यह ख़बर 11 सितंबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

शीर्ष अदालत ने माना कि मीडिया की भूमिका पर अवमानना की छाया

खास बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार स्वीकार किया कि व्यवस्था में भ्रष्टाचार को उजागर करने में मीडिया की अहम भूमिका पर अवमानना की छाया होती है।
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार स्वीकार किया कि व्यवस्था में भ्रष्टाचार को उजागर करने में मीडिया की अहम भूमिका पर अवमानना की छाया होती है।

प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘एक पहलू उजागर करने की जरूरत है। अवमानना कानून की छाया हमारे न्यायशास्त्र पर पड़ती है। भारत में अनेक मामलों में शासन में कमी, व्यवस्था में भ्रष्टाचार और खामियां जैसे सार्वजनिक महत्व के विषयों को अदालत के संज्ञान में लाने के लिहाज से केवल मीडिया जनता के प्रतिनिधि की भूमिका अदा करता है।’

पीठ ने कहा कि मीडिया की अहम भूमिका को ध्यान में रखते हुए अदालतों ने मामलों को स्थगित करने के आदेश समेत अनेक तकनीकें विकसित की हैं।

पीठ ने कहा, ‘इस तरह के आदेश मीडिया का ध्यान संभावित अवमानना की ओर भी खींचेंगे। हालांकि उचित कार्यवाही में इस तरह के आदेशों को चुनौती देने का विकल्प मीडिया के लिए खुला होगा।’

पीठ के अनुसार, ‘अवमानना अपने आप में एक विचित्र अपराध है। अवमानना कानून का उद्देश्य केवल दंडित करना नहीं है।’

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पीठ ने यह भी कहा,‘इसका उद्देश्य न्यायप्रणाली की पवित्रता और लंबित मामलों की सत्यता को बनाए रखना है। इस तरह स्थगित करने का ओदश दंडात्मक कार्यवाही नहीं बल्कि निरोधक कदम है।’