यह ख़बर 19 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

ज्यादातर उद्योग घराने सांसदों को साध करके रखते हैं

खास बातें

  • एक पूर्व नौकरशाह ने कहा है कि ज्यादातर उद्योग घराने सरकारी नीतियों को प्रभावित करने या अपने पक्ष में निर्णय के लिए सांसदों को साध करके रखते हैं।
New Delhi:

ऐसे समय में जब संसद विवादित लोकपाल विधेयक पर चर्चा करने की तैयारी में है, एक पूर्व नौकरशाह ने कहा है कि ज्यादातर उद्योग घराने सरकारी नीतियों को प्रभावित करने या अपने पक्ष में निर्णय के लिए सांसदों को साध करके रखते हैं। आर्थिक खुफिया ब्यूरो के पूर्व महानिदेशक बीवी कुमार ने अपनी नई किताब दि डार्कर साइड ऑफ ब्लैक मनी (काले धन का गहन अंधेरा पक्ष) में लिखा है, कुछ बड़े उद्योग घराने जोखिम से बचाव के लिए विपक्ष में बैठे सांसदों को चढ़ावा चढ़ाते हैं ताकि यह उनके हित के किसी भी मुद्दे का ये सांसद विरोध न करें। ये उद्योग घराने इस तरह के चढ़ावे को दीर्घकालीन निवेश के तौर पर मानते हैं। वर्ष 1958 में भारतीय राजस्व सेवा में शामिल होने के बाद अपने 35 वर्ष के कार्यकाल के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले कुमार ने लिखा है कि ज्यादातर राजनीतिक दल जब विपक्ष में होते हैं तो भ्रष्टाचार उजागर करने में दिलचस्पी दिखाते हैं। और सरकार गिराने या सरकार में बदलाव आने पर इस मुद्दे में उनकी दिलचस्पी घट जाती है। कुमार का कहना है कि भले ही राजनीतिक पार्टियों के बीच भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, ज्यादातर राजनीतिक दलों ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बावजूद अपने खातों की जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया नहीं कराई है। अपनी प्रस्तावना में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने लिखा है, डार्क साइड ऑफ ब्लैक मनी के प्रकाशन का इससे बेहतर समय और कोई नहीं हो सकता। भारत से काला धन विश्व के विभिन्न हिस्सों में जाने से न केवल देश को नुकसान हो रहा है, बल्कि आतंकियों द्वारा इस धन के दुरुपयोग की आशंका है।''


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