समलैंगिकता को अपराध बताने वाले कानून को रद्द करने की मांग वाली एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल

समलैंगिकता को IPC 377 के तहत अपराध को चुनौती देने वाली एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है.

समलैंगिकता को अपराध बताने वाले कानून को रद्द करने की मांग वाली एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

समलैंगिकता को IPC 377 के तहत अपराध को चुनौती देने वाली एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. यह याचिका होटेलियर केशव सूरी ने दाखिल की है. इसमें समलैंगिगता को अपराध बताने वाले कानून को रद्द करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार यानी 23 अप्रैल को सुनवाई होगी. बता दें कि यह मामला पांच जजों के पीठ में लंबित है. 

जनवरी में समलैंगिकता अपराध है या नहीं ?  समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के तहत कार्रवाई पर फिर से अपने पहले के आदेश पर फिर से सुप्रीम कोर्ट विचार करने को तैयार हो गया था. मामले को बडी बेंच मे भेजा गया था और पांच जजों के पीठ में मामला लंबित है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नाज फाउंडेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है क्योंकि हमे लगता है कि इसमें संवैधानिक मुद्दे जुडे हुए हैं. दो व्यस्कों के बीच शारीरिक संबंध क्या अपराध हैं, इस पर बहस जरूरी है. अपनी इच्छा से किसी को चुनने वालों को भय के माहौल में नहीं रहना चाहिए. कोई भी इच्छा को कानून के चारों तरफ नहीं रह सकता लेकिन सभी को अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार के तहत कानून के दायरे में रहने का अधिकार है. सामाजिक नैतिकता वक्त के साथ बदलती है। इसी तरह कानून भी वक्त के साथ बदलता है  सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा था.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में नवतेज सिंह जौहर, सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू डालमिया और आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के कार्रवाई के अपने फैसले पर विचार करने की मांग की है. उनका कहना है कि इसकी वजह से वो डर में जी रहे हैं और ये उनके अधिकारों का हनन करता है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था. 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने 1PC 377 को अंसवैधानिक करार दिया था. इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है. 


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