केरल : आरएसएस ने ओणम के पीछे की किंवदंती पर सवाल कर विवाद खड़ा किया

केरल : आरएसएस ने ओणम के पीछे की किंवदंती पर सवाल कर विवाद खड़ा किया

फाइल फोटो

खास बातें

  • आरएसएस के मुखपत्र 'केसरी' के ओणम विशेष अंक में किया गया दावा
  • राज्‍य सरकार ने कहा कि संघ इसके जरिये अपने एजेंडे को बढ़ाना चाहता है
  • इस साल 14 सितंबर को ओणम त्‍यौहार मनाया जाएगा
तिरूवनंतपुरम:

केरल में ओणम मनाने की तैयारी में लोगों के जुटने के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस दलील के साथ इस त्योहार के पीछे की किंवदंती पर सवाल खड़ा कर दिया कि यह 'वामन' (भगवान विष्णु के अवतार) के जन्म पर मनाया जाने वाला त्योहार है, दैत्यराज महाबलि की गृह वापसी पर नहीं.

आरएसएस के मुखपत्र 'केसरी' के ओणम विशेषांक में एक आलेख ने दावा किया है कि किसी भी पौराणिक ग्रंथ में ऐसा उल्लेख नहीं है, जो इस लोकप्रिय किंवदंती का समर्थन करे कि वामन ने महाबलि को छल से पाताललोक भेज दिया था और वह हर साल यहां अपनी प्रजा से मिलने आते हैं.

इस दलील का प्रतिवाद करते हुए वरिष्ठ माकपा नेता और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री केके श्यालाजा ने कहा कि ओणम जाति, पंथ और धर्म से उठकर मनाया जाता है और आरएसएस की कोशिश बीते हुए उच्च जाति प्रभुत्व को वापस लाने की है. मंत्री ने आरोप लगाया कि यह इस त्योहार का अपहरण करने के एजेंडे का हिस्सा है.

राज्य में लोकप्रिय मान्यता है कि मलयालम महीने चिंगम में अपनी प्रजा से मिलने के लिए महाबलि की गृहवापसी हर साल 'तिरु ओणम' के रूप में मनाया जाता है, जो इस साल 14 सितंबर को है.

हालांकि आरएसएस की पत्रिका में के उन्नीकृष्णन नंबूतिरि के आलेख में दलील दी गयी है कि ओणम मूलत: वामन भगवान के जन्मदिन पर मनाया जाता था, दैत्यराज की गृहवापसी की खुशी में नहीं.

आलेख में कहा गया है, ''पौराणिक ग्रंथों या काव्यों में कहीं भी इस कथा के पक्ष में कोई प्रसंग या व्याख्या नहीं है कि महाबलि को वामन ने पाताललोक भेज दिया था और वह अपनी प्रजा से मिलने हर साल आते हैं. तब ऐसे में केरल में ऐसी झूठी कहानी कैसे प्रचलित है...'' आलेख में कहा गया है कि वास्तव में भगवान विष्णु ने महाबलि को पाताललोक भेजकर उन्हें दंडित नहीं किया था, बल्कि आशीर्वाद दिया था.

आलेख कहता है, 'भगवतम्' या 'नारायणीयम्' जैसे आध्यात्मिक ग्रंथों या ऐसी किसी अन्य पुस्तक में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि बलि को पाताललोक भेज दिया गया. उल्टे, ऐसे ग्रंथ कहते हैं कि महान राजा वामन की परीक्षा में विजयी होकर सामने आए ओर उन्हें भगवान ने आशीर्वाद दिया...'' लेखक ने महाबलि को बड़ी-बड़ी मूंछों वाले, लंबे उदर वाले और ताड़ के पत्ते के रूप में छाता 'ओलाक्कूदा' लेने वाले के रूप में पेश करने की आलोचना की.

उन्होंने लिखा, ''यह कुछ निहित स्वार्थी तत्वों की पौराणिक कहानियों को तोड़-मरोड़कर पेश करने और हिन्दू पुराणों की गलत छवि पेश करने की कोशिश है. ऐसी कोशिशों पर रोक लगनी चाहिए...''

पुराश्रुतियों के अनुसार ओणम असुरराज महाबलि से जुड़ा है, जिनके शासन में सभी लोग खुशहाली और समानता के साथ रहते थे. उनकी लोकप्रियता से ईर्ष्‍या करने वाले देवताओं ने भगवान विष्णु से उन्हें पाताललोक में भेजने में मदद मांगी. लेकिन पाताललोक जाने से पहले महाबलि ने भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त कर लिया कि वह हर साल 'तिरु ओणम' के दिन अपनी प्रजा से मिलने आया करेंगे. दैत्यराज के इसी वार्षिक आगमन पर केरलवासी खुशी मनाते हैं और अपने घरों को सजाते हैं, नए-नए कपड़े पहनते हैं.

ओणम पर आरएसएस के विचार से सदियों पुरानी मान्यता पर बहस छिड़ गई है. केरल की मंत्री श्यालाजा ने कहा, ''शायद निचली जातियां या दलितों को हमारी पौराणिक गाथाओं में असुर के रूप में पेश किया गया है. महाबलि को असुरराज समझा जाता है, अतएव वह दलितों का प्रतिनिधित्व करते हैं...'' उन्होंने कहा, ''आरएसएस का वर्तमान कदम दलित शासन की उपलब्धियों को मिटाना और यह दिखाना है कि ऊंची जाति सर्वोच्च है...''

वैसे मशहूर इतिहासकार और भारतीय इतिहास शोध परिषद के पूर्व अध्यक्ष एमजीएस नारायणन ने कहा, ''महाबलि एक पौराणिक चरित्र है और उनकी कहानी का इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन ऐसे ऐतिहासिक उद्धरण हैं कि राज्य में ओणम प्रारंभिक काल खासकर 9-11 सदी के बीच वामन जयंती के रूप में मनाया जाता था...'' वैसे विवाद से परे लोग इस पर्व की तैयारी में जोर-शोर से जुटे हैं.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com