जम्मू कश्मीर सरकार के आदेश पर हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता मसर्रत आलम जेल से रिहा

मशरत आलम की फाइल फोटो

जम्मू:

जम्मू कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार बने अभी हफ्ते भर भी नहीं गुजरे हैं, लेकिन दोनों के बीच कई मुद्दों पर तनातनी होती दिख रही है। ताजा मामला मुस्लिम लीग के प्रमुख और हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता मसर्रत आलम की रिहाई का है।

सूबे के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अपने हीलिंग टच एजेंडे के तहत गैर आपराधिक आरोपों वाले राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की नीति बनाई है और इसी के तहत मसर्रत आलम को रिहाई करने का फैसला किया गया।

हुर्रियत के इस कट्टपंथी नेता को साल 2010 में कश्मीर में फैली हिंसा का जिम्मेदार माना जाता है। इस हिंसा में करीब सवा सौ लोगों की मौत हो गई थी। आलम पीएसए यानि पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत बारामुला के जेल में बीते चार साल से बंद थे।

आलम की गिरफ्तारी के लिए तब राज्य की पुलिस ने 10 लाख का इनाम घोषित किया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने ही घाटी में सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी का अभियान चलाया था। सूत्रों की मानें तो सरकार ऐसे 200 से 300 लोगों को रिहा कर सकती है।

जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी के राजेंद्र के मुताबिक उन्हें ऐसे आदेश मिले हैं कि जिन आतंकियों और अलगवादियों के खिलाफ आपराधिक मामले ना हो, उन्हें रिहा कर दिया जाए।

इस मुद्दे पर कश्मीर में बीजेपी की नेता हिना भट्ट कहती हैं, 'मुफ्ती साहब को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह एक साझा सरकार चला रहे हैं और ऐसे अहम फैसले लेने से पहले कैबिनेट में चर्चा करनी चाहिए। ना तो उन्होंने उप मुख्यमंत्री से इस मसले पर बात की और ना ही बीजेपी से। इस फैसले ने साबित कर दिया है कि मुफ्ती साहब किसके समर्थन से चुनाव जीते हैं।
 
गौरतलब है कि पीडीपी प्रमुख सईद जब पहले भी मुख्यमंत्री बने थे तो अपने हीलिंग टच के तहत सैकड़ों आतंकियों को राजनीतिक बंदी के नाम पर रिहा कर दिया था। तब बीजेपी ने इसका जबरदस्त विरोध किया था, लेकिन अब बीजेपी खुद सत्ता में भागीदार होने से बैकफुट पर है।

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इससे पहले मुफ्ती ने मुख्यमंत्री बनते ही कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए पाकिस्तान, हुर्रियत और आतंकवादियों को धन्यवाद दिया था। बाद में संसद में जब हंगामा मचा तब तब खुद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सफाई दी कि पार्टी और सरकार मुफ्ती की राय से सहमत नहीं है। हो सकता है कि सोमवार को संसद में विपक्षी दल फिर यह मुद्दा उठाए और सरकार को जवाब देते ना बने। बेशक मुफ्ती के इस फैसले से घाटी में पीडीपी की जड़े मजबूत होगी, लेकिन कहीं यह सुरक्षा के लिए नया खतरा ना बन जाए।