नागरिकता संशोधन विधेयक पर BJP ने कैसे भेदा राज्यसभा का अभेद्य दुर्ग? पढ़ें- इनसाइड स्टोरी

इशारा मिल रहा है कि कांग्रेस के भीतर सब कुछ सामान्य नहीं है और बीजेपी एक बार फिर कांग्रेस में सेंध लगाने में कामयाब रही है.

नागरिकता संशोधन विधेयक पर BJP ने कैसे भेदा राज्यसभा का अभेद्य दुर्ग? पढ़ें- इनसाइड स्टोरी

केंद्रीय गृहमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह.

खास बातें

  • लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी विधेयक पास
  • राज्यसभा में सरकार को 125 वोट मिले
  • जबकि बीजेपी की अपनी संख्या केवल 83 है
नई दिल्ली :

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले छह महीनों में ही बीजेपी की विचारधारा से जुड़े तीन बड़े विधेयकों को राज्य सभा से पारित कराने के बाद सरकार के रणनीतिकारों ने अभेद्य माने जाने वाले राज्य सभा के क़िले को भेद दिया है. नागरिकता संशोधन बिल पर राज्यसभा में सरकार को 125 वोट मिले. जबकि बीजेपी की अपनी संख्या केवल 83 है. सहयोगी दलों के साथ यह संख्या बमुश्किल सौ पार कर 106 पर पहुंचती है. लेकिन इतनी बड़ी संख्या में समर्थन जुटा कर बीजेपी ने विपक्षी दल कांग्रेस पर एक मनोवैज्ञानिक जीत हासिल कर ली है. हालांकि रणनीतिकार ख़ुलासा करने को तैयार नहीं हैं, परंतु इशारा मिल रहा है कि कांग्रेस के भीतर सब कुछ सामान्य नहीं है और बीजेपी एक बार फिर कांग्रेस में सेंध लगाने में कामयाब रही है.

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शिवसेना को मिला कर विपक्ष का आंकड़ा 112 होता है. शिवसेना के वॉक आउट के बाद विपक्ष को 109 वोट मिलने चाहिए थे, जबकि उसे केवल 99 वोट मिले. पक्ष-विपक्ष मिला कर 16 सदस्य गैरहाजिर थे. इसमें बीजेपी के सांसद अनिल बलूनी और बीजेपी को समर्थन दे रहे असंबद्ध सदस्य अमर सिंह का स्वास्थ्य कारणों से पहले से ही आना तय नहीं था. उधर एनसीपी के माजिद मेमन और वंदना कुमारी की अनुपस्थिति की सूचना पहले ही दी गई थी. यानी 12 अन्य सदस्य गैरहाजिर रहे. इसमें तृणमूल कांग्रेस के केडी सिंह पहले भी अनुपस्थित रह कर सरकार को मदद करते रहे हैं. इसी तरह सपा के बेनीप्रसाद वर्मा भी खराब स्वास्थ्य की वजह से नहीं आ सके. अब सवाल है कि बाकी 10 सदस्य कौन हैं जिन्होंने अनुपस्थित रह कर एक तरह से सरकार की मदद की. इसमें तीन सदस्यों की शिवसेना भी शामिल है, जिसने कांग्रेस के दबाव के बाद यू टर्न लिया और मतदान में हिस्सा नहीं लिया. 

राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर मतदान में बीजेपी के चुन्नभाई कांजीभाई गोहेल और अनिल बलूनी, तृणमूल कांग्रेस के डॉ कंवरदीप सिंह, निर्दलीय अमर सिंह, बसपा के राजाराम और अशोक सिद्धार्थ, सपा के बेनीप्रसाद वर्मा, एनसीपी कीं वंदना चौहान और माजिद मेमन, शिवसेना के संजय राउत, राजकुमार धूत  और अनिल देसाई, जेडीएस के डी कुपेंद्र रेड्डी, निर्दलीय एमपी वीरेंद्र कुमार, टीआरएस के धर्मपुरी श्रीनिवास और कांग्रेस के मुकुट मीठी गैरमौजूद रहे.

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बाकी बचे 7 सदस्यों में कहा जा रहा है कि कांग्रेस के चार सदस्य हैं, जिनके बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है. यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है, जिसके राज्यसभा में चीफ व्हिप रहे भुवनेश्वर कलीता पिछले सत्र में इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने कर्नाटक फ़ार्मूला लगाते हुए राज्यसभा में अपनी ताकत बढ़ाई है. इस फ़ार्मूले में विपक्षी पार्टियों के सांसदों से इस्तीफा दिलवाया जाता है. ऐसा कर कांग्रेस, सपा जैसी कई पार्टियों के सांसद बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, जिन्हें बीजेपी ने अब अपने कोटे से राज्यसभा में भेजा है. बीजेपी की राज्य सभा में अब 83 सीटें हो चुकी हैं जो इतिहास में सर्वाधिक हैं. बीजेपी के रणनीतिकार याद दिलाते हैं कि मोदी के पहले कार्यकाल में राज्यसभा में विपक्ष इस क़दर हावी था कि लोकसभा में भारी बहुमत के बावजूद मोदी सरकार के बिल राज्य सभा में अटक जाया करते थे. यहां तक कि आधार बिल को मनी बिल के रूप में पेश करा कर पारित कराना पड़ा था. क्योंकि कांग्रेस इसके सख़्त खिलाफ थी.

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वहीं मोदी-टू में हालात ऐसे बदले हैं कि तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और अब नागरिकता संशोधन विधेयक जैसे विवादास्पद बिलों को भी राज्य सभा से आसानी से पारित करा लिया गया. बीजेपी को जेडीयू, एआईएडीएमके, बीजेडी, वायएसआर कांग्रेस और यहां तक की टीडीपी का साथ मिला है, जो लोकसभा चुनाव से पहले बहुत तीखे अंदाज में एनडीए से अलग हुई थी. इन पार्टियों के समर्थन से बीजेपी ने राज्यसभा का तिलिस्म तोड़ दिया है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण कई बिलों को पारित नहीं करा सकी थी और आतंकवाद विरोधी कानून पोटा को संसद का संयुक्त सत्र बुला कर पारित कराना पड़ा था. मोदी सरकार में अभी तक किसी भी बिल को पारित कराने के लिए संयुक्त सत्र नहीं बुलाना पड़ा है. सरकार के रणनीतिकार कहते हैं कि राज्य सभा में अब जिस तरह से कांग्रेस को पटकनी दी गई है, उसके बाद एनडीए का बहुमत न होने के बावजूद यहां से किसी भी बिल को पारित कराने में अब कोई परेशानी नहीं आएगी. 

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