Lockdown: 'पेट कहता है घर से बाहर निकलो, बाहर निकलते हैं तो डंडे पड़ रहे हैं...'

दिक्कत ये है कि कई ऐटीएम खाली पड़े हैं, दुकानों में राशन की उपलब्धतता नहीं है और भविष्य अनिश्चित है.

Lockdown: 'पेट कहता है घर से बाहर निकलो, बाहर निकलते हैं तो डंडे पड़ रहे हैं...'

लॉकडाउन के चलते भिंड ज़िले से ये मजदूर पैदल टीकमगढ़ निकल गये हैं.

भोपाल :

कर्फ्यू-लॉकडाउन की खबरों के बीच कोई सबसे ज्यादा परेशान हैं तो वो हैं रोज़ाना कमा कर खाने वाले. सख्ती के शिकार सड़कों और मंदिरों पर सोने वाले बेसहारा लोग अनाज के लिए तरस रहे हैं, इन पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो.  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के मद्देनजर हर मजदूर को 1,000 रुपए की सहायता देने, आदिवासी परिवारों के खातों में दो माह की अग्रिम राशि 2,000 रुपये और सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत आने वाले पेंशनर्स को दो माह का अग्रिम भुगतान करने की बात कही है. लेकिन दिक्कत ये है कि कई ऐटीएम खाली पड़े हैं, दुकानों में राशन की उपलब्धतता नहीं है और भविष्य अनिश्चित है.

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ऐसे में बच्चे और अपने मुंह पर गमछा बांधा, पोटली उठाई और चल पड़े पैदल भिंड से टीकमगढ़, 250 किलोमीटर के सफर पर. ये कहानी मनसुखलाल की है. यहां खाने की व्यवस्था नहीं है, बच्चे भूखे हैं पैदल जा रहे हैं, बच्चा भी और घरवाली भी है. मनसुख अकेले नहीं है. भिंड ज़िले से ये मजदूर पैदल टीकमगढ़ निकल गये हैं. लॉक डाउन के बाद इनकी हालत बिगड़ रही है,  एक वक्त की रोजी रोटी को ये परिवार मोहताज हो रहे हैं. आरोप है कि कलेक्टर से मिलने गए तो उन्हें दफ्तर से भगा दिया गया.

मनसुख बताते हैं, 'जा रहे थे पुलिसवालों ने भगा दिया, वहीं सुनवाई होगी जो बाहर आया लठ्ठ पड़ी कलेक्टर से मिलने ही नहीं दे रहे, दो तीन दिन से भूखे प्यासे हैं. अभी तक कोई मदद नहीं मिली है पैसा है नहीं भूखे प्यासे मर रहे हैं कोई व्यवस्था हो तो गांव चले जाए, खाना पीने को कुछ नहीं है पैदल निकलना ही पड़ेगा, काम नहीं मिल रहा ना वाहन चल रहे हैं.'

इंदौर में धापीबाई का चूल्हा बुझा है, परेशान हैं. लोहे के औजार बनाती हैं, काम है नहीं पति रोजाना मजदूरी करते हैं, उन्हें भी कुछ दिनों से काम नहीं मिला. बच्चों को तन ढंकने के लिये कपड़ा मिल जाए बहुत है, मुंह ढकने की फिलहाल फिक्र नहीं. धापीबाई कहती हैं, धंधा कहां है भट्टी बंद हैं, रोज 100-50 का धंधा हो जाए तो खा लेते हैं नहीं तो बैठते हैं, क्या खाएंगे धंधा नहीं है. तेल-आटा दिलवा देते, भूखे बैठे हैं, गरीब रोड पर पड़े हैं काम धंधा है नहीं.

उनके पति शिखर सिंह कहते हैं,  रोज की मजदूरी करके रोज खाने का काम है, अनाज कुछ नहीं है. गरीबों के लिये कोई तो व्यवस्था हो. एक किलो आटा लाकर खाने वाले लोग हैं हम तो, कैसे काम चलाएंगे.

 खरगोन जिले के गोगावां क्षेत्र के गरीब तबके के कुछ आदिवासी गुजरात काम की तलाश में पहुंचे साथ ही कोरोना नामक बीमारी ने ऐसे पैर पसारे की कम्पनी बंद होने की दशा में मजदूरों को वापस लौटना पड़ा. ज़िले की सीमा तक तो पहुंचे गये फिर कोई गाड़ी नहीं मिली तो भूखे प्यासे मजदूरों ने बच्चों के साथ पैदल यात्रा शुरू कर दी. इस दौरान मजदूर रामसिंह ने बताया की बीमारी के कारण कामकाज ठप्प होने से दो दिन से भूखे प्यासे रहकर पैदल यात्रा करके वो गांव पहुंच रहे हैं.
 

