लॉकडाउन के बीच घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को बेहतर जिंदगी दे रहीं यह IPS अफसर

राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन लागू होने के बाद से देश में घरेलू हिंसा की घटनाओं में दोगुनी तेजी आई है. ऐसे में एक आईपीएस अफसर इस मुश्किल वक्त में फंसी महिलाओं की मदद के लिए आगे आई हैं.

लॉकडाउन के बीच घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को बेहतर जिंदगी दे रहीं यह IPS अफसर

तेलंगाना की एसपी रेमा राजेश्वरी ने घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं का बीड़ा उठाया है.

कोरोनावायरस महामारी के बीच लागू लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से बढ़ोतरी आई है. देश में 25 मार्च से लागू लॉकडाउन में लाखों मजदूरों और गरीब परिवारों का रोजगार छिन गया. इसका असर ऐसे भी दिखा कि घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ गईं. राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन लागू होने के बाद से देश में घरेलू हिंसा की घटनाओं में दोगुनी तेजी आई है. ऐसे में एक आईपीएस अफसर इस मुश्किल वक्त में फंसी महिलाओं की मदद के लिए आगे आई हैं.

तेलंगाना के महबूबनगर की पुलिस सुपरिटेंडेंट रेमा राजेश्वरी ने घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए एक पूरा इनीशिएटिव ही चलाया है. उन्होंने इन महिलाओं के लिए 'मोबाइल सेफ्टी' व्हीकल ही सेटअप किया है. फेसबुक पर  Humans of Bombay पेज पर उन्होंने अपनी इस मुहिम की शुरुआत करने के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि उन्हें एक कॉल आई थी, जिसने उनकी आंखें खोल दीं और इस दिशा में बड़ा कदम उठाने को प्रेरित किया.

उन्होंने बताया कि कानपुर की एक महिला ने उन्हें कॉल किया था. उसका कहना था कि उसकी बहन ने उसे पिछले तीन दिनों से कॉल नहीं किया है. महिला ने बताया कि उसकी बहन का पति उसे बहुत मारता है और उसे डर है कि फिर ऐसा कुछ हुआ है. आईपीएस राजेश्वरी ने बताया, 'हमने एक डिस्पैच टीम भेजी और उस महिला को हमने इतने दयनीय हालत में पाया कि मैं हिल गई. उसे बुरी तरह चोट लगी थी. उसने तीन दिनों से पानी की एक बूंद भी नहीं मिली थी और वो दर्द से कराह रही थी.'

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पुलिस ने पीड़िता को हॉस्पिटल पहुंचाया जहां तीन दिन इलाज होने पर महिला ठीक हुई और अपने पति के खिलाफ केस दर्ज करवाया. इसके बाद ऑफिसर ने महिला की बहन के आग्रह पर अंतर-राज्यीय यात्रा की व्यवस्था करवाई ताकि वो पीड़िता बहन के पास तेलंगाना से उत्तर प्रदेश जा सकें. आईपीएस राजेश्वरी ने कहा, 'यह घटना मेरे लिए आंख खोलने वाली थी. घरेलू हिंसा की शिकार इतनी सारी महिलाएं आरोपी के साथ रहने को मजबूर हैं और शिकायत भी दर्ज नहीं करवा सकतीं.' 

ऐसी महिलाओं की मदद के लिए मोबाइल सेफ्टी व्हीकल सेटअप किया है, जो ऐसे महिलाओं को खुद ढूंढकर निकालेगा, जिन्हें उसकी जरूरत है. रेमा राजेश्वरी ने बताया, 'इस मुहिम के तहत मैंने मोबाइल सेफ्टी व्हीकल तैयार किया, जिसके तहत मेरी टीम जिले में दौरा करती थी. दो हफ्तों में ही ऐसे 40 केस मिले.' हालांकि, लॉकडाउन के नियम सख्त होते जाने के चलते और घर लौटने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ने के बाद उनकी टीम कम पड़ने लगी. 

उन्होंने बताया कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के लिए उनकी टीम ने प्रवासी मजदूरों की मदद का भी बीड़ा उठाया. उनकी टीम ने हाइवे के किनारों पर फूड बैंक सेटअप लगाए, ताकि मजदूरों को खाना मिल सके. उन्होंने बताया कि रेलवे की ओर से ट्रेनों की आवाजाही शुरू होने के बाद उनकी टीम ने 15 दिनों के भीतर 11,000 मजदूरों को घर पहुंचाया.

“A month into the lockdown, a lady called me from Kanpur. She was extremely distressed as her sister hadn't called in 3 days. Her husband would hit her and she worried it had happened again. So we sent a dispatch team and found her in such a terrible condition, it shook me. She was badly bruised, hadn't had a single drop of water in 3 days and was writhing in pain. We rushed her to the hospital and filed a case against the husband. 3 days later, she fully recovered, but her sister called again, 'Can you please send her home to me?' So I got all the passes for inter-state travel and made sure she was home safely. That incident was an eye opener– there were so many victims of domestic violence living with their abusers and they couldn't even file a complaint! To help them, I set up 'Mobile Safety'– a vehicle with my team members doing rounds across the district and in 2 weeks, we had 40 cases! Alongside, more members of my team stepped up to help the general populace. Like this one time, we dropped a pregnant lady to the hospital in the police ambulance. When my colleague returned, he was beaming! He was so excited to be there for her and her newborn son! But as the rules got stricter, my team was stretched thin – from naka bandhis to contact tracing. And pretty soon, the migrants began going back home. We set up shelters and tried convincing them to stay but it was futile. So we set up food banks along the highway– and once the railways finally opened, we helped 11,000 workers reach home in under 15 days. Over the past 3 months, my team has put their lives at stake and risked their families, so that we could help people. But last week, a majority of them tested positive and have been quarantined. Still, the only question they ask me is, 'Madam! When can we get back in action?' Such is the love for our duty!”

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उनकी टीम ने पिछले तीन महीनों में अपनी और अपने परिवार की जिंदगी खतरे में डालकर लोगों की मदद की है. लेकिन दुर्भाग्य से पिछले हफ्ते उनकी टीम के कुछ सदस्य कोविड से संक्रमित हो गए हैं और क्वारंटीन में रखा गया है. ऑफिसर राजेश्वरी ने बताया कि 'फिर भी वो मुझसे पूछते रहते हैं कि 'मैडम! हम दुबारा काम कब शुरू करेंगे?' काम को लेकर हममें ऐसा जज़्बा है.'

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