राजनीतिक परिवार में शादी के बाद कैसे बदल गई शीला दीक्षित की जिंदगी, पढ़ें यहां

प्रभावशाली, विनम्र और हमेशा मुस्कुराते रहने वाली शीला दीक्षित का व्यक्तित्व अन्य राजनेताओं की तुलना में कुछ हटकर था.

राजनीतिक परिवार में शादी के बाद कैसे बदल गई शीला दीक्षित की जिंदगी, पढ़ें यहां

शीला दीक्षित, राजीव गांधी के साथ मिलकर काम करने के बाद गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान बन गई

नई दिल्ली:

प्रभावशाली, विनम्र और हमेशा मुस्कुराते रहने वाली शीला दीक्षित का व्यक्तित्व अन्य राजनेताओं की तुलना में कुछ हटकर था. मिरांडा हाउस की एक जिंदादिल लड़की, जिसे कार की सवारी का बड़ा चाव था, मगर जब उन्होंने एक राजनीतिक परिवार में शादी की तो उनकी किस्मत हमेशा के लिए बदल गई. उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता रहे उमा शंकर दीक्षित की बहू शीला दीक्षित, राजीव गांधी के साथ मिलकर काम करने के बाद गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान बन गई. उनका जन्म पंजाब में हुआ और दिल्ली में अपनी शख्सियत बुलंद की. इसके बाद उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक कौशल मजबूत करने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी को अपनी कर्मभूमि बनाया. 

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दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी स्तर पर कराए गए कामों का ही नतीजा रहा कि उनके राजनीतिक विरोधी भी इस बात से असहमत नहीं हो सकते कि वह दिल्ली के परिवर्तन के पीछे की एक बड़ी ताकत थी. वह सड़कों और फ्लाईओवरों का निर्माण कराकर शहर के बुनियादी ढांचे में एक क्रांति लाने में सफल रही. उन्होंने जो भी हासिल किया उसमें एक गरिमा थी, यही वजह रही कि उन्होंने अपने विरोधियों से भी काफी सम्मान पाया. उनके निधन के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने उन्हें अपनी बहन बताया, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्हें हराने वाले भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि वह उनके जीवन में एक मां की तरह थी. 

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1998 से 2013 तक के अपने 15 साल के शासन के दौरान उन्होंने दिल्ली का चेहरा पूरी तरह से बदलकर रख दिया. उनका राजनीतिक करियर एक रोलर-कोस्टर की सवारी की तरह था, जिसके दौरान उन्होंने शिखर को छुआ और उसी वेग से वह नीचे की ओर भी आई. 1998 में विधानसभा चुनावों से पहले उन्हें चौधरी प्रेम सिंह की जगह दिल्ली कांग्रेस प्रमुख बनाया गया.  इसके बाद शीला दीक्षित ने पार्टी का नेतृत्व करते हुए 70 में से 52 सीटें जीतीं और यहां से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने 2003 और 2008 में फिर से जीत हासिल की. 

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केंद्र में कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के घोटालों का सिलसिला चला और वह 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए सवालों के घेरे में आ गई, जो उसके पतन की शुरुआत थी. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख के तौर पर दोबारा वापसी की. वह उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं लेकिन राज्य में भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी से हार गईं. शीला दीक्षित अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही थी मगर दिल की बीमारी से वह उबर नहीं सकी और अनगिनत यादों के साथ दुनिया से विदा हो गई. 

इनपुट- IANS

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