जजों की नियुक्ति की नई प्रणाली पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने की 11 जजों से सुनवाई की मांग

नई दिल्ली:

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की नई प्रणाली एनजेएसी की संवैधानिक वैधता की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाए। सरकार ने एक बार फिर इस मामले की 11 जजों की पीठ से सुनवाई की मांग की।

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोलेजियम ने 59 वर्ष की उम्र के एक महिला वकील को कोलकाता हाईकोर्ट का जज बनवाया, क्योंकि वह तत्कालीन सीजेआई की निकट संबंधी थीं। बाद में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने रिटायर होने पर बताया था कि उनके विरोध के कारण सीजेआई ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट नहीं होने दिया।

इसी प्रकार जस्टिस पीडी दिनाकरण को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की गई, जबकि उनके खिलाफ सरकारी भूमि पर कब्जा करने का आरोप था। वहीं जजों के स्थानांतरण किस आधार पर और क्यों होते हैं, यह भी नहीं पता लगता।

जस्टिस जेएस खेहर ही अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष अटार्नी जरनल मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह कौन सी न्यायिक स्वतंत्रता है कि हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश किस आधार पर जजशिप के लिए नामों की सिफारिश करते हैं, इसके क्या नियम हैं, यह किसी को नहीं पता।

मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोलेजियम प्रणाली के मूल नौ जजों के फैसले में सीजेआई को सर्वोच्च बना दिया जबकि संविधान के अनुच्छेद 124 में यह कहीं नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले में सिर्फ नियुक्तियों पर नियंत्रण को ही न्यायपालिका की आजादी मान लिया गया, जबकि संविधान के निर्माताओं ने ऐसा सोचा भी नहीं था। वहीं सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों को न्यायपालिका की आजादी का प्रतीक बना दिया गया। पांच भी क्यों इसमें सिर्फ तीन जज ही सर्वोच्च हैं क्योंकि वे बहुमत से फैसला करते हैं। क्या यह न्यायिक स्वतंत्रता है। क्या सुप्रीम कोर्ट के अन्य 27 जज तथा तमाम हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीश इन तीन जजों के अधीन हैं।

अटार्नी ने कहा कि सरकार कैग (महालेखा परीक्षक), लोकसभा के महासचिव और मुख्य निर्वाचन आयुक्त जैसे संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां करती है, जबकि ये संस्थाएं बिल्कुल सरकार के अधीन नहीं होती। इन्हें भी जजों की तरह संसद में महाभियोग के जरिये ही पद से हटाया जा सकता है। चुनाव आयोग पूरे देश में निष्पक्ष चुनाव करवाता है वहीं सीएजी सरकार के कार्यों की कड़ी समीक्षा करता है। लेकिन इसमें कभी यह सवाल नहीं उठा कि सरकार ने उनके कार्यों में हस्तक्षेप किया हो। उन्होंने कहा, आजादी नियुक्ति के बाद शुरू होती है पहले नहीं।

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सरकार ने कहा कि बेहतर होगा संविधान पीठ इस मसले को 11 जजों की पीठ को भेजे, क्योंकि एनजेएसी 9 जजों की पीठ की व्यवस्था को उलटता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार पर कई सवाल उठाए हैं और कहा है कि पहले सरकार कोर्ट को संतुष्ट करे कि नया सिस्टम कोलेजियम से बेहतर और पारदर्शी है। सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।