इसी तरह की एक घोषणा वे लोग करते हैं, जो किराये के मकान में रहते हैं, और जिन्हें तनख्वाह (वेतन या सैलरी) में मकान किराया भत्ता (हाउस रेंट अलाउन्स या एचआरए) मिला करता है. मकान किराया भत्ता आमतौर पर सचमुच किराये पर रहने वालों को इनकम टैक्स में काफी बचत करवाता है, सो, उसकी सही घोषणा करना बेहद ज़रूरी है, लेकिन ज़्यादातर नौकरीपेशा लोगों को यही समझ में नहीं आता है कि उसे कैसे हासिल किया जा सकता है... सो आइए, आज हम आपको बताते हैं.
हमें पहले यह समझना होगा कि मकान किराया भत्ते पर इनकम टैक्स छूट पाने के हकदार कौन लोग हैं... इसके लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि आपको तनख्वाह में मकान किराया भत्ता मिलता हो, और जिस मकान का किराया आप अदा करने का दावा कर रहे हैं, वह आप ही के नाम नहीं होनी चाहिए. दरअसल, इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10 (13 ए) के तहत किसी भी वेतनभोगी को उसके मूल वेतन का 50 फीसदी, एचआरए के मद में मिलने वाली रकम या चुकाए गए वास्तविक किराये में से मूल वेतन का 10 फीसदी घटाने पर बची तीन रकमों में से सबसे कम रकम पर आयकर से छूट मिलती है.
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को 25,000 रुपये मूल वेतन के रूप में प्राप्त होते हैं, और 12,500 रुपये एचआरए के मद में, और वह 12,500 रुपये ही वास्तव में किराया देता है, तो उसे 10,000 रुपये पर ही छूट मिल पाएगी... दरअसल, चुकाए गए किराये की रकम (12,500) में से मूल वेतन का 10 फीसदी (2,500) घटाने पर यही रकम बचती है.
एक और याद रखने लायक बात यह है कि अगर आप सालाना 1,00,000 रुपये (यानी 8,333 रुपये प्रतिमाह) से ज़्यादा किराया दे रहे हैं, तो मकान-मालिक (भले ही वे मां या पिता या पत्नी हों) का पैन नंबर दर्ज किया जाना भी अनिवार्य है, और उन्हें इस आमदनी पर टैक्स देना होगा. सो, याद रहे, मकान किराया भत्ते पर आयकर छूट पाने के लिए ज़रूरी है कि घर किराया देने वाले की संपत्ति न हो, और भुगतान की रसीदें मौजूद हों.