यौन हमलावर के नाम खुला खत - मैं बेटी, दोस्त, प्रेमिका हूं, तुम नहीं जीतोगे

मैं एक बेटी, दोस्त, प्रेयसी, छात्रा, बहन, भतीजी, पड़ोसी हूं. कामगार हूं, जो हर रोज़ एक कैफे में लोगों को कॉफी सर्व करती है. ये लोग, जो मुझसे ये रिश्ते रखते हैं, मेरी बिरादरी बनाते हैं और तुमने उनमें से हरेक पर हमला किया.

यौन हमलावर के नाम खुला खत - मैं बेटी, दोस्त, प्रेमिका हूं, तुम नहीं जीतोगे

इयोन वेल्स (फाइल चित्र)

संपादक की ओर से : दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध, विशेषरूप से बलात्कार, हमारे देश में भी कतई नई बात नहीं हैं, लेकिन उससे भी बुरा यह है कि हमारे समाज में आमतौर पर कुकर्मी को नहीं, पीड़िता को हिकारत की नज़र से देखा जाता है, जिससे बहुत-सी पीड़िताएं, या उनके परिवार इस जघन्य कृत्य को सामने ही नहीं आने देते. जिन मामलों में पीड़िता हिम्मत दिखाती भी हैं, उनमें भी बहुतों में पुलिस थानों, अदालतों और मोहल्लों में होने वाली उनकी और परिवार की छीछालेदर की वजह से हिम्मत रास्ते में ही दम तोड़ देती है. ऐसे में इंग्लैंड की एक छात्रा इयोन वेल्स (Ione Wells) का अपने यौन हमलावर के नाम लिखा यह खुला खत बेहद प्रेरक साबित हो सकता है, जिसका अनुवाद आज से कुछ साल पहले हमारे सीनियर एडिटर प्रियदर्शन ने किया था.

NDTV इंडिया के सीनियर एडिटर प्रियदर्शन की ओर से : शायद तीन-चार साल पहले मैंने इस चिट्ठी का अनुवाद किया था. अचानक फिर नज़र पड़ी तो फिर साझा करने की इच्छा हुई. इयोन वेल्स (Ione Wells) ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की अंडरग्रेजुएट छात्रा थी. वह घर लौट रही थी कि उस पर एक अजनबी ने यौन हमला किया. इयोन ने एक चिट्ठी लिखी - अपने हमलावर के नाम, और उन लोगों के नाम, जो उसकी मदद के लिए आए. यह चिट्ठी पहले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों की पत्रिका में छपी और फिर ब्रिटेन के 'टेलीग्राफ़' में. यह यौन हमले से कातर और हताश हुई किसी लड़की की नहीं, अपनी बिरादरी में भरोसा रखने वाली एक मज़बूत लड़की की कहानी है, जो हमारी-आपकी दोस्त और सहेली हो सकती है.

मैं यह चिट्ठी तुम्हारे नाम नहीं लिख सकती, क्योंकि मैं तुम्हारा नाम नहीं जानती.

मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि तुम एक गंभीर यौन आक्रमण और लंबे हिंसक हमले के आरोपी हो.

और मेरा एक सवाल है.

जब तुम CCTV कैमरे पर ट्यूब से मेरे पड़ोस तक मेरा पीछा करते पकड़े गए. जब तुम इंतज़ार कर रहे थे कि मैं अपनी सड़क पर आऊं और तुम मुझ तक पहुंचो. जब तुमने अपने हाथ से मेरा मुंह इस तरह जकड़ लिया था कि मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया था. जब तुमने मुझे मेरे घुटनों पर ला दिया था और मेरा चेहरा लहूलुहान हो गया था. जब मैं तुम्हारे हाथों की जकड़ से छूटने के लिए लड़ रही थी कि चीख सकूं.

जब तुमने मुझे बाल पकड़कर खींचा और जब तुमने मेरा सिर फुटपाथ से दे मारा और मुझसे कहा कि मदद के लिए चिल्लाना बंद करूं. जब मेरी पड़ोसन ने तुम्हें खिड़की से देखा और तुम पर चिल्लाई, और तुमने उसे घूरा और मेरी कमर और गर्दन पर वार करते रहे. जब तुम इतनी ताकत से मेरे वक्षों पर झपटे कि मेरी ब्रा फटकर आधी रह गई. जब तुमने मेरे असबाब की तरफ देखा तक नहीं, क्योंकि तुम्हें मेरा जिस्म चाहिए था. जब तुम मेरा जिस्म हासिल करने में नाकाम रहे, क्योंकि मेरे घरवाले और पड़ोसी निकल आए और तुमने उन्हें सामने देखा.

