यह ख़बर 12 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला : सरकार ने फौरी कदम उठाने का किया वादा

धारा 377 के खिलाफ एलजीबीटी समुदाय का प्रदर्शन

नई दिल्ली:

सरकार ने समलैंगिकता को उच्चतम न्यायालय द्वारा गैरकानूनी घोषित किए जाने के फैसले को पलटने के लिए फौरी कदम उठाने का वादा किया और संकेत दिया कि वह शीर्ष अदालत में उपचारात्मक याचिका दाखिल कर सकती है।

विधिमंत्री कपिल सिब्बल ने इस फैसले को लेकर उपजे विवाद के बीच संवाददाताओं से कहा, हमें कानून को बदलना होगा। यदि उच्चतम न्यायालय ने इस कानून को सही ठहराया है, तो निश्चित रूप से हमें मजबूत कदम उठाने होंगे। बदलाव तेजी से करना होगा और कोई देरी नहीं की जा सकती। हम जल्द से जल्द बदलाव करने के लिए सभी उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल करेंगे।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन करने के लिए विधेयक लाएगी, उन्होंने कहा कि यह समय महत्वपूर्ण है। हमें वयस्कों के सहमतिपूर्ण संबंधों को अपराध की श्रेणी से निकालना होगा। सरकार के पास उपलब्ध उपायों के बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने कहा, एक विकल्प तो यह है कि जल्द से जल्द इसे संसद में लाया जाए। एक अन्य विकल्प है कि कोई अन्य रास्ता निकालने के लिए उच्चतम न्यायालय से संपर्क किया जाए। हम वह रास्ता अपनाएंगे, जो हमें जल्द परिणाम दे।

वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला 'गलत' है और शीर्ष अदालत के फैसले को सही करने के लिए सभी विकल्पों को देखा जाएगा। फैसले को निराशाजनक बताते हुए उन्होंने कहा कि अदालत को इस मामले में मौजूदा सामाजिक और नैतिक मूल्यों का ध्यान रखना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले में समीक्षा या उपचारात्मक याचिका दाखिल करनी चाहिए और मामले की सुनवाई पांच-सदस्यीय पीठ द्वारा की जानी चाहिए।

चिदंबरम ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला बहुत सोचा समझा और शोध पर आधारित था, जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकार करते हुए उसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती नहीं दी थी। उन्होंने साथ ही कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती नहीं देने का सरकार का फैसला उनकी पार्टी का भी विचार है।

चिदंबरम ने कहा कि फैसला देने वाली पीठ को मामले को एक पांच-सदस्यीय पीठ को सौंपना चाहिए था और कानून की व्याख्या में जड़ता नहीं होनी चाहिए। चिदंबरम ने कहा, आपने किया क्या कि आप 1860 के समय में चले गए और इसलिए मैं इससे बेहद परेशान हूं। उन्होंने कहा कि मौजूदा धारा 377 को 1860 में बनाया गया था और यह उस समय के समाज और नैतिक मूल्यों का परिचायक है और उस युग में मनोविज्ञान, मानव विज्ञान, जेनेटिक्स आदि का ज्ञान बहुत कम था। चिदंबरम ने कहा, लेकिन आज वर्ष 2013 में मानवीय मनोविज्ञान, मानवीय मनोचिकित्सा और मानवीय जेनेटिक्स के बारे में इतनी अधिक जानकारी है कि यह आज के सामाजिक और नैतिक मूल्य हैं। यह फैसला पूरी तरह दकियानूसी है।

यह पूछे जाने पर कि सरकार ने 16 दिसंबर की सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद बलात्कार कानूनों में संशोधन करते समय धारा 377 में संशोधन क्यों नहीं किया, चिदंबरम ने कहा कि उच्च न्यायालय का धारा 377 के संबंध में फैसला केवल एक सीमित मायने में था। वित्तमंत्री ने कहा, उन्होंने केवल वयस्कों और निजता में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया था, और इसलिए धारा 377 में संशोधन की जरूरत नहीं थी।


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