मैं मार्क्सिस्ट विचार को मानता हूं, लेकिन इससे मैं नक्सली नहीं हो जाता : तेलतुंबड़े

मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े ने कहा- लोगों को चुप कराने के लिए यूएपीए का दुरुपयोग किया जा रहा है

मैं मार्क्सिस्ट विचार को मानता हूं, लेकिन इससे मैं नक्सली नहीं हो जाता : तेलतुंबड़े

प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े (फाइल फोटो).

खास बातें

  • बताया- पुलिस आई और जबरदस्ती चाभी लेकर घर में घुस गई
  • वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ ही तेलतुंबड़े के घर पर भी छापेमारी की गई
  • कहा- निर्दोष लोगों के उत्पीड़न और शोषण का न्यायपालिका संज्ञान ले
मुंबई:

मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े ने कहा है कि 'जो ये सरकार कर रही है वह डरावना है. मैं बचपन से एक्टिविस्ट हूं. पहले की सरकारों के खिलाफ भी लिखता रहा हूं. मैं मार्क्सिस्ट विचार को मानता हूं लेकिन इससे मैं नक्सली नहीं हो जाता हूं. भारत गुलामी से भी बदतर हो गया है.'

आनंद तेलतुंबड़े गोवा में बिग डेटा एनालिसिस में सीनियर प्रोफेसर हैं. उन्होंने हंसते हुए पत्रकारों से कहा कि 'मैं अर्बन नक्सल हूं. मैं कल दफ्तर के काम से मुंबई आया था इसलिए आज बात कर पा रहा हूं.' उन्होंने बताया कि 'तीन वैन भरकर पुलिस आई और जबरदस्ती चाभी लेकर घर में घुस गई. मेरी पत्नी डरी हुई थी. मेरे छात्र क्या सोच रहे होंगे?'

तेलतुंबड़े ने कहा कि सरकार चुनिंदा बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को लक्षित करके लोगों को ‘‘चुप’’ और आतंकित करने के लिए कठोर प्रावधानों वाले गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) कानून का ‘‘दुरुपयोग’’ कर रही है.    

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महाराष्ट्र पुलिस ने कल कोरेगांव - भीमा गांव में हुई हिंसा की जांच के तहत कई राज्यों में यह छापेमारी की थी और पांच प्रमुख वामपंथी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था. गौरतलब है कि पिछले साल 31 दिसंबर को पुणे हुए एलगार परिषद कार्यक्रम के बाद यह हिंसा हुई थी. माओवादियों के साथ संबंध होने के संदेह में मंगलवार को कुछ वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ ही तेलतुंबड़े के घर पर भी छापेमारी की गई थी.    

तेलतुंबड़े ने आग्रह किया कि उनके जैसे निर्दोष लोगों के ‘‘उत्पीड़न और शोषण’’ का न्यायपालिका संज्ञान ले. उन्होंने उन परिस्थितियों के बारे में बताया जिनमें गोवा में उनके आवास पर छापे की कार्रवाई गई थी. वरिष्ठ प्रोफेसर तेलतुंबड़े ने कहा कि उन्हें उनके घर पर छापेमारी के बाद इस बारे में पता चला.

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उन्होंने कहा,‘‘उन्होंने मेरे बारे में पूछताछ की और वे मुख्य द्वार से एक सुरक्षाकर्मी को घर दिखाने के लिए ले गए. दूसरे द्वार पर उन्होंने यही दोहराया और वे सभी सेल फोन ले गए और मेरे घर की तरफ आने वाली फोन लाइन को काट दिया. उन्होंने चाबियां लेने के लिए सुरक्षा गार्ड को धमकी दी.’’ उन्होंने बयान में कहा,‘‘पूरी प्रक्रिया को इस तरह अंजाम दिया गया जैसे मैं कोई कुख्यात आतंकवादी या अपराधी था.’’    

पत्रकारों से बातचीत करते हुए मिहिर देसाई ने कहा कि UAPA कानून लोगों को लंबे समय तक सलाखों के पीछे बंद कर रखने के लिए बना है. क्योंकि जल्दी जमानत नहीं होती. हमारी पहली मांग है कि सभी को छोड़ें, मुआवजा दें, जिम्मेदार पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई हो. UAPA को रद्द करना चहिए. उन्होंने कहा कि अगर सरकार चाहती है कि हम चुप हो जाएं, तो नहीं, हम अपना बोलना जारी रखेंगे.

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सामाजिक कार्यकर्ता हसीना खान ने कहा कि इस सरकार की फासीवादी नीतियों के खिलाफ हम चुप नहीं बैठेंगे. हमें लगता है कि आज का समय आपातकाल से भी बदतर हो चुका है.

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पूर्व जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल ने कहा कि आज हम सरकारी आतंकवाद का मुकाबला कर रहे हैं. नक्सलियों के पैसे से यलगार परिषद हुई, ये गलत है.
(इनपुट भाषा से भी)


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