बीजेपी बैठक: आडवाणी पर सस्पेंस खत्म, नहीं होगा वरिष्ठ नेता का 'मार्गदर्शन' संबोधन

बेंगलुरु : बेंगलुरु में चल रही बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का शनिवार को दूसरा और आख़िरी दिन है। बैठक में वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के संबोधन पर सस्पेंस ख़त्म हो गया है। अब ये साफ हो गया है कि आडवाणी बैठक को संबोधित नहीं करेंगे। खबर है कि उन्होंने खुद ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी में संबोधन से इनकार कर दिया है।

इससे पहले शुक्रवार शाम बेंगलुरु में बीजेपी की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विपक्ष उनकी सरकार की नीतियों को लेकर आलोचना कर रही है, लेकिन कई बार नीति से ज़्यादा नीयत का अच्छा होना ज़रूरी है और उनकी नीयत बिलकुल साफ़ है।

इससे पहले शुक्रवार शाम तक बीजेपी नेता दावा कर रहे थे कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लालकृष्ण आडवाणी मार्गदर्शन संबोधन करेंगे। उनका ये भी कहना था कि मंच पर उनकी (आडवाणी की) उपस्थिति मात्र ही अपने-आप में मार्गदर्शन है। लेकिन कार्यकारिणी के तैयार कार्यक्रम के अनुसार पहले से ही आडवाणी का नाम नदारद था।

एनडीटीवी इंडिया को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कार्यक्रम की जो प्रति मिली, उसमें शनिवार के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के समापन भाषण और प्रधानमंत्री के भाषण का ही जिक्र था। जबकि अमूमन ये होता आया है कि अध्यक्ष या प्रधानमंत्री के समापन भाषण से पहले या बाद में लालकृष्ण आडवाणी अपना संबोधन करते हैं, जिसे मार्गदर्शन करना कहा जाता है।
 
बीजेपी महासचिव मुरलीधर राव से जब एनडीटीवी इंडिया ने पूछा तो उन्होंने कहा था कि आडवाणी निश्चित रूप से अपना मार्गदर्शन देंगे। हालांकि ये किस रूप में होगा, ये वो नहीं बता पाए थे। जबकि पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना था कि मंच पर आडवाणी की उपस्थिति ही पार्टी के लिए मार्गदर्शन का काम करेगी।

बताया तो ये भी जा रहा है कि इस बार आडवाणी खुद ही भाषण देने के इच्छुक नहीं थे। पार्टी के संगठन महासचिव रामलाल उनसे मिले थे, जिसमें उन्होंने अपनी अनिच्छा जता दी थी। माना जा रहा है कि आडवाणी इस बात से खुश नहीं हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रचार का काम नहीं सौंपा गया। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी महत्वपूर्ण चुनाव में आडवाणी ने प्रचार नहीं किया हो।

पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को लेकर पार्टी और सरकार के भीतर सुगबुगाहट हो रही है, मगर कोई खुलकर कहने को तैयार नहीं। खासतौर से दिल्ली में जिस तरह से फैसले किए गए उसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

एक दूसरा मुद्दा मार्गदर्शक मंडल का है। आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से हटाने के लिए मार्गदर्शक मंडल बना दिया गया, लेकिन एक बार भी इस मार्गदर्शक मंडल की न तो बैठक हुई और न ही कोई सलाह-मशविरा किया गया।

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सूत्रों का दावा है कि मार्च के चौथे हफ्ते में दिल्ली में बीजेपी और आरएसएस नेताओं की समन्वय बैठक में संघ की ओर से इशारा किया गया कि सरकार और पार्टी की कार्यकर्ताओं से संवादहीनता बढ़ रही है, जिसे दूर करने की जरूरत है। इसी के बाद शाह ने हर महीने सप्ताह में दो बार कार्यकर्ताओं को बिना अप्वाइंटमेंट मिलने के लिए समय देने का फैसला किया।