5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए ये बजट कितना प्रभावी?

क्या आपको बताया जा रहा है कि 2018 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में घाना, नाइजीरिया, निकारागुआ, श्रीलंका जैसे देश भारत से आगे थे. हम प्रति व्यक्ति आय की बात क्यों नहीं करते हैं जिससे पता चले कि जब इकॉनमी का साइज़ बढ़ता है तो लोगों की आमदनी कितनी बढ़ती है.

नई दिल्ली:

मोदी सरकार पार्ट- 2 का पहला बजट आ गया. चुनाव ख़त्म हो चुका है इसलिए बजट में हल्ला हंगामा कम है. इसका संदेश यह भी है कि अगर सरकार के आर्थिक क्रिया कलापों को देखना समझना है तो बजट के बाहर भी देखना होगा. जिन्हें सिर्फ बजट में देखने की आदत है उनके लिए बजट में भाषण भी है. सवाल है बजट जैसे विस्तृत दस्तावेज़ को साबुन तेल के दामों में उतार-चढ़ाव से देखा जाए या उन नीतियों को लागू करने के लिए पैसे के इंतज़ाम और पैसे के ख़र्च के हिसाब से देखा जाए. फिर इसके लिए भाषण के अलावा उस हिस्से को देखना होगा जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नहीं पढ़ा. अब जिन लोगों ने मेहनत की होगी वो बजट ख़र्चे के हिसाब वाले पेपर को पढ़ेंगे और आपको बताएंगे. वित्त मंत्री ने कहा कि इस वित्त वर्ष में ही भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा. इस वक्त 2.7 ट्रिलियन डालर का है. 55 साल में भारत की अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन डॉलर की हो पाई थी. पिछले पांच साल में ही सरकार ने इसका आकार 1 ट्रिलियन यानी एक ट्रिलियन डॉलर बढ़ा दिया है.

ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी. एक नया सपना तो है लेकिन क्या यह नया पैमाना भी है. क्या हम जानबूझ कर इस पैमाने को नारे में बदल रहे हैं ताकि बाकी जगहों पर निगाह नहीं जाए और सपने में खो जाएं. क्या 55 साल से तुलना करना सही होगा, वित्त मंत्री ने कहा कि 55 साल में 1 ट्रिलयन डॉलर तक भारत पहुंचा लेकिन हम पांच साल में ही .9 ट्रिलियन डालर जोड़ सके. एक ट्रिलियन ही मानिए इसे. इसी के साथ वित्त मंत्री ने न सिर्फ पिछली सरकारों को एक कतार से खारिज किया बल्कि दुनिया की दूसरी सरकारें भी उनके इस बयान से खारिज हो जाते हैं. विश्व बैंक के आंकड़े के अनुसार 55 साल पहले यानी 1964 में दुनिया की अर्थव्यवस्था का साइज़ 1.8 ट्रिलियन डॉलर था. 2014 में दुनिया की अर्थव्यवस्था का साइज़ 79.29 ट्रिलियन डॉलर था. इस वक्त दुनिया की अर्थव्यवस्था का साइज़ 87 ट्रिलियन डॉलर है. 1964 में जब दुनिया की अर्थव्यवस्था का साइज़ ही आज के भारत से कम था तो आप अचानक कैसे कह सकते हैं कि हम जो 55 साल में नहीं कर पाए वो पिछले पांच साल में कर लिया. वित्त मंत्री ने कहा कि आज भारत का स्थान दुनिया में छठा है. पांच साल पहले दुनिया में 11वां था. फिर भी देखिए जब दुनिया की इकॉनमी का आकार 2 ट्रिलियन डॉलर नहीं था तब 1964 भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 56.48 बिलियन डॉलर था. उस साल दुनिया में भारत का स्थान 7वां था. उस साल भारत कनाडा से आगे निकल गया था. अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, जापान और इटली आगे थे भारत से.

