ग्राउंड रिपोर्ट : नोटबंदी का असर, नमक रोटी खाने को मजबूर मजदूर

ग्राउंड रिपोर्ट : नोटबंदी का असर, नमक रोटी खाने को मजबूर मजदूर

बैंक के बाहर कैश लेने के लिए लगी लाइन... (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

सरकार पूरी अर्थव्यवस्था को कैशलैस बनाना चाहती है जबकि इस देश की 40 फ़ीसदी आबादी का बैंकों से वास्ता ही नहीं बन पाया है. दिल्ली से बस 50 किलोमीटर दूर जाकर ये समझ में आ जाता है कि नोटबंदी के बाद के हालात लोगों पर कैसे भारी पड़ रहे हैं. ग्रेटर नोएडा से करीब 10 किलोमीटर आगे बसा गांव मोदीपुर मंडइवा....

गांव तक जाने के लिए आज तक सड़क नहीं बनी है. 200 की आबादी यहां रहती है. खेती और पशुपालन से गुज़ारा होता है. बैंक खाता सिर्फ 20 लोगों का है. सुशील खेत से काम कर लौटे हैं... पांच बीघा जमीन है और कुछ मवेशी... पत्नी हाथ में 500-500 के नोट लिए खड़ी हैं... खाता दोनों में से किसी का नहीं...

रवींद्र भी उन लोगों में से हैं जिन्हें लगता है कि हाथ में रखे ये 500-500 के 10 नोट कागज हो गए हैं. सोचा था कि बैंक के बाहर लगी लाइन जब खत्म हो जाएगी तो नोट बदलवा लेंगे... लेकिन तब तक सरकार का नया फरमान आ गया.

इस घर से निकलते ही लोगों ने पकड़ लिया... किसी की शिकायत थी कि बैंक खाता नहीं खोल रहा... कई चक्कर काट चुके हैं... गणेश जब पुराने नोट लेकर जाते हैं तो दुकानदार 500 के बदले 400 का सामान देने की बात करता है. हमें लगा खबर पूरी हो गई... निकलने ही वाले थे कि नज़र भगवान शिव के बन रहे मंदिर पर पड़ी...

ये मजदूर मध्य प्रदेश के छतरपुर के रहने वाले हैं... मिस्त्री को 500 और लेबर को 350 रुपये मजदूरी रोज मिलनी चाहिए...
लेकिन 12 तारीख से एक पैसा नहीं मिला है... थोड़ा सा आटा गांव वाले दे देते हैं... कई दिन हो गए नमक के साथ रोटी खाते हुए. यहां तक कि बच्चों के लिए साबुन तेल तक नहीं है.  

देश में अभी भी करीब 40 फीसदी आबादी ऐसी है जिसका खाता नहीं है... गांव में हालात ज्यादा खराब है... एक लाख की आबादी पर करीब आठ बैंक की शाखाएं ही हैं. इस गांव से 10 किलोमीटर तक कोई बैंक नहीं है.


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