मैं बेटी की ज़िन्दगी की भीख मांगने आया हूं : नरेंद्र मोदी

पानीपत:

"मैं आपके पास बेटी की ज़िन्दगी की भीख मांगने आया हूं...", प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पानीपत में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम के शुभारंभ के दौरान भावुक हो गए। समाज में लड़कियों से होने वाले भेदभाव और भ्रूणहत्या के खिलाफ तैयार किए गए इस कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए मोदी ने कहा, "हम मानसिकता से अठारहवीं शताब्दी के नागरिक हैं... हम बेटी को उसकी मां का चेहरा भी नहीं देखने देते हैं..." प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सोच का नतीजा यह हुआ है कि महेंद्रगढ़ जैसे जिले में हर 1,000 बच्चों में 225 कुंवारे ही रह जाएंगे।

हरियाणा समेत कई राज्यों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की कम संख्या की समस्या से निपटने के लिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम को पहले चरण में 100 चुने हुए जिलों में शुरू किया जाएगा, जहां बाल लिंग अनुपात, यानि चाइल्ड सेक्स रेशो सबसे कम है। इन 100 जिलों में पानीपत समेत हरियाणा के 12 जिले शामिल हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक दूसरे राज्यों के मुकाबले हरियाणा में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले सबसे कम है। यहां हर 1,000 लड़कों के मुकाबले सिर्फ 879 लड़कियां हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 941 का है।

योजना के लिए लक्ष्य बनाए गए इन जिलों में सरकार प्री-नैटल डायग्नोस्टिक टेस्ट (पीएनडीटी) रोकने के लिए बने कानून को सख्ती से लागू करेगी। दरअसल, तैयारी इन जिलों में भ्रूणहत्या के खिलाफ मीडिया कैम्पेन लॉन्च करने के साथ-साथ लड़कियों के लिए शुरू की गई योजनाओं को भी गंभीरता से लागू करने की है।

प्रधानमंत्री ने लड़कियों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 'सुकन्या समृद्धि योजना' भी लॉन् की। उन्होंने कहा, "इस योजना के तहत 10 साल से कम उमर की बेटी के मां-बाप 1,000 से डेढ़ लाख रुपये बैंक में जमा कर सकते हैं, और इस पर उन्हें सरकार किसी भी बैंक से ज्यादा ब्याज देगी..." वित्त मंत्रालय ने फिलहाल वर्ष 2014-15 के लिए 9.1 प्रतिशत ब्याज देने का फैसला किया है।

कार्यक्रम के लॉन्च के दौरान बॉलीवुड अभिनेत्री माधुरी दीक्षित भी मौजूद थीं। उन्होंने कार्यक्रम में भाग लेने आईं हज़ारों महिलाओं से अपील की कि वे लड़कियों के हक की लड़ाई लड़ें। माधुरी ने कहा, "अगर बेटी पैदा ही नहीं होगी तो आप बहू कहां से लाओगे...?"

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'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' एक नई कोशिश है, समाज में लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने की, लेकिन अब असली चुनौती समाज के उस तबके की मानसिकता को बदलने की होगी, जो लड़कियों को लड़कों के बराबर नहीं मानता।