यह ख़बर 08 मई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

कोयला घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सीबीआई रिपोर्ट की मूल भावना बदली गई

खास बातें

  • सीबीआई के एफिडेविट की समीक्षा के बाद अदालत ने सीबीआई की हालत 'पिंजरे में बंद तोते' जैसी बताते हुए सरकार से सवाल किया कि क्या वह इसको सरकारी शिकंजे से मुक्त करने के लिए कानून बनाएगी।
नई दिल्ली:

कोयला आवंटन घोटाले से जुड़ी जांच की ड्राफ्ट स्टेटस रिपोर्ट पर सीबीआई के एफिडेविट की समीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि सरकार के लोगों के कहने पर कोयला घोटाले पर स्टेटस रिपोर्ट की मूल भावना को बदला गया।

सीबीआई की हालत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंतापूर्ण स्वर में टिप्पणी की कि जांच एजेंसी (सीबीआई) पिंजरे में बंद तोते के समान हो गई है, जिसके कई मालिक हैं और वह अपने मालिकों की ही भाषा बोलती है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से भी सवाल किया कि क्या वह सीबीआई को सरकारी शिकंजे से मुक्त करने के लिए कानून बनाएगी।

कोर्ट ने कहा कि सीबीआई पर किसी भी तरह का दबाव न हो, यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। कायदे से उसकी जांच के दौरान उसके किसी भी हिस्से को छेड़ा नहीं जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई को समझना होगा कि यह जांच रिपोर्ट थी, प्रोग्रेस रिपोर्ट नहीं, जिसे सरकार और उसके अधिकारियों के साथ साझा किया जाए। कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि सीबीआई को पता होना चाहिए कि सरकार और उसके अधिकारियों के दबावों के आगे कैसे खड़ा होना है।

मामले की जांच को लेकर भी कोर्ट ने टिप्पणी की और कहा कि मामला दर्ज किए जाने के बाद से लेकर अब तक कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है। कोर्ट ने कानून और कोयला मंत्रालयों की भी खिंचाई करते हुए कहा कि उन्हें जानकारी देने के लिए बुलाया गया था और उनका सीबीआई रिपोर्ट को देखने और पढ़ने का कोई मतलब नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने कोयला मंत्रालय और पीएमओ के संयुक्त सचिवों की सीबीआई के अधिकारियों से मुलाकात करने और ड्राफ्ट रिपोर्ट में बदलाव के सुझाव देने के मामले पर उनकी खिंचाई की। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई का काम सरकारी अधिकारियों से संवाद करना नहीं, बल्कि सच्चाई सामने लाने के लिए पूछताछ करना है।

वहीं, अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने कोर्ट में अपनी तरफ से सफाई पेश करते हुए कहा, मैं सिर्फ कानूनमंत्री के कहने पर सीबीआई अफसरों से मिला था और जहां तक ड्राफ्ट स्टेटस रिपोर्ट का सवाल है, मैंने न वह रिपोर्ट मांगी, न देखी।

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अटॉर्नी जनरल पर आरोप लगाए, अटॉर्नी जनरल ने क़ानूनमंत्री पर, लेकिन सच्चाई यह है कि गलती तीनों ने की है।

दरअसल, सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने हलफनामा देकर कहा था कि कानून मंत्री, पीएमओ और कोयला मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने स्टेट्स रिपोर्ट में बदलाव करवाए थे। सीबीआई द्वारा दायर नौ पृष्ठों के शपथ पत्र में सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने कहा था कि किसी भी संदिग्ध के खिलाफ किसी भी सबूत को नहीं हटाया गया और स्थिति रिपोर्ट के मुख्य आशय में कोई बदलाव नहीं किया गया।

इसमें यह भी कहा गया है कि कानून मंत्री ने आवंटन की वैधानिकता के संबंध में अनुसंधान के अभिप्राय के बारे में एक वाक्य को भी हटाया था।

शपथ पत्र में आगे कहा गया है कि कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के कहने पर मसौदे से 'निश्चित महत्वों/बिंदुओं को आवंटन की दिशा में एक पद्धति के नहीं होने के बारे में एजेंसी के प्रारंभिक निष्कर्ष' को हटाया गया। स्थिति रिपोर्ट वर्ष 2006-09 के दौरान किए गए आवंटन से संबंधित प्रारंभिक जांच 2(पीई2) पर आधारित थी।

शपथ पत्र में कहा गया है कि अंतिम स्थिति रिपोर्ट में कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए स्वीकृत दिशानिर्देश की अनुपलब्धता के बारे में प्रारंभिक जांच से संबंधित बदलाव किया गया।

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अश्विनी कुमार और पीएमओ एवं कोयला मंत्रालय के अधिकारियों के कहने पर किए गए चार बदलावों का उल्लेख करते हुए शपथ पत्र में कहा गया, स्थिति रिपोर्ट के मुख्य आशय में मुलाकात के बाद कोई परिवर्तन नहीं किया गया। किसी भी संदिग्ध या आरोपी के विरुद्ध किसी सबूत को नहीं हटाया गया और न ही किसी को छोड़ा गया है।