पीएम नरेंद्र मोदी की 'एक्ट ईस्ट' नीति में अरुणाचल प्रदेश पर खास ध्यान देने की जरूरत क्यों है?

पीएम नरेंद्र मोदी की 'एक्ट ईस्ट' नीति में अरुणाचल प्रदेश पर खास ध्यान देने की जरूरत क्यों है?

अरुणाचल प्रदेश अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है लेकिन यहां की सड़कों की हालत खस्ता है

खास बातें

  • रोड इंफ्रास्ट्रक्चर का रखरखाव सबसे बड़ी चुनौती
  • अरुणाचल प्रदेश की यात्रा अभी भी काफी दुरुह
  • लोगों को मोबाइल नेटवर्क, कनेक्टिविटी का इंतजार
बोमडिला:

एनडीए सरकार की 'एक्ट ईस्ट' नीति के रास्ते में कई चुनौतियां हैं. रोड इंफ्रास्ट्रक्चर का रखरखाव इनमें से शायद सबसे बड़ी चुनौती है. अरुणाचल जैसा प्रदेश सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन पूरे देश से उसका संपर्क अभी भी सबसे बुरे हालात में है.

सड़कों की हालत खस्ता, नहीं बदले हालात
मोदी सरकार का कहना है कि उत्तर-पूर्व को पूरे देश से जोड़ना उसका प्राथमिक उद्देश्य है लेकिन जब तक ऐसा होगा उससे पहले अगर आप अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करते हैं तो यह काफी दुरुह साबित होती है. हालांकि, यहां की खूबसूरती सांसों को रोक देने वाली है लेकिन यहां की सड़कें किसी दु:स्वप्न से कम नहीं हैं. प्रदेश के लोगों का कहना है कि यहां के हालात वर्षों से नहीं बदले हैं और अभी भी वर्षों पुरानी धारणा के अनुसार उत्तर-पूर्व की उपेक्षा बदस्तूर जारी है.  

तवांग तक पहुंचना अभी भी सबसे बड़ी चुनौती
बोमडिला से तवांग तक का रास्ता वाहन चालकों के लिए एक चुनौती होता है और तवांग तक पहुंचने में 12 से अधिक घंटे का समय लगता है. तवांग जिले के सेला पास, तक पहुंचने का रास्ता बहुत दुर्गम है जो कि समुद्र तल से 13,700 फीट की ऊंचाई पर है. यहां तक वाहन बहुत ही मुश्किल से पहुंच पाते हैं.  

हालांकि भूटान और लूमला के बीच एक वैकल्पिक मार्ग बनाया जा रहा है. इससे छह घंटे का समय बचेगा लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह रोड कब तक बनकर तैयार होगा. राज्य के पश्चिमी हिस्से के तवांग से पूर्व के कनुबारी तक 1500 किमी वाले ट्रांस-अरुणाचल हाईवे के निर्माण पर भी चर्चा चल रही है और इसके चालू होने में अभी काफी समय लगेगा.

खराब सड़क की वजह से फंस कर रह जाते हैं पर्यटक
इस मार्ग पर प्रतिदिन सवारियों को ढोने वाले ड्राइवर पासंग शेरपा ने एनडीटीवी को बताया, "अगर आप यहां गाड़ी चलाते हैं तो गाड़ियों के टायर अक्सर फट जाते हैं और कार में परेशानी शुरू हो जाती है". बोमडिला स्थित एक होटल के मैनेजर फिरोज़ अली ने कहा, "मैं आपको बता नहीं सकता कि यहां के सड़कों की स्थिति कितनी दयनीय है. यहां आने वाले पर्यटक खराब सड़क की वजह से आसानी से वापस नहीं लौट पाते हैं."

एक गांव से दूसरे गांव में जाना मुश्किल
सरकार की नीतियों का सही तरीके से क्रियान्वयन अभी भी होना बाकी है लेकिन सड़कों की खतरनाक स्थिति अरुणाचल प्रदेश में इतनी बुरी है कि एक गांव से दूसरे गांव जाने में मुश्किल आती है.

इस मसले पर चर्चा करने पर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन ने एनडीटीवी को बताया, "मई 2014 से 'लुक ईस्ट' पर काम कर रहे हैं जो कि अब 'एक्ट ईस्ट' नीति बन गई है. मंत्रियों से कहा गया है कि वे ज्यादा से ज्यादा उत्तर-पूर्व का दौरा करें , अवसर तलाशें, चुनौतियों की पहचान करें ताकि हम उनका समाधान कर सकें ताकि उत्तर-पूर्व अलग-थलग न रहे."  

मोबाइल नेटवर्क और कनेक्टिविटी न होना सबसे बड़ी समस्या
1962 में चीन के आक्रमण का सामना कर चुके इस प्रदेश की सुरक्षा भी सबसे बड़ी चुनौती है. कैप्टन उरुझ जाफरी ने एनडीटीवी को बताया, "यहां पर कोई मोबाइल नेटवर्क, कनेक्टिविटी नहीं है. नजदीकी एयरपोर्ट पहुंचने में 10-14 घंटे का समय लगता है. सड़कों के रखरखाव की जिम्मेदारी सीमा सड़क संगठन की है. लेकिन मानसून में भारी बारिश और सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण सड़कों की मरम्मत करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. फलस्वरूप कई बार भू-स्खलन भी होता है.

इस मुद्दे पर अरुणाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने एनडीटीवी को बताया, "संचार यहां की सबसे बड़ी बाधा है. सड़कों की स्थिति बहुत खराब है और मौसम भी यहां बहुत प्रतिकूल रहता है. हम बहुत कठिन मेहनत कर रहे हैं और मैं सड़कों की मरम्मत के लिए बजट का आवंटन बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्री से भी बात करूंगा."


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