यह ख़बर 29 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

किसानों की आत्महत्याओं से नेता भी हताश, विदर्भ के सांसद ने कहा, 'किसान मरते हैं तो मरें'

अकोला / मुंबई:

महाराष्ट्र में किसानों द्वारा लगातार होती आत्महत्याओं और कृषि क्षेत्र के बिगड़ते हालात पर नेतृत्व खुद कितना हताश है, इसका अंदाज़ा नेताओं की टिप्पणियों से पता चलता है। शनिवार को विदर्भ के अकोला में हुई एक किसान संगोष्ठी में अकोला के बीजेपी सांसद संजय धोत्रे ने ऐसे ही एक बयान में हताश होकर किसानों को उन्हीं हाल पर छोड़ देने तक की बात कह डाली।

कृषि क्षेत्र की स्थिति पर हताशा जताते हुए धोत्रे ने कहा, "एक तरफ पारंपरिक खेती और दूसरी तरफ बीटी बीजों का बखान किसानों को सुनाया जा रहा है... इस मिली-जुली जानकारी से किसान भी उतने ही बौराये हुए हैं, जितने अनेक डॉक्टरों के सुझावों से मरीज़ बौखलाता है... 35 साल से यह दुविधा है, और जानकारी कोई नहीं... धनवान किसानों की यह हालत है तो गरीब किसानों की क्या हालत होगी... किसान वैसे ही कम जानकारी रखते हैं... मुझे तो लगता है कि हमारी नीतियां ही किसानों का सबसे बड़ा संकट है... मैं तो गुस्से में यह तक कहता हूं, किसान सजग नहीं, उन्हें मरने दो... जिन्हें किसानी करनी है, करेंगे ही... जो होना है, होकर रहेगा..."

महाराष्ट्र के विदर्भ संभाग में महाराष्ट्र की सर्वाधिक किसान आत्महत्याएं होती हैं, लेकिन यहीं के अकोला से सांसद संजय धोत्रे के शब्दों का चयन जहां कइयों को नागवार गुज़रा, महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे ने सफाई में एक और बयान दिया, लेकिन यहां भी स्थिति संभलने की बजाय और पेचीदा हुई।

खडसे ने कहा, किसान आत्महत्याओं को रोकने के लिए तरह-तरह के पैकेज घोषित किए जा चुके हैं, लेकिन आत्महत्याएं रुकी नहीं हैं। किसान आत्महत्याएं रोकने का रास्ता किसी को पता नहीं, लेकिन हमें यह देखना है कि किसानों का हौसला बना रहे।

बीजेपी नेताओं के इन बयानों पर एनसीपी आक्रामक हो उठी है। यूपीए के शासनकाल में कृषि मंत्रालय संभालती एनसीपी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने बीजेपी को किसान-विरोधी बताया। मलिक ने एनडीटीवी से कहा, बीजेपी खुद को किसान हितैषी कहे, लेकिन उसके कृषि संबंधित निर्णयों से किसानों को नुकसान ही हो रहा है।

वैसे एनसीपी भी किसानों से जुड़े विवादित बयानों से विवादों में रही है। एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम अजीत पवार ने राज्य के सूखे बांधों के भरने को लेकर एक अभद्र टिप्पणी पर तब के विपक्ष ने तीखा हमला बोला था।

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महाराष्ट्र में सत्तापरिवर्तन के बावजूद किसानों के प्रति संवेदना का अभाव सोचने पर मजबूर करता है कि भले सत्ता बदले, नेताओं के चेहरे बदलें, नेता शायद ही बदलते हों।