छिंदवाड़ा की सड़कों पर भीख मांग कर गुज़ारा करने वाले ये दिव्यांग, बेसहारा इन दिनों परेशान हैं, खाने को कुछ नहीं, खुली सड़क पर रात बिताना भी मुश्किल है. जब से मॉर्केट बंद हुआ खाने को कुछ नहीं हैं, हमारा कोई सहारा नहीं है. 5 दिन से ना खाना मिल रहा है, ना पैसा, रोड में मत घूमो. अभी कुछ नहीं मिल रहा है, कौन देगा खाने को कर्फ्यू लगा है. खाने भी नहीं दे रहे पड़े हैं बाबा के दरगाह में पांच दिन हो गये.

 
हालांकि प्रशासन का दावा है कि सामाजिक संगठनों के ज़रिये इन्हें खाना मिलेगा. एसडीएम अतुल सिंह ने कहा जो असहाय और बेसहारा हैं भीख मांग कर जीवन यापन कर रहे हैं, 300 पैकेट प्रतिदिन वितरत करा रहे हैं ताकि कोई भूखा ना रहे.  

मासूम चेहरा,आंखों में आंसू,बहुत सारी उम्मीद, कोरोना का खौफ और अगले वक्त की रोटी का इंतजार  21 साल के मासूम खान यूपी में शामली जिले के रहने वाले हैं. परिवार में पांच बहनों और भाई के अलावा मां-बाप का बोझ भी इनके सर पर है. फेरी लगाकर साहूकार का माल बेचते हैं , दिहाड़ी मजदूरी कमा कर अपने राशन पानी का इंतजाम करते हैं. सामान बेचने शामली से मध्यप्रदेश के आगर मालवा आ गये.  सड़क, रेल सब बंद है अब वापस लौटना मुश्किल है.
ऐसे में कोरोना और भूख दोनों से लड़ना है . खुद के लिये, परिवार के लिये भी.

घर कैसे जाएं रोज कॉल आता है, भाई बोलता है घर कैसे जाएं कुछ समझ नहीं आ रहा है, बहुत परेशानी है. इसमें सरकार की गलती नहीं है हमारी भी नहीं. करोना से लड़ें या भूख से लड़ें. मासूम के अलावा, यूपी से 14 और हरियाणा के 2 मजदूर मध्यप्रदेश आये थे. राशन-पानी, पैसा खत्म होने वाला है. परेशानी कब खत्म होगी नहीं जानते.
 
शहंशाह खान कहते हैं, 3-4 दिन का राशन लाये थे. अब पैसे भी नहीं है हम फंसे हुए हैं. प्रशासन अपने स्तर पर मदद पहुंचाने की बात कह रहा है, कुछ समाजसेवी संगठन भी आगे आए हैं. ज़िले के कलेक्टर संजय कुमार कहते हैं हमारे यहां जो आटा मिल हैं, दाल मिल हैं उनको पास रॉ मैटेरियल हैं, 100 क्विंटल आलू-प्याज रिजर्व करवाया है ताकि गरीब व्यक्ति को ये मिल जाए तो विपदा सह लेगा.

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इन लोगों के लिये काम कर रहे समाजसेवी, वाजिद खान कहते हैं हमने मदद के हाथ को सबके लिये बढ़ा रखा है जहां तक लगेगी हम मदद के लिये हाथ आगे बढ़ाएंगे. भोपाल में रंग-रोगन का काम करने वाला बसंती का परिवार भी खाली बैठा है.उधार मांग कर काम चला रही हैं, सब घर में बैठे हैं, मजदूरी नहीं कर रहे हैं . पांच लोग हैं कमाने कोई जा नहीं रहा है, सब घर बैठे हैं क्या करें खाने को कुछ नहीं है. आनेजाने का साधन भी तो है काम बंद पड़ा है . 100-50 रु उधार लेकर काम चला रहे हैं.

ऐसे लोग मजबूर हैं, पेट कहता है घर से बाहर निकलो बाहर निकलते हैं तो डंडे पड़ रहे हैं. अब डंडे ये नहीं देखते कौन भूख से निकला है, कौन तफरीह के लिये.