचारी जेल में है. जोत सिंह बिष्ट कहते हैं कि, “हाईवे प्रोजेक्ट्स पर उठ रहे सवालों को गंभीरता से देखना होगा क्योंकि उत्तराखंड के सीएम के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी देहरादून–सहारनपुर–यमुनोत्री हाइवे की सीबीआई जांच की बात कह चुके हैं.”

उत्तराखंड में इस घोटाले का खुलासा करने वाले सेंथिल पांडियन को फिलहाल कमिश्नर के पद से हटा दिया गया है. अब राज्य सरकार और केंद्र पर ज़िम्मेदारी बढ़ गई है कि वह इस मामले की पारदर्शी और निष्पक्ष जांच कराये.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com