यह ख़बर 22 दिसंबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

सरकार ने लोकसभा में पेश किया लोकपाल बिल

खास बातें

  • बीजेपी ने लोकपाल बिल में धर्म के आधार पर आरक्षण दिए जाने को संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध करार दिया और सरकार से नया बिल लाने की मांग की।
New Delhi:

सरकार ने लोकसभा में पुराने लोकपाल बिल  को वापस लेकर नया बिल पेश कर दिया है। इससे पहले, लोकपाल में मुस्लिमों को कोटा देने की मांग पर लोकसभा में भारी हंगामा हुआ, जिस कारण सदन की कार्यवाही 3:30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। बाद में सरकार की ओर से प्रणब मुखर्जी ने लालू, शरद यादव और मुलायम सिंह को भरोसा दिलाया कि सरकार लोकपाल समिति में मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए तैयार है। लोकपाल पीठ में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को शामिल करने का प्रावधान करने के बारे में फैसला कांग्रेस कोर समूह की बैठक में किया गया। बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने की और इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं अन्य वरिष्ठ मंत्री शामिल हुए। बिल पेश करने के बाद सरकार ने कहा कि लोकपाल बिल पारित या खारिज करना सदन का अधिकार है और वह संवैधानिक है या नहीं, यह तय करना न्यायपालिका का अधिकार है, न कि किसी पार्टी का। इससे पहले, बीजेपी ने लोकपाल बिल में धर्म के आधार पर आरक्षण दिए जाने को संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध करार दिया और सरकार से नया विधेयक लाने की मांग की। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने नौ-सदस्यीय प्रस्तावित लोकपाल में 50 प्रतिशत आरक्षण को भी असंवैधानिक बताया। सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने भी विधेयक पेश किए जाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि लोकपाल सरकार को ब्लैकमेल नहीं करेगा। उधर, आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए तथा बिल को लेकर आंदोलनों के डर से कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। एनडीटीवी के पास इस नए लोकपाल बिल की कॉपी है। इस बिल का नाम लोकपाल और लोकायुक्त बिल 2011 है। इस बिल में कहा गया है कि प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, चीफ जस्टिस, लोकसभा स्पीकर और राष्ट्रपति की तरफ से एक कानूनविद् लोकपाल का चयन करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के जज या हाइकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस या इससे बाहर कोई महत्वपूर्ण शख्सियत लोकपाल बनने के पात्र होंगे। अंतरराष्ट्रीय संबंध, आंतरिक और बाहरी सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और एटमी और अंतरिक्ष कार्यक्रम के मसलों को छोड़कर प्रधानमंत्री भी लोकपाल के दायरे में होंगे। प्रधानमंत्री के मामले में जांच तभी होगी, जब तीन−चौथाई सदस्य इसकी मंजूरी दें। यह सुनवाई गोपनीय होगी और पूरी बेंच के सामने होगी। अगर आरोप गलत पाए गए तो सुनवाई के रेकार्ड नहीं रखे जाएंगे। लोकपाल के दायरे में सांसद और तीसरे−चौथे दर्जे के कर्मचारी भी होंगे। बुधवार को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने बीजेपी नेताओं के साथ बैठक की, लेकिन बीजेपी ने साफ किया है कि लोकपाल पर सरकार के साथ उसकी कोई डील नहीं हुई है। लोकपाल बिल को लेकर उसके ऐतराज बरकरार हैं। बीजेपी लोकपाल बिल पर संशोधन प्रस्ताव भी पेश करेगी, क्योंकि उसे लोकपाल बिल इस शक्ल में मंजूर नहीं है। लोकपाल में तीन अहम मुद्दे हैं, जिन पर बीजेपी को ऐतराज है। बीजेपी नहीं चाहती कि लोकपाल की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार के पास हो। साथ ही पार्टी को यह बात भी खटक रही है कि लोकपाल के पास अपनी कोई स्वतंत्र जांच एजेंसी नहीं है। सीबीआई पर सरकार का नियंत्रण पहले की तरह बरकरार है। बीजेपी का तीसरा ऐतराज लोकपाल में आरक्षण से जुड़ा है। बीजेपी ने महिलाओं और अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिए जाने पर सवाल उठाए हैं। हालांकि सूत्रों से जानकारी मिली है कि सरकार ने आखिरी वक्त में अल्सपंख्यकों के लिए कोटा खत्म कर दिया है। उधर, लोकपाल बिल के विरोध में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और शिवसेना खुलकर सामने आ गए हैं। आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने कहा कि इस मुद्दे पर जब तक सभी राजनीतिक दलों में आम राय नहीं बनती, इस बिल को नहीं पेश किया जाना चाहिए। मुलायम सिंह यादव ने आगाह किया कि सारी ताकत पुलिस के हाथ में चली जाएगी। शिवसेना ने लोकपाल के विरोध में तर्क दिया है कि देश में गद्दाफी को पैदा नहीं होने देना चाहिए। विभिन्न पार्टियों के विरोध को देखते हुए लोकपाल बिल को मौजूदा सत्र में पास कराना आसान नहीं होगा।


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