55 साल पहले भारत का स्थान सातवां था. 2019 में छठा है. अब आपको ठीक लगेगा लेकिन यही सब विस्तार से न बताएं और कह दें कि जो 55 साल में नहीं हुआ वो पिछले 5 साल में हुआ तो लगेगा कि हम अंधेरे में रह रहे थे. वैसे आज़ादी के वक्त भारत एक गरीब देश था. उसकी अर्थव्यवस्था खाली हो चुकी थी. ज़ाहिर है उस वक्त ऐसा नहीं होगा जैसा आज है. लेकिन हमें 55 साल और 70 साल के स्लोगन का इस्तमाल संभल करना चाहिए. आज कल प्रति व्यक्ति आय की बात क्यों नहीं हो रही है. अगर भारत ने 5 साल में अपनी इकॉनमी 1.85 ट्रिलियन डॉलर से 2.75 ट्रिलियन डॉलर कर ली तो प्रति व्यक्ति आय में हमारी क्या प्रगति हुई. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़े के अनुसार 187 में 2018 में भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया में 142वें नंबर पर था. 2014 में भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया में 169 वें नंबर पर था. सुधार तो हुआ लेकिन हमारी प्रगति की सच्चाई इस आंकड़े में भी दिखती है.

क्या आपको बताया जा रहा है कि 2018 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में घाना, नाइजीरिया, निकारागुआ, श्रीलंका जैसे देश भारत से आगे थे. हम प्रति व्यक्ति आय की बात क्यों नहीं करते हैं जिससे पता चले कि जब इकॉनमी का साइज़ बढ़ता है तो लोगों की आमदनी कितनी बढ़ती है. क्या आदमी अब महत्वपूर्ण नहीं रहा, सारा कुछ आकार ही हो गया है. क्या अमरीका के प्रोफेसरों ने अपनी क्लास में प्रति व्यक्ति आय के बारे में पढ़ाना बंद कर दिया है. या ट्रिलियन डॉलर की बात इसलिए होने लगी है कि यह सुनने में नया और बड़ा लगता है. लेकिन इससे हम अपनी आर्थिक हकीकत को कब तक छिपा सकते हैं. इसलिए भाषण को स्लोगन से मत समझिए और स्लोगन को समझने के लिए चैनलों के भरोसे मत रहिए. बजट पेपर खुद भी पढ़िए. सरकार कहती है कि 5 साल में हम 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी हो जाएंगे लेकिन कई अर्थशास्त्री पूछ रहे हैं कि इसके लिए अगर 8 प्रतिशत जीडीपी होगी तब भी 9 साल लग जाएंगे. पांच साल में डबल करने के लिए 12 प्रतिशत की जीडीपी चाहिए. सरकार कहती है कि पांच साल अगर 8 प्रतिशत की जीडीपी रहे तो 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हो सकती है. यह कैसे होगा तो सरकार इस सवाल का जवाब आशा, विश्वास और आकांक्षा के नारे से देती है और शायरी से देती है. 'यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग़ जलता है.' इस बजट में एक बड़ा परिवर्तन हुआ है कॉरपोरेट टैक्स के ढांचे में. सरकार पहले से ही कॉरपोरेट टैक्स में कमी करने के रास्ते पर है.

पहले 250 करोड़ तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को 25 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्स देने होते थे. अब 400 करोड़ तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को 25 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्स देने होंगे. इस तरह से भारत की 99.3 प्रतिशत कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स 25 प्रतिशत हो गया. सिर्फ 0.7 प्रतिशत कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें 30 प्रतिशत कारपोरेट टैक्स देना होगा.

