यह ख़बर 15 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

न्यायपालिका, संसद और कार्यपालिका के बीच एक दूसरे के लिए सम्मान होना चाहिए : प्रधान न्यायाधीश

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढा ने आज कहा कि न्यायपालिका, संसद और कार्यपालिका के बीच एक दूसरे के लिए आपसी सम्मान होना चाहिए और इन सभी पर 'बाहरी दबाव' नहीं होना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने ये टिप्पणियां संसद द्वारा शीर्ष अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था खत्म करने वाले विधेयक पारित करने के एक दिन बाद की हैं।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने उच्चतम न्यायालय परिसर में तिरंगा फहराने के बाद कहा, 'मैं आश्वस्त हूं कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और संसद में लोग इतने परिपक्व हैं कि वे एक दूसरे के लिए आपसी सम्मान रखें और सुनिश्चित करें कि ये सभी (संस्थाएं) अपने क्षेत्रों में किसी बाहरी दबाव के बगैर काम कर पाएं।' उन्होंने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया है कि राज्य के सभी अंग दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण किए बगैर अपने अपने क्षेत्रों में काम करें।

न्यायपालिका की आपत्ति के बावजूद, संसद ने कल ऐसे दो विधेयकों को मंजूरी दी थी जो दो दशक से अधिक समय पुरानी कॉलेजियम व्यवस्था को खत्म करके उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नये तंत्र की व्यवस्था करते हैं।

अपने भाषण में, उन्होंने उच्च न्यायपालिका में एक हजार से भी कम न्यायाधीशों की नियुक्ति का संदर्भ दिया, लेकिन सरकार द्वारा लाए जा रहे प्रस्तावित न्यायिक नियुक्ति आयोग का जिक्र या इस संबंध में विस्तृत बात नहीं की।

न्यायिक प्रणाली में देरी को लेकर होने वाली आलोचनाओं के संदर्भ में, न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि जहां न्यायपालिका (उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के) एक हजार से भी कम न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की जिम्मेदार है, वहीं राज्य सरकारें निचली अदालतों में 19 हजार न्यायाधीशों की नियुक्तियां करती हैं।

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली उच्चतम न्यायालय के 31 और उच्च न्यायालय के 906 न्यायाधीशों की नियुक्ति करती है।