जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 4 नजरबंद नेताओं को किया रिहा, अब तक हुई कुल 9 नेताओं की रिहाई

जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) प्रशासन ने बीते रविवार संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान रद्द किए जाने के बाद पांच महीनों तक घर में नजरबंद रहे पांच नेताओं को रिहा किया था.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 4 नजरबंद नेताओं को किया रिहा, अब तक हुई कुल 9 नेताओं की रिहाई

अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था. (फाइल फोटो)

खास बातें

  • J&K में कुल 9 नेता नजरबंदी से रिहा
  • नेशनल कॉन्फ्रेंस के नाजिर गुरेजी रिहा
  • PDP के अब्दुल हक खान भी रिहा
श्रीनगर:

जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) प्रशासन ने बीते रविवार संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान रद्द किए जाने के बाद पांच महीनों तक घर में नजरबंद रहे पांच नेताओं को रिहा किया था. अधिकारियों ने नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, पीसी और कांग्रेस के नेताओं को रिहा करने की जानकारी दी थी. शुक्रवार को प्रशासन ने चार और नेताओं को नजरबंदी से रिहा कर दिया है.

मिली जानकारी के अनुसार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शुक्रवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के नाजिर गुरेजी, पीडीपी के अब्दुल हक खान, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के मोहम्मद अब्बास वानी और कांग्रेस के अब्दुल राशिद को रिहा किया है. चारों नेता 5 अगस्त, 2019 से अपने-अपने घरों में कैद थे.

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बताते चलें कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन घाटी के सामान्य होते हालातों के मद्देनजर नजरबंद नेताओं को रिहा कर रहा है. बीते रविवार भी प्रशासन ने पांच नेताओं को रिहा किया था. इनमें दो पूर्व विधायक हैं. अब तक प्रशासन कुल 9 नेताओं को रिहा कर चुका है. सूबे के तीन पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को फिलहाल राहत नहीं मिली है. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी के प्रमुख सज्जाद गनी लोन और जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट के शाह फैसल भी अभी नजरबंद हैं.

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गौरतलब है कि पिछले साल 5 अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था. सरकार ने लद्दाख को कश्मीर से अलग करते हुए दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा की. अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद सुरक्षा व्यवस्था के एहतियातन राज्य में मोबाइल व इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी गई थी. धीरे-धीरे सभी सेवाओं को बहाल किया जा रहा है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने घाटी में इंटरनेट बैन मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को एक हफ्ते में इसकी समीक्षा करने के निर्देश दिए थे.

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