वित्त मंत्री ने कहा कि 99.3 प्रतिशत कंपनियां 25 प्रतिशत के दायरे में आ गई. लेकिन 2016-17 में वित्त मंत्री जेटली ने जब 250 करोड़ तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को 25 प्रतिशत के दायरे में लाया था तो कहा था कि 99 प्रतिशत कंपनियों को लाभ मिलेगा. निर्मला सीतारमण ने यह नहीं बताया कि 99.3 प्रतिशत कंपनियों को 25 प्रतिशत के दायरे में लाने से सरकार की राजस्व वसूली कितनी कम होगी. जब जेटली ने 99 प्रतिशत कंपनियों के लिए टैक्स कम किया था तब कहा था कि इस कदम से 2018-19 में 7000 करोड़ का राजस्व सरकार को नहीं मिलेगा. रिटर्न फाइल करने वालीं 7 लाख कंपनियों में 7000 कंपनियां ही हैं जिनका टर्नओवर 250 करोड़ से अधिक है. उन्हें 30 प्रतिशत के कारपोरेट टैक्स स्लेब में रखा जाएगा.

उस वक्त वित्त मंत्री ने कहा था कि कारपोरेट टैक्स घटाने से रोज़गार में वृद्धि होगी. हम आधिकारिक तौर से नहीं जानते कि 7000 करोड़ का टैक्स छूट देने से कितना रोज़गार पैदा हुआ. 2 करोड़ से कम कमाने वाले लोगों के टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ है. उससे ज्यादा कमाने वालों से सरकार ने ज्यादा टैक्स मांगा है. प्रत्यक्ष कर की वसूली 78 प्रतिशत की दर से बढ़ी है.

2013-14 में प्रत्यक्ष कर की वसूली 6.38 लाख करोड़ थी. 2018-19 के दौरान प्रत्यक्ष कर की वसूली 11.37 लाख करोड़ हो गई है.

मेक इन इंडिया का नारा था पिछले पांच साल तक. मेक इन इंडिया तो नहीं गया है लेकिन क्या उससे भी बड़ा कोई नया नारा आ गया है. वित्त मंत्री ने कहा है कि वह ग्लोबल कंपनियों को बुलाने जा रही है ताकि वे मेगा मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट बना सकें. इसके लिए सरकार ने कुछ क्षेत्र तय किए गए हैं जिन्हें सनराइज़ और एडवांस टेक्नालजी कहा जाता है. कहा जा रहा है कि अमरीका और चीन के बीच व्यापारिक युद्ध के कारण बहुत सी कंपनियां अपना कारखाना चीन के अलावा कहीं और लगाना चाहती हैं. भारत इस मौके का लाभ समय रहते उठाना चाहता है.

ऐसे लोग जिनके पास पहले से घर है, अगर वे 45 लाख तक का एक दूसरा घर खरीदते हैं तो उन्हें टैक्स में अलग से डेढ़ लाख की छूट मिलेगी. वित्त मंत्री ने बताया कि 15 साल में इस तरह दो घरों पर किसी को सात लाख की बचत होगी. चूंकि सात लाख की संख्या बड़ी लगती है इसलिए सरकार ने सात लाख बताया लेकिन महीने के हिसाब से देखें तो हर माह 3888 रुपये की बचत होगी. क्या पहले टैक्स डिडक्शन का लाभ इस तरह से बताया जाता था, अभी याद नहीं है लेकिन यह दिलचस्प लगा. विदेश यात्रा पर जिन्होंने 2 लाख से अधिक ख़र्च किया है उन्हें टैक्स फाइल करना होगा. जिनका साल भर का बिजली बिल 1 लाख से अधिक होगा, उन्हें टैक्स फाइल करना होगा. कर दाताओं को आयकर विभाग अपनी तरफ से टैक्स रिटर्न फाइल बनाकर दे सकता है. इससे टैक्स रिटर्न का समय और झंझट भी बचेगा, टैक्स रिटर्न में ग़लती भी नहीं होगी.

निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि नोटबंदी से पहले नगदी चलन में थी, उससे भी अधिक कैश अब मार्केट में है. शायद इसीलिए प्रावधान किया गया है कि एक करोड़ से अधिक कैश निकालने पर 2 प्रतिशत टीडीएस लगेगा. क्या इससे कैश का चलन कम हो जाएगा. पहले के किए गए तमाम उपायों से कैश का चलन कम नहीं हुआ है. वित्त मंत्री ने जब अपना भाषण पढ़ा तो उसमें खर्चे का हिसाब किताब नहीं था जिसे एक्सपेंडिटचर कहते हैं. वित्त मंत्री ने अपने भाषण के बाद कहा कि एक्सपेंडिचर के पेपर रखे जा रहे हैं मगर उन्हें पढ़ा नहीं गया है. इसे लेकर काफी विवाद हो गया है.

चेन्नई जैसा महानगर सूखे से जूझ रहा है. उसके लिए इस बजट में कोई ज़िक्र तक नहीं है. इस समय पानी का संकट भारत के हर क्षेत्र में अलग अलग रूप में है. बजट में बताया गया कि सरकार ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता को मिलाकर जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है. यह मंत्रालय राज्यों के साथ मिलकर हर घर जल योजना पर काम करेगा और 2024 तक गांवों के सभी घरों को पाइप से पानी देगा. बिहार में नीतीश कुमार ने यह योजना लागू की है. बिहार सरकार का दावा है कि अगले साल तक यह योजना पूरी हो जाएगी. लेकिन इसके तहत बिहार में सरकारी पैसे से ही लाखों की संख्या में सबमर्सिबल पंप लगाए जा रहे हैं. आज हालत यह है कि उत्तर बिहार जहां पानी सतह के ऊपर नज़र आता था, वहां पानी नहीं है. क्या हर घर जल योजना सबमर्सिबल पंप के ज़रिए पानी देने की योजना है तो इस पर एक बार सोचा जाना चाहिए. सरकार ने कहा है कि वर्षा जल संचय, भूमिगत जल को रीचार्ज का ढांचा तैयार किया जाएगा. एक बात और महत्वपूर्ण है. वित्त मंत्री ने कहा है कि घरों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ किया जाएगा और खेती में इस्तमाल होगा. यह कैसे होगा इसका कोई ठोस प्लान नहीं बताया गया, इसका बजट क्या होगा यह पता नहीं चला.

क्या सरकार ने इस काम के लिए पर्याप्त पैसे दिए हैं. हमने बजट के एक्सपेंडिचर वाले खाने में जाकर देखा तो पता चला कि पिछले बजट की तुलना में मात्र 657 करोड़ की ही बढ़ोत्तरी हुई है. 2019-20 के लिए जलशक्ति मंत्रालय का कुल बजट 28,261 करोड़ है. 2018-19 के बजट में कुल बजट 27,604 करोड़ था.

लेकिन इसमें रूरल ड्रिंकिंग वाटर का बजट 5500 करोड़ से बढ़ाकर 10,000 करोड़ किया गया. लेकिन इस मंत्रालय का ओवर ऑल बजट तो मात्र 657 करोड़ ही बढ़ा है तो क्या अन्य योजनाओं का पैसा अब नल से जल में लगाया जाएगा, तो पहले से चल रही योजनाओं का क्या होगा. क्या वे पूरी हो गई हैं या अधूरा छोड़ दिया जाएगा. यह सब सवाल है. जैसे एलान किया गया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लांच होगी. मस्त्य विभाग का बजट कितना है इसे देखिए पहले. मछलीपालन मंत्रालय का बजट 804 करोड़ है लेकिन पिछला बजट कितना था यह एक्सपेंडिचर वाले खाने में क्यों नहीं बताया गया है. वैसे डेयरी और पशुपालन का बजट भी कम हो गया है. आंगनवाड़ी का बजट बढ़ा है. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का बजट नहीं बढ़ा है. 

