आखिर क्यों नहीं थम रहीं रेल दुर्घटनाएं.
एक बार फिर देश में रेल हादसा हुआ है. रायबरेली में नौ बोगियों के पटरी से उतर जाने से सात यात्रियों की मौत और दर्जनों यात्री घायल हो गए. यह कोई पहली दफा नहीं, जब रेल हादसा हुआ हो. हर हादसे के बाद दुर्घटनाएं रोकने के लिए सरकारी दावे किए जाते हैं, मगर धरातल पर ठोस प्लान नहीं दिखता. 20 नवंबर 2017 को एनडीटीवी वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुकी रिपोर्ट रेल संरक्षा के दावे की पोल खोलती है. पटरियों की चेकिंग से लेकर मरम्मत का कार्य जो गैंगमैन करते हैं, सिर्फ उनके 60 हजार से ज्यादा पद खाली हैं. वहीं अन्य स्तर के 1.31 पद खाली हैं. जिससे रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सही दिशा में रेलवे के प्लान आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक रेल हादसे लगातार बढ़ते जा रहे हैं और रेल विभाग में कर्मचारी घटते जा रहे हैं. रेल लाइनों का रखरखाव करने वाले गैंगमैन की तादाद में हजारों की कमी है. यह बात खुद रेल विभाग ने स्वीकार की है. संसद की स्थायी समिति ने रेल बोर्ड के साथ इस संवेदनशील मसले पर चर्चा की छी. दरअसल एक के बाद एक हो रहे रेल हादसों के बाद संसद की स्थायी समिति ने रेलवे बोर्ड के बड़े अफसरों को तलब किया था. एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक रेलवे बोर्ड के अफसरों ने संसदीय समिति के सामने माना कि भारतीय रेल में 1.31 लाख पद खाली पड़े हैं. इन खाली पदों में करीब 60,000 गैंगमैन के पद हैं, जिन्हें रेल लाइनों की निगरानी करनी होती है.
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पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने भी एनडीटीवी से कहा कि अगर ये पद नहीं भरे गए तो सुरक्षा का मसला बना रहेगा. त्रिवेदी ने कहा, 'गैंगमेन हमारे रेलवे का फाउंडेशन है. वो खुद अपनी जान देते हैं, लेकिन हादसे नहीं होने देते हैं. उनका काम ही है रेलवे की पटरी की जांच करना...और अगर वैकेंसी है तो ऐसे में उन जगहों पर कोई जांच नहीं हो पाती है.' सूत्रों के मुताबिक रेलवे बोर्ड के अधिकारियों ने संसदीय समिति को बताया कि करीब 65,000 पदों को भरने का काम शुरू हो चुका है. बैठक में सांसदों ने अपने संसदीय क्षेत्र में मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग से लेकर पुराने रेल ब्रिजों को लेकर स्थानीय लोगों की बढ़ती चिंता से भी रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराया.रेलवे के पूर्व इंजीनियरिंग चीफ संतोष वैश कहते हैं कि कई रेलवे पुल सौ साल से ज्यादा पुराने हैं, जिन्हें या तो मजबूत करना होगा या बदलना होगा. पहले हर क्षेत्र से छह महीने पर इंजीनियरिंग के हालात की रिपोर्ट आती थी, लेकिन अब ये व्यवस्था खत्म कर दी गई है.
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