जब CCTV कैमरे में तुम भागते हुए और 20 मिनट बाद, एक और औरत का पीछा करते दिख रहे थे, जिसके बाद उसी स्टेशन पर तुम गिरफ़्तार हो गए. जब मैं 5 बजे सुबह पुलिस स्टेशन में थी, जबकि तुम चार-मंज़िल नीचे हिरासत में थे. जब मुझे फॉरेंसिक टीमों को अपने कपड़े और अपने नग्न जिस्म के चोट और निशानों के फोटो देने पड़े.

क्या तुमने एक बार भी अपनी ज़िन्दगी में आए लोगों के बारे में सोचा...?

मैं नहीं जानती, तुम्हारी ज़िन्दगी में कौन से लोग हैं...? मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती. लेकिन मैं यह जानती हूं : उस रात तुमने सिर्फ मुझ पर हमला नहीं किया.

मैं एक बेटी हूं. मैं एक दोस्त हूं. मैं एक प्रेयसी हूं. मैं एक छात्रा हूं. मैं एक बहन हूं. मैं एक भतीजी हूं. मैं एक पड़ोसी हूं. मैं एक कामगार हूं, जो हर रोज़ रेलवे में बने कैफे में लोगों को कॉफी सर्व करती है. ये सारे लोग, जो मुझसे ये रिश्ते रखते हैं, मेरी बिरादरी बनाते हैं और तुमने उनमें से हरेक पर हमला किया. तुमने उस सच्चाई को नापाक किया, जिसकी ये सब लोग नुमाइंदगी करते हैं और जिसके लिए मैं लड़ना कभी बंद नहीं करूंगी : कि दुनिया में अच्छे लोगों की तादाद बुरे लोगों से कई गुना ज़्यादा है.

यह चिट्ठी वाकई तुम्हारे लिए कतई नहीं है, यह उन तमाम पीड़ितों के लिए है, जिन पर गंभीर यौन हमले हुए या इसकी कोशिश हुई और उनकी बिरादरियों के एक-एक सदस्य के लिए है.

मुझे यकीन है तुम्हें 7/7 याद होगा. मुझे यह भी यकीन है कि तुम्हें याद होगा कि किस तरह आतंकी जीते नहीं, क्योंकि लंदन की पूरी बिरादरी अगले दिन ट्यूब पर चली आई थी. तुमने अपना हमला किया, लेकिन मैं अब अपनी ट्यूब में लौट रही हूं.

मेरी बिरादरी यह महसूस नहीं करेगी कि अंधेरे के बाद घर लौटना हमारे लिए असुरक्षित है. हम आख़िरी ट्रेन में घर लौटेंगे और हम सड़क पर अकेले चलेंगे, क्योंकि हम इस विचार के आगे घुटने नहीं टेकेंगे कि ऐसा करके हम खुद को ख़तरे में डाल रहे हैं.

हम साथ आना जारी रखेंगे, किसी सेना की तरह, जब हमारी बिरादरी के किसी भी सदस्य को डराया जाएगा.

यह वह लड़ाई है, जो तुम नहीं जीतोगे.

बिरादरी वह ताकत है, जिसे हम कम आंकते हैं. हम उसी अख़बार वाले से रोज अख़बार लेते हैं, हम पार्क में अपने कुत्ते को टहला रही महिला को देख हाथ हिलाते हैं, हर रोज़ हम एक ही मुसाफ़िर के बगल में बैठते हैं.

हर शख्स, जिसे हम जानते हैं और जिसका ध्यान रखते हैं, हर रोज़ के कुछ सेकंड से ज़्यादा नहीं लेता, लेकिन उनसे हमारी ज़िन्दगियों का एक बड़ा हिस्सा बनता है. एक बार किसी ने मुझसे यहां तक कहा, चाहे वे जितने अनजाने मालूम होते हों, हमारे सपनों में आने वाले चेहरे वे चेहरे होते हैं, जिन्हें हमने पहले देखा है.

हमारी बिरादरी हमारी मनोरचना में बस जाती है. तुम, मेरे हमलावर, तुमने मेरे भीतर की, या मेरे कर्म की कोई कमज़ोरी साबित नहीं की, बस मनुष्यता की अटूटता का प्रदर्शन करा दिया.

जब तुम बैठकर मुकदमे का इंतज़ार कर रहे हो, मुझे उम्मीद है, तुम सिर्फ यह नहीं सोच रहे कि तुमने क्या किया है. मुझे उम्मीद है, तुम बिरादरी के बारे में सोच रहे हो. अपनी बिरादरी के बारे में - भले ही तुम इसे अपने आसपास रोज़ नहीं देखते हो. यह यहां है. हर तरफ है.

तुमने मेरी बिरादरी को कम करके आंका. या मुझे कहना चाहिए, हमारी...? मैं कुछ इस तरह की बात कह सकती थी, 'कल्पना करो, अगर मैं तुम्हारी बिरादरी की सदस्य होती', लेकिन इसकी जगह मैं यह कहने जा रही हूं - बिरादरी में कोई सरहद नहीं होती, सिर्फ अपवाद होते हैं, और तुम उनमें से एक हो...


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