वित्त मंत्री ने भारत में पढ़ने के लिए विदेशी छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए स्टडी इन इंडिया की शुरुआत की बात कही है. लेकिन क्या यह योजना उस योजना से कुछ अलग है जिसके लिए 18 अप्रैल 2018 में सुषमा स्वराज ने एक वेबसाइट लांच की थी. इस वेबसाइट का नाम है Study in India Portal. पीआईबी की साइट पर यह प्रेस रिलीज मौजूद है. यह योजना मानव संसाधन मंत्रालय की है. इसे सुषमा स्वराज और पूर्व मंत्री सत्यपाल सिंह ने लांच किया था. 160 संस्थाओं की 15,000 सीट विदेशी छात्रों के लिए रखे जाने की बात थी. इंडिया हैबिटैट सेंटर में यह कार्यक्रम हुआ था. जो कार्यक्रम एक साल पहले शुरू हो चुका है उसे इस बार के बजट में नया कार्यक्रम शुरू करने की बात की गई है. उस कार्यक्रम में तब के मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का वीडियो संदेश भी जारी हुआ था. पिछले बजट में वल्ड क्लास इंस्टीट्यूशन बनाने के लिए 250 करोड़ का प्रावधान था मगर असल में दिया गया 128 करोड़. इस बार कहा गया है कि 400 करोड़ दिए जाएंगे. इसे इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस कहा गया था मगर यह शब्द ही नहीं है.

कभी बजट शाम को पेश होता था, वाजपेयी दौर में 11 बजे पेश होने लगा. अब परंपरा 11 बजे की है. रेल बजट अलग पेश होता था, अब परंपरा नई है. रेल बजट आम बजट का हिस्सा है. लेकिन आज एक और बदलाव हुआ. अभी तक आप जान चुके हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज एक परिपाटी बदली. पहले वित्त मंत्री ब्रीफकेस में बजट पेश किया करते थे. लेकिन आज निर्मला सीतारमण ने ब्रीफकेस की परंपरा बंदल दी. ब्रीफकेस की जगह लाल रंग के कपड़े में बजट लिपटा था. जैसे व्यापारी बहीखाते को लपेट कर रखते हैं और बहीखाते का रंग भी लाल ही होता है. इस पर अलग से बहस हो सकती है लेकिन इसके बारे में मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने जो कहा उस पर गौर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह भारतीय परंपरा है जो बता रहा है कि हम पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकल आए हैं. उनका यह बयान टाइम्स ऑफ इंडिया ने ट्वीट किया है.

बजट पेश करने में नई पंरपराएं बनती रहती हैं, पुरानी टूटती रहती हैं. इसे इसी रूप में देखना चाहिए. अति उत्साही आर्थिक सलाहकार ने कहा कि हम पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकल आए हैं. क्या गुलामी कहना ज़रूरी था? लेकिन यही अर्थशास्त्री एक दिन पहले बता रहे थे कि कैसे भारत की अर्थव्यवस्था अमरीका के शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के विचारों से प्रेरित है. क्या वह पश्चिम के विचारों की गुलामी कही जाएगी, जबकि खुद अर्थशास्त्री जी पश्चिमी वस्त्र परंपरा में सुसज्जित नज़र आए. जिस बजट में तरह तरह के विचार हैं, यहां वहां से आइडिया है, उस बजट को लेकर इतना भावुक बयान देने से पहले सोचना चाहिए था कि इसी सरकार के वित्त मंत्री तो ब्रीफ केस में ही बजट पेश करते रहे. क्या पांच बजट पेश करने वाले जेटली को कभी याद ही नहीं आया कि यह ब्रीफकेस पाश्चात्य विचारों की ग़ुलामी है. क्या पीयूष गोयल को भी ध्यान नहीं आया. बदलाव का श्रेय लेना चाहिए लेकिन झट से गुलामी से जोड़ने से पहले सोचना चाहिए कि ये गुलामी नहीं है. अगर ये गुलामी है तो अपने आस पास की हर वो चीज़ हटा देनी चाहिए जो पश्चिम से आई है. सबसे पहले सेल फोन हटा देना चाहिए, डिजिटल इंडिया बंद कर देना चाहिए.

Stand-Up India यह भी भारत सरकार की एक योजना है. वित्त मंत्री ने बताया कि इसके सकारात्मक परिणाम आए हैं. इसके तहत अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग में हज़ारों लोगों को उद्यमी बनने का मौका मिला है. एलपीजी ट्रांसपोर्टेशन में 300 से अधिक उद्यमी उभर कर सामने आए हैं. सरकार और इंडस्ट्री ने मिलकर इन्हें पूंजी और तकनीकि उपलब्ध कराई है. इसी से प्रेरित होकर सरकार ने कहा है कि बैंक सर पर मैला ढोने या हाथ से गटर साफ करने की प्रथा को समाप्त करने के लिए नए स्टार्ट अप को मदद करेंगे. हैदराबाद के बाद दिल्ली सरकार ने ऐसी कई गाड़ियां लाई हैं. ये गाड़ियां भी इसी मॉडल की हैं. दिल्ली सरकार ने इसके लिए टेंडर निकाला तो डिक्की (दलित इंडियन चेंबर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री) ने एक बिजनेस मॉडल बनाने में मदद की. और फिर उन परिवारों को इस बिजनेस के लिए तैयार किया गया जिनके यहां गटर साफ करते हुए मौत हुई थी. इसमें 10 परिवार हैं. यह गाड़ी 30-35 लाख की है, तो बैंक के लोन की भी भूमिका है. इस गाड़ी की मदद से मेनहोल की सफाई बिना उसमें उतरे हो सकती है. भारत सरकार शायद इसी मॉडल पर मशीन और रोबोट को प्रोत्साहित करेगी. यह मशीन महंगी है. पूरी तरह हाथ से गटर साफ करने के खतरे को मिटाने के लिए बड़े पैमाने पर यह मशीन लानी होगी. लेकिन अगर बिजनेस मॉडल खड़ा होता है तो बदलाव आएगा. दिल्ली में जब टेंडर निकला था तो अनुसूचित जाति के 200 लोगों ने टेंडर डाला था. उन्हें सात साल का टेंडर मिला है. दिल्ली जलबोर्ड लोन पर गाड़ी लेने वाले को बिजनेस देखा. अपनी तरफ से उस बिजनेस से ईएमआई बैंक को देगा और बाकी पैसा गाड़ी वाले को. इससे बिजनेस सुरक्षित रहेगा और जिंदगी भी. इसके लिए दिल्ली में एक मैनजमेंट कंपनी भी बनी है. इस मॉडल के बारे में विस्तार से समझने जाने की ज़रूरत है.

वित्त मंत्री ने यह भी कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की ख़ाली ज़मीनों पर सस्ते घर बनाए जाएंगे जिससे आम लोगों को घर मिला है. यही नहीं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी बेचा जाएगा. सरकार ने कहा है कि वह बैंकों को 70,000 करोड़ देगी. पहले भी सरकार बैंकों को 1 लाख करोड़ दे चुकी है. सोना पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया है. 

बजट में यह भी है कि रेलवे में 2030 तक 50 लाख के निवेश होंगे. यह निजी क्षेत्र के सहयोग से किया जाएगा. क्या इससे रेलवे में बड़े पैमाने पर निजीकरण होगा. इसकी आहट तो पहले से थी लेकिन लगता है नए जनादेश के बाद सरकार अब इस दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ेगी. बजट में यह भी कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के पास जो ज़मीनें हैं उनका भी इस्तमाल होगा. इस्तमाल से आप ये भी समझें कि बेचा जा सकता है या फिर उन पर प्राइवेट सेक्टर की साझीदारी से इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े किए जा सकते हैं. बजट में लिखा है कि इन ज़मीनों पर सस्ते दामों वाले घर भी बनाए जा सकते हैं. अल्पसंख्य मामलों के मंत्रालय का बजट पिछली बार की ही तरह है, जस का